प्रयोग:गोविन्द 5: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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{{कहावत लोकोक्ति मुहावरे}}
{{कहावत लोकोक्ति मुहावरे}}
<sort>
*    अंडा सिखावे बच्चे को चीं-चीं मत कर
अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम, दास मलूका कह गए सब के दाता राम
*    अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे कोई
असाढ़ जोतो लड़के ढार, सावन भादों हरवा है। क्वार जोतो घर का बैल, तब ऊंचे उनहारे।
*    अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे।
अधजल गगरी छलकत जाय। [[अधजल गगरी छलकत जाय|... अर्थ पढ़ें]]
*    अंत भला तो सब भला।
अति ऊँचे भूधारन पर भुजगन के स्थान, तुलसी अति नीचे सुखद उंख अन्न असपान।
*    अंत भले का भला।
अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि। चँदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
*    अंधा क्या जाने बसंत बहार।
अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत। तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।
*    अंधा बाँटे रेवड़ी (शीरनी), फिर फिर अपनों को दे।
असुनी नलिया अन्त विनासै।गली रेवती जल को नासै।। भरनी नासै तृनौ सहूतो।कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।
*    अंधी पीसे कुत्ता‍ खाए।
असाढ़ मास आठें अंधियारी। जो निकले बादर जल धारी।। चन्दा निकले बादर फोड़। साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।
*    अंधे की लाठी।
असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र। तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।।
*<poem>अंधेर नगरी चौपट राजा
अंधा बाँटे रेवड़ी (शीरनी), फिर फिर अपनों को दे।
टके सेर भाजी टके सेर खाजा।</poem>
अंधों का हाथी [[अंधों का हाथी|... अर्थ पढ़ें]]
*    अंधों का हाथी
अब पछताए होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत।
*    अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।
अंडा सिखावे बच्चे को चीं-चीं मत कर
*    अकेला हँसता भला न रोता भला।
अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे कोई
*    अक्ल बड़ी या भैंस।
अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे।
*    अक्‍ल का अंधा।
अंत भला तो सब भला।
*    अक्‍ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना।
अंधा क्या जाने बसंत बहार।
*    अक्‍ल पर पत्‍थर/परदा पड़ना।
अंधी पीसे कुत्ता‍ खाए।
* <poem>अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।
अंधे की लाठी।
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।</poem>
अंत भले का भला।
*    अगर मगर करना।
अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा।
*    अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ।
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।
*    अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम<br />
अकेला हँसता भला न रोता भला।
दास मलूका कह गए सब के दाता राम
अक्ल बड़ी या भैंस।
*    अटकलें भिड़ाना।
अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ।
*    अटकेगा सो भटकेगा।
अब के बनिया देय उधार।
*    अठखेलियाँ सूझना।
अटकेगा सो भटकेगा।
*    अडियल टट्टू।
अढ़ाई हाथ की लकड़ी, नौ हाथ का बीज।
*    अड्डे पर चहकना।
अनजान सुजान, सदा कल्याण।
*    अढ़ाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना।
अपना अपना कमाना, अपना अपना खाना।
*    अढ़ाई दिन की बादशाहत।
अपना ढेंढर देखे नही, दूसरे की फुल्ली निहारे।
*    अढ़ाई हाथ की लकड़ी, नौ हाथ का बीज।
अपना मकान कोट (क़िले) समान।
*    अति ऊँचे भूधारन पर भुजगन के स्थान <br />
अपना रख पराया चख।
तुलसी अति नीचे सुखद उंख अन्न असपान।
अपना लाल गँवाय के दर दर माँगे भीख।
*    अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि। <br />
अपना ही पैसा खोया तो परखने वाले का क्या दोष।
चँदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
अपनी–अपनी खाल में सब मस्त।
*    अधजल गगरी छलकत जाय।
अपनी अपनी तुनतुनी (ढफली), अपना अपना राग।
*    अधर में लटकना या झूलना।
अपनी करनी पार उतरनी।
*    अनजान सुजान, सदा कल्याण।
अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं।
*    अन्‍न जल उठ जाना।
अपनी गरज बावली।
*    अन्‍न न लगना।
अपनी गली में कुत्ता भी शेर।
*    अपना अपना कमाना, अपना अपना खाना।
अपनी गाँठ पैसा तो, पराया आसरा कैसा।
*    अपना अपना राग अलापना।
अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो।
*    अपना उल्‍लू सीधा करना।
अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता।
*    अपना ढेंढर देखे नही, दूसरे की फुल्ली निहारे।
अपनी टाँग उघारिए, आपहि मरिए लाज।
*    अपना मकान कोट (क़िले) समान।
अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना।
*    अपना रख पराया चख।
