रसगुल्ला: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Adding category Category:संस्कृति कोश (को हटा दिया गया हैं।))
No edit summary
Line 22: Line 22:
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
{{मिष्ठान}}
__INDEX__
__INDEX__



Revision as of 12:03, 13 April 2011

रसगुल्ला
Rasogolla|thumb|250px
रसगुल्ला कोलकाता की प्रसिद्ध मिठाई है। रसगुल्ले का नाम सुनकर सभी के मुँह में पानी भर आता है। रसगुल्ले को मिठाइयों का राजा कहा जा सकता है। यह तो आप जानते ही होगें कि रसगुल्ला एक बंगाली मिठाई है। बंगाली लोग रसगुल्ला को रोशोगुल्ला कहते हैं।

रोचक कथा

रसगुल्ले के जन्म के बारे में एक 'रोचक कथा' है जो इस प्रकार है:-

बात सन 1858 ई. की है। कोलकाता (उन दिनों-कलकत्ता) में सुतापुट्टी के समीप एक हलवाई की दुकान पर नवीनचंद्र दास नाम का एक लड़का काम करता था। चार-पाँच वर्षों तक जब मालिक ने नवीनचंद्र का वेतन नहीं बढ़ाया तो उसने नौकरी छोड़ दी। फिर नवीनचंद्र ने कोलकाता के एक सुनसान से इलाके कालीघाट में अपनी ही दुकान खोल ली। सुनसान इलाके के कारण दुकान में बिक्री अधिक नहीं होती थी। दुकान में अक्सर छेना बच जाता था। नवीनचंद्र उस छेने के गोले बनाकर चाशनी में पका लेता। लेकिन उसकी यह मिठाई बिकती नहीं थी। नवीन यह मिठाई अपने दोस्तों को मुफ़्त में खिला देता। अपनी पसंद की मिठाई के न बिकने के कारण वह दुखी भी होता। रसगुल्ला
Rasogolla|thumb|250px|left
बात सन 1866 ई. की है। एक दिन उसकी दुकान के सामने एक सेठ की बग्घी आकर रुकी। सेठ का नौकर दुकान पर आया और बोला, 'छोटे बच्चों के लिए कोई नर्म-सी मिठाई दे दो।' नाम लेकर तो मिठाई माँगी नहीं गई थी, इसलिए नवीनचंद्र ने उसे अपनी वही मिठाई दे दी। बच्चों को मिठाई बहुत पसंद आई। वे मिठाई खाकर बहुत खुश हुए। उन्होंने वही मिठाई और मँगवाई। सेठ की भी इच्छा हुई कि इस नई मिठाई का नाम जाना जाए, जिसे बच्चों ने इतना पसंद किया है। नौकर ने आकर नवीनचंद्र से मिठाई का नाम पूछा तो वह घबरा गया। रस में गोला डालकर बनाता था मिठाई, इसलिए कह दिया, रस-गोला। नौकर ने कहा, 'सेठ जी अभी अपने बाग़ में जा रहे हैं, वापसी पर एक हांडी रस-गोला घर ले जाएँगे, तैयार रखना।

नवीनचंद्र दास रस-गोले की पहली बिक्री से बहुत प्रसन्न था। रस-गोले के पहले ग्राहक भारत के बहुत बड़े व्यापारी थे, नाम था भगवान दास बागला। इतने बड़े व्यापारी के ग्राहक बन जाने से 'रस-गोला' की बिक्री तेजी से बढ़ने लगी। केसर की भीनी-भीनी खुशबू वाला रस-गोला तो लोगों को बहुत भाया। समय के साथ 'रस-गोला' का नाम बिगड़कर रसगुल्ला हो गया। इसमें बहुत कुछ नया भी हुआ।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गुप्ता, किरण। बाल-संसार (हि्न्दी) (एच.टी.एम.एल)। । अभिगमन तिथि: 21 जुलाई, 2010।

संबंधित लेख