सराय नाहरराय: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
*सराय नाहर राय नामक मध्य पाषाणिक पुरास्थल [[उत्तर प्रदेश]] के प्रतापगढ़ जनपद मुख्यालय से 15 किमी दूर गोखुर झील के किनारे पर स्थित है। इस पुरास्थल की खोज के.सी.ओझा ने की थी। यह पुरास्थल लगभग 1800 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। | *सराय नाहर राय नामक मध्य पाषाणिक पुरास्थल [[उत्तर प्रदेश]] के [[प्रतापगढ़]] जनपद मुख्यालय से 15 किमी दूर गोखुर झील के किनारे पर स्थित है। इस पुरास्थल की खोज के.सी.ओझा ने की थी। यह पुरास्थल लगभग 1800 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। | ||
*सराय नाहर राय में कुल 11 मानव समाधियाँ तथा 8 गर्त चूल्हों का उत्खनन [[इलाहाबाद]] विश्वविद्यालय की ओर से किया गया था। यहाँ की कब्रें (समाधियाँ) आवास क्षेत्र के अन्दर स्थित थीं। कब्रें छिछली और अण्डाकार थीं। | *सराय नाहर राय में कुल 11 मानव समाधियाँ तथा 8 गर्त चूल्हों का उत्खनन [[इलाहाबाद]] विश्वविद्यालय की ओर से किया गया था। यहाँ की कब्रें (समाधियाँ) आवास क्षेत्र के अन्दर स्थित थीं। कब्रें छिछली और अण्डाकार थीं। | ||
*यहाँ संयुक्त रूप से 2 पुरुषों एवं | *यहाँ संयुक्त रूप से 2 पुरुषों एवं 2 स्त्रियों को एक साथ दफ़नाये जाने के प्रमाण हमें सराय नाहर राय से मिले हैं। यहाँ से जो 15 मानव कंकाल मिले हैं, वे ह्रष्ट-पुष्ट तथा सुगठित शरीर वाले मानव समुदाय के प्रतीत होते हैं। सराय नाहर राय के पुरुष तथा स्त्रियाँ दोनों ही अपेक्षाकृत लम्बे कद के थे। गर्त चूल्हों से [[हिरण]], [[बारहसिंगा]], जंगली [[सुअर]] आदि पशुओं की अधजली हड्डियाँ मिली हैं। | ||
*यहाँ पर चूल्हों का उपयोग पशुओं के मांस को भूनने के लिए भी किया जाता था। यहाँ से लघु पाषाण उपकरणों में समानांतर एवं कुण्ठित पार्श्व वाले ब्लेड, बेधक, चान्द्रिक, खुरचनी, समबाहु तथा विषम बाहु आदि ज्यामितीय उपकरण हैं, जो चर्ट, चाल्सेडनी, जैस्पर आदि के बने हुए हैं। | *यहाँ पर चूल्हों का उपयोग पशुओं के मांस को भूनने के लिए भी किया जाता था। यहाँ से लघु पाषाण उपकरणों में समानांतर एवं कुण्ठित पार्श्व वाले ब्लेड, बेधक, चान्द्रिक, खुरचनी, समबाहु तथा विषम बाहु आदि ज्यामितीय उपकरण हैं, जो चर्ट, चाल्सेडनी, जैस्पर आदि के बने हुए हैं। | ||
*यहाँ से मृद्भाण्ड के कोई अवशेष नहीं मिले हैं। वैसे भी मध्य [[गंगा]] घाटी में स्थित मध्य [[भारत का इतिहास पाषाण काल|पाषाण काल]] के किसी भी उत्खनित पुरास्थल से मृद्भाण्ड के अवशेष अभी तक नहीं मिले हैं। | *यहाँ से मृद्भाण्ड के कोई अवशेष नहीं मिले हैं। वैसे भी मध्य [[गंगा]] घाटी में स्थित मध्य [[भारत का इतिहास पाषाण काल|पाषाण काल]] के किसी भी उत्खनित पुरास्थल से मृद्भाण्ड के अवशेष अभी तक नहीं मिले हैं। | ||
Line 15: | Line 15: | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
[[Category: | [[Category:उत्तर प्रदेश]] [[Category:उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान]]) [[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 05:47, 20 February 2011
- सराय नाहर राय नामक मध्य पाषाणिक पुरास्थल उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद मुख्यालय से 15 किमी दूर गोखुर झील के किनारे पर स्थित है। इस पुरास्थल की खोज के.सी.ओझा ने की थी। यह पुरास्थल लगभग 1800 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है।
- सराय नाहर राय में कुल 11 मानव समाधियाँ तथा 8 गर्त चूल्हों का उत्खनन इलाहाबाद विश्वविद्यालय की ओर से किया गया था। यहाँ की कब्रें (समाधियाँ) आवास क्षेत्र के अन्दर स्थित थीं। कब्रें छिछली और अण्डाकार थीं।
- यहाँ संयुक्त रूप से 2 पुरुषों एवं 2 स्त्रियों को एक साथ दफ़नाये जाने के प्रमाण हमें सराय नाहर राय से मिले हैं। यहाँ से जो 15 मानव कंकाल मिले हैं, वे ह्रष्ट-पुष्ट तथा सुगठित शरीर वाले मानव समुदाय के प्रतीत होते हैं। सराय नाहर राय के पुरुष तथा स्त्रियाँ दोनों ही अपेक्षाकृत लम्बे कद के थे। गर्त चूल्हों से हिरण, बारहसिंगा, जंगली सुअर आदि पशुओं की अधजली हड्डियाँ मिली हैं।
- यहाँ पर चूल्हों का उपयोग पशुओं के मांस को भूनने के लिए भी किया जाता था। यहाँ से लघु पाषाण उपकरणों में समानांतर एवं कुण्ठित पार्श्व वाले ब्लेड, बेधक, चान्द्रिक, खुरचनी, समबाहु तथा विषम बाहु आदि ज्यामितीय उपकरण हैं, जो चर्ट, चाल्सेडनी, जैस्पर आदि के बने हुए हैं।
- यहाँ से मृद्भाण्ड के कोई अवशेष नहीं मिले हैं। वैसे भी मध्य गंगा घाटी में स्थित मध्य पाषाण काल के किसी भी उत्खनित पुरास्थल से मृद्भाण्ड के अवशेष अभी तक नहीं मिले हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
)