वर्ण व्यवस्था: Difference between revisions
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Revision as of 13:19, 15 February 2011
वैदिक धर्म सुदृढ़ वर्णाश्रम व्यवस्था पर आधारित था। हिन्दू धर्म समस्त मानव समाज को चार श्रेणियों में विभक्त करता है -
ब्राह्मण
ब्राह्मण को बुद्धिजीवी माना जाता है, जो अपनी विद्या, ज्ञान और विचार शक्ति द्वारा जनता एवं समाज का नेतृत्व कर उन्हें सन्मार्ग पर चलने का आदेश देता है।
क्षत्रिय
- क्षत्रिय वह है जो बाहुबल द्वारा समाज में व्यवस्था रखकर उन्हें उच्छृंखल होने से रोकता है।
- जो नाश से रक्षा करे वह क्षत्रिय है। - कालिदास
- राजा का कर्तव्य प्रजा की रक्षा करना है।
वैश्य
खेती, गौ पालन और व्यापार के द्वारा जो समाज को सुखी और देश को समृद्ध बनाता है, उसे वैश्य कहते हैं।
शूद्र
उपरोक्त तीनों वर्णों की सेवा करना शूद्र का कार्य था। इस वर्ण का भी उतना ही महत्व था जितना अन्य तीनों वर्णों का था। यह वर्ण ना हो तो शेष तीनों वर्णों की जीवन व्यवस्था छिन्न भिन्न हो जाए।
- यह व्यवस्था समाज के संतुलन के लिए थी।
- पाश्चात्य दार्शनिक प्लेटो ने भी समाज को चार वर्णों में विभाजित करना अनिवार्य बताया है।
- अन्य धर्मों में भी इस प्रकार की वर्ण व्यवस्था की गयी थी।
- प्रत्येक व्यवस्था गुणों और कर्मों के आधार पर थी।
- डा.राधाकृष्णन कहते हैं - 'जन्म और गुण इन दोनों के घालमेल से ही वर्ण व्यवस्था की चूलें हिल गयी हैं।'
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