चंदन: Difference between revisions

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Revision as of 09:43, 4 March 2011

  • सैंटेलम वंश (कुल सैंटेलेसी) का एक अर्द्ध परजीवी पौधा,विशेष रूप से असली या सफ़ेद चंदन सैंटेलम एल्बम की खुशबूदार लकड़ी है।
  • सैंटेलम की क़रीब दस प्रजातियां दक्षिण-पूर्वी एशिया और दक्षिणी प्रशांत के द्वीपों में फैली हुई हैं।
  • यहाँ कई अन्य लकड़ियों का असली चंदन के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
  • लाल चंदन मटर कुल (फ़ेबेसी) के दक्षिण-पूर्वी एशियाई पेड़ टेरोकार्पस सैंटेलिनस की लाल रंग की लकड़ी से निकाला जाता है।
  • यह प्रजाति किंग सॉलोमन के मंदिर में इस्तेमाल किए गए चंदन का स्रोत रही होगी।
  • एक असली चंदन का पेड़ लगभग 10 मीटर की ऊँचाई तक बढ़ता है; इसकी चर्मिल पत्तियां जड़ में व शाखा पर एक-दूसरे की विपरीत दिशा में होती है।
  • यह अन्य पेड़ों की प्रजातियों की जड़ों पर आंशिक रूप से परजीवी होता है।
  • पेड़ और जड़ में पीले रंग का सुगंधित तेल होता है, जिसे 'चंदन का तेल' कहते हैं, जिसकी गंध सफ़ेद रसदारू से बनाए गए नक्काशीदार बक्सों, फ़र्नीचर तथा पंखों जैसी यह वस्तुओं में सालों तक बनी रहती है।
  • यह तेल लकड़ी के 'वाष्प आसवन' से प्राप्त किया जाता है और इत्र, साबुन, मोमबत्ती, धूप-अगरबत्ती और परंपरागत औषधियों में इस्तेमाल होता है।
  • पिसे चंदन की लेई का उपयोग ब्राह्मण तिलक लगाने के लिए और छोटी-छोटी थैलियों में भरकर कपड़ों को सुगंधित करने के लिए करते हैं।
  • चंदन के पेड़ों को प्राचीन काल से उनके पीले रंग के अंत:काष्ठ के लिए उगाया जाता रहा है, जो पूर्व के दाह संस्कारों और धार्मिक कर्मकांडों में मुख्य भूमिका निभाता था।
  • यह पेड़ बहुत धीमी गति से बढ़ता है, इसके अंत:काष्ठ के आर्थिक रूप से उपयोगी मोटाई तक पहुचंने के लिए सामान्यत: तक़रीबन तीस साल का समय लगता है।

 


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