गुहा वास्तु: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (श्रेणी:नया पन्ना; Adding category Category:कला कोश (को हटा दिया गया हैं।))
m (Adding category Category:स्थापत्य कला (को हटा दिया गया हैं।))
Line 23: Line 23:
[[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:कला कोश]]
[[Category:कला कोश]]
[[Category:स्थापत्य कला]]
__INDEX__
__INDEX__

Revision as of 06:41, 14 April 2011

  • गुहा वास्तु भारतीय प्राचीन वास्तुकला का एक बहुत ही सुन्दर नमूना है।
  • अशोक के शासनकाल से गुहाओं का उपयोग आवास के रूप में होने लगा था।
  • गया के निकट बराबर पहाड़ी पर ऐसी अनेक गुफ़ाएँ विद्यमान हैं, जिन्हें सम्राट अशोक ने आवास योग्य बनवाकर आजीवकों को दे दिया था।
  • अशोककालीन गुहायें सादे कमरों के रूप में होती थीं, लेकिन बाद में उन्हें आवास एवं उपासनागृह के रूप में स्तम्भों एवं मूर्तियों से अलंकृत किया जाने लगा। यह कार्य विशेष रूप से बौद्धों द्वारा किया गया।
  • भारत के विभिन्न भागों में सैकड़ों गुहायें बिखरी पड़ी हैं।
  • इनमें से जो गुहायें बौद्ध विहारों के रूप में प्रयुक्त होती थीं, वे सादी होती थीं। उनके बीचों-बीच एक विशाल मंडप तथा किनारे-किनारे छोटी-छोटी कोठरियाँ होती थीं।
  • पूजा के लिए प्रयुक्त गुहाएँ 'चैत्यशाला' कहलाती थीं। जो सुन्दर कला-कृतियाँ होती थीं। चैत्य में एक लम्बा आयताकार मंडप होता था, जिसका अन्तिम भाग गजपृष्ठाकार होता था। स्तम्भों की दो लम्बी पंक्तियाँ इस मंडप को मुख्यकक्षा और दो पार्श्ववीथिकाओं में विभक्त कर देती थीं। गजपृष्ठ में एक स्तूप होता था। द्वारमुख ख़ूब अलंकृत होता था। उसमें तीन दरवाजे होते थे। बीच का द्वार मध्यवर्ती कक्ष में प्रवेश के लिए तथा अन्य दो द्वार पार्श्वथियों के लिए होते थे। चैत्य के ठीक सामने द्वारमुख के ऊपर अश्वपादत्र (घोड़े की नाल) के आकार का चैत्यवाक्ष होता था।
  • ऐसी अनेक गुहायें महाराष्ट्र के नासिक, भाजा, भिलसा, कार्ले और अन्य स्थानों पर पाई गई हैं। कार्ले की गुफ़ायें सर्वोत्कृष्ट मानी जाती हैं। इनका निर्माण ईसा पूर्व 200 से ईसा बाद 320 की अवधि में हुआ था।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश' पृष्ठ संख्या-132