अपनी नाक कटे तो कटे दूसरों का सगुन तो बिगड़े।
*    अपना लाल गँवाय के दर दर माँगे भीख।
अपनी पगड़ी अपने हाथ,
*    अपना सा मुँह लेकर रह जाना।
अपने किए का क्या इलाज।
*    अपना ही पैसा खोया तो परखने वाले का क्या दोष।
अपने झोपड़े की खैर मनाओ।
*    अपनी अपनी तुनतुनी (ढफली), अपना अपना राग।
अपने पूत को कोई काना नहीं कहता।
*    अपनी करनी पार उतरनी।
अपने मुँह मिया मिट्ठू बनाना।
*    अपनी खाल में मस्‍त रहना।
अब की अब के साथ, जब की जब के साथ।
*    अपनी खिचड़ी अलग पकाना।
अब सतवंती होकर बैठी, लूट लिया सारा संसार।
*    अपनी गरज बावली।
अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे।
*    अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं।
अभी दिल्ली दूर है।
*    अपनी गली में कुत्ता भी शेर।
अमरी की जान प्यारी, ग़रीब को दम भारी।
*    अपनी गाँठ पैसा तो, पराया आसरा कैसा।
अरहर की टट्टिया, गुजराती ताला।
*    अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो।
अलख पुरुष की माया, कहीं धूप कहीं छाया।
*    अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता।
अशर्फ़ियाँ लुटें और कोयलों पर मोहर।
*    अपनी टाँग उघारिए, आपहि मरिए लाज।
अक्‍ल का अंधा।
*    अपनी नाक कटे तो कटे दूसरों का सगुन तो बिगड़े।
अक्‍ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना।
*    अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना।
अक्‍ल पर पत्‍थर/परदा पड़ना। 
*    अपनी पगड़ी अपने हाथ,
अगर मगर करना।
*    अपनी–अपनी खाल में सब मस्त।
अटकलें भिड़ाना।
*    अपने किए का क्या इलाज।
अठखेलियाँ सूझना।
*    अपने झोपड़े की खैर मनाओ।
अडियल टट्टू।
*    अपने पांव पर आप कुल्‍हाड़ी मारना।
अड्डे पर चहकना।
*    अपने पूत को कोई काना नहीं कहता।
अढ़ाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना।
*    अपने पैरों पर खड़ा होना।
अढ़ाई दिन की बादशाहत।
*    अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनाना।
अधर में लटकना या झूलना।
*    अपने मुँह मिया मिट्ठू बनाना।
अन्‍न जल उठ जाना।
*    अब की अब के साथ, जब की जब के साथ।
अन्‍न न लगना।
*    अब के बनिया देय उधार।
अपना अपना राग अलापना।
*    अब पछताए होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत।
अपना उल्‍लू सीधा करना।
*    अब सतवंती होकर बैठी, लूट लिया सारा संसार।
अपना सा मुँह लेकर रह जाना।
*    अबे-तबे करना।
अपनी खाल में मस्‍त रहना।
*    अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे।
अपनी खिचड़ी अलग पकाना।
*    अभी दिल्ली दूर है।
अपने पांव पर आप कुल्‍हाड़ी मारना।
*    अमरी की जान प्यारी, ग़रीब को दम भारी।
अपने पैरों पर खड़ा होना।
*    अरहर की टट्टिया, गुजराती ताला।
अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनाना।
*    अलख पुरुष की माया, कहीं धूप कहीं छाया।
अबे-तबे करना।
*    अशर्फ़ियाँ लुटें और कोयलों पर मोहर।
</sort>
*    असाढ़ जोतो लड़के ढार, सावन भादों हरवा है। <br />
क्वार जोतो घर का बैल, तब ऊंचे उनहारे।
*    असाढ़ मास आठें अंधियारी। जो निकले बादर जल धारी।। <br />
चन्दा निकले बादर फोड़। साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।
*    असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र।  <br />
तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।।
*    असुनी नलिया अन्त विनासै।गली रेवती जल को नासै।।  <br />
भरनी नासै तृनौ सहूतो।कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।
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Revision as of 08:17, 23 May 2011

कहावत लोकोक्ति मुहावरे वर्णमाला क्रमानुसार खोजें

                              अं                                                                                              क्ष    त्र    श्र
  • अंडा सिखावे बच्चे को चीं-चीं मत कर
  • अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे कोई
  • अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे।
  • अंत भला तो सब भला।
  • अंत भले का भला।
  • अंधा क्या जाने बसंत बहार।
  • अंधा बाँटे रेवड़ी (शीरनी), फिर फिर अपनों को दे।
  • अंधी पीसे कुत्ता‍ खाए।
  • अंधे की लाठी।

अंधेर नगरी चौपट राजा
टके सेर भाजी टके सेर खाजा।

  • अंधों का हाथी
  • अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।
  • अकेला हँसता भला न रोता भला।
  • अक्ल बड़ी या भैंस।
  • अक्‍ल का अंधा।
  • अक्‍ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना।
  • अक्‍ल पर पत्‍थर/परदा पड़ना।

अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।

  • अगर मगर करना।
  • अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ।
  • अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम

दास मलूका कह गए सब के दाता राम

  • अटकलें भिड़ाना।
  • अटकेगा सो भटकