बाणभट्ट: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (1 अवतरण)
No edit summary
Line 1: Line 1:
 
'''बाणभट्ट / Banbhatta'''<br />
==बाणभट्ट / Banbhatta==
*[[संस्कृत]] साहित्य में बाणभट्ट ही एक ऐसे महाकवि हैं जिनके जीवन चरित के विषय में पर्याप्त जानकारी मिलती है।  
*[[संस्कृत]] साहित्य में बाणभट्ट ही एक ऐसे महाकवि हैं जिनके जीवन चरित के विषय में पर्याप्त जानकारी मिलती है।  
*[[कन्नौज]] और स्थान्वीश्वर के प्रसिद्ध हिन्दू सम्राट [[हर्षवर्धन]] के समसायिक सभापण्डित होने के कारण इनका समय निर्विवाद है। 21वीं शती के आलंकारिक रुय्यक से लेकर आठवीं शती के वामन ने अपने-अपने ग्रन्थों में बाण तथा उनकी रचनाओं का उल्लेख किया है अत: अन्त: बाह्य साक्ष्यों के आधार पर बाणभट्ट का समय सप्त शती पूर्वार्ध तथा थोड़ा सा उत्तरार्ध सिद्ध होता है। *हर्षचरित-वर्णन के आधार पर बाण हर्षवर्धन (606-648 ई॰) के राज्य के उत्तरकाल में उनके सभाकवि सिद्ध होते हैं, क्योंकि उन्होंने हर्ष के प्रारंभिक दिग्विजय का उल्लेख नहीं किया है।  
*[[कन्नौज]] और स्थान्वीश्वर के प्रसिद्ध हिन्दू सम्राट [[हर्षवर्धन]] के समसायिक सभापण्डित होने के कारण इनका समय निर्विवाद है। 21वीं शती के आलंकारिक रुय्यक से लेकर आठवीं शती के वामन ने अपने-अपने ग्रन्थों में बाण तथा उनकी रचनाओं का उल्लेख किया है अत: अन्त: बाह्य साक्ष्यों के आधार पर बाणभट्ट का समय सप्त शती पूर्वार्ध तथा थोड़ा सा उत्तरार्ध सिद्ध होता है। *हर्षचरित-वर्णन के आधार पर बाण हर्षवर्धन (606-648 ई॰) के राज्य के उत्तरकाल में उनके सभाकवि सिद्ध होते हैं, क्योंकि उन्होंने हर्ष के प्रारंभिक दिग्विजय का उल्लेख नहीं किया है।  

Revision as of 14:31, 4 April 2010

बाणभट्ट / Banbhatta

  • संस्कृत साहित्य में बाणभट्ट ही एक ऐसे महाकवि हैं जिनके जीवन चरित के विषय में पर्याप्त जानकारी मिलती है।
  • कन्नौज और स्थान्वीश्वर के प्रसिद्ध हिन्दू सम्राट हर्षवर्धन के समसायिक सभापण्डित होने के कारण इनका समय निर्विवाद है। 21वीं शती के आलंकारिक रुय्यक से लेकर आठवीं शती के वामन ने अपने-अपने ग्रन्थों में बाण तथा उनकी रचनाओं का उल्लेख किया है अत: अन्त: बाह्य साक्ष्यों के आधार पर बाणभट्ट का समय सप्त शती पूर्वार्ध तथा थोड़ा सा उत्तरार्ध सिद्ध होता है। *हर्षचरित-वर्णन के आधार पर बाण हर्षवर्धन (606-648 ई॰) के राज्य के उत्तरकाल में उनके सभाकवि सिद्ध होते हैं, क्योंकि उन्होंने हर्ष के प्रारंभिक दिग्विजय का उल्लेख नहीं किया है।
  • यद्यपि बाणभट्ट की लेखनी से अनेक ग्रन्थ रत्नों का लेखन हुआ है किन्तु बाण का महाकवित्व केवल 'हर्षचरित' और 'कादम्बरी' पर प्रधानतया आश्रित है। इन दोनों गद्य काव्यों के अतिरिक्त मुकुटताडितक, चण्डीशतक और पार्वती-परिणय भी बाण की रचनाओं में परिगणित हैं। इनमें 'पार्वतीपरिणय' को ए.बी. कीथ ने बाण की रचना न मानकर उसे वामनभट्टबाण (17 वीं शती) नामक किसी दाक्षिणात्य वत्सगोत्रीय ब्राह्मण की रचना माना है।