संस्कृति: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 12: | Line 12: | ||
*थोड़े शब्दों में और व्यापक अर्थ में किसी देश की संस्कृति से हम मानव-जीवन तथा व्यक्तित्व के उन रूपों को समझ सकते है, जिन्हें देश-विदेश में महत्त्वपूर्ण, अर्थात मूल्यों का अधिष्ठान समझा जाता है। | *थोड़े शब्दों में और व्यापक अर्थ में किसी देश की संस्कृति से हम मानव-जीवन तथा व्यक्तित्व के उन रूपों को समझ सकते है, जिन्हें देश-विदेश में महत्त्वपूर्ण, अर्थात मूल्यों का अधिष्ठान समझा जाता है। | ||
*उदाहरण के लिए, भारतीय संस्कृति में 'मातृत्व' और 'स्थितप्रशता' की स्थितियों को महत्त्वपूर्ण समझा जाता है; ये स्थितियाँ जीवन अथवा व्यक्तित्व की स्थितियाँ है और इस प्रकार भारतीय संस्कृति का अंग है। | *उदाहरण के लिए, भारतीय संस्कृति में 'मातृत्व' और 'स्थितप्रशता' की स्थितियों को महत्त्वपूर्ण समझा जाता है; ये स्थितियाँ जीवन अथवा व्यक्तित्व की स्थितियाँ है और इस प्रकार भारतीय संस्कृति का अंग है। | ||
[[Category: | |||
[[Category:संस्कृति कोश]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 11:46, 15 April 2010
संस्कृति / Culture
- संस्कृति शब्द सभ् उपसर्ग के साथ संस्कृत की (डु) कृ (चं) धातु से बनता है, जिसका मूल अर्थ साफ या परिष्कृत करना है।
- आज की हिन्दी में यह अंग्रेजी शब्द 'कल्चर' का पर्याय माना जाता है।
- संस्कृति शब्द का प्रयोग कम-से-कम दो अर्थों में होता है, एक व्यापक और एक संकीर्ण अर्थ में।
- व्यापक अर्थ में उक्त शब्द का प्रयोग नर-विज्ञान में किया जाता है। उक्त विज्ञान के अनुसार संस्कृति समस्त सीखे हुए व्यवहार अथवा उस व्यवहार का नाम है, जो सामाजिक परम्परा से प्राप्त होता है। इस अर्थ में संस्कृति को 'सामाजिक प्रथा' (कस्टम) का पर्याय भी कहा जाता है।
- संकीर्ण अर्थ में संस्कृति एक वांछनीय वस्तु मानी जाती है और संस्कृत व्यक्ति एक श्लाध्य व्यक्ति समझा जाता है। इस अर्थ में संस्कृति प्राय: उन गुणों का समुदाय समझी जाती है, जो व्यक्तित्व को परिष्कृत एवं समृद्ध बनाते हैं।
- नर-वैज्ञानियों के अनुसार 'संस्कृति' और 'सभ्यता' शब्द पर्यायवाची हैं।
संस्कृति और सभ्यता में अन्तर
- हमारी समझ में संस्कृति और सभ्यता में अन्तर किया जाना चाहिये।
- सभ्यता से तात्पर्य उन आविष्कारों, उत्पादन के साधनों एव सामाजिक-राजनीतिक संस्थाओं से समझना चाहिये, जिनकें द्वारा मनुष्य की जीवन-यात्रा सरल एवं स्वतन्त्रता का मार्ग प्रशस्त होता है।
- इसके विपरीत संस्कृति का अर्थ चिन्तन तथा कलात्मक सर्जन की वे क्रियाएँ समझनी चाहिये, जो मानव व्यक्तित्व और जीवन के लिए साक्षात उपयोगी न होते हुए उसे समृद्ध बनाने वाली है। *इस दृष्टि से हम विभिन्न शास्त्रों, दर्शन आदि में होने वाले चिन्तन, साहित्य, चित्रांकन आदि कलाओं एवं परहित साधन आदि नैतिक आदर्शों तथा व्यापारों को संस्कृति का अंग माना जायगी।
- थोड़े शब्दों में और व्यापक अर्थ में किसी देश की संस्कृति से हम मानव-जीवन तथा व्यक्तित्व के उन रूपों को समझ सकते है, जिन्हें देश-विदेश में महत्त्वपूर्ण, अर्थात मूल्यों का अधिष्ठान समझा जाता है।
- उदाहरण के लिए, भारतीय संस्कृति में 'मातृत्व' और 'स्थितप्रशता' की स्थितियों को महत्त्वपूर्ण समझा जाता है; ये स्थितियाँ जीवन अथवा व्यक्तित्व की स्थितियाँ है और इस प्रकार भारतीय संस्कृति का अंग है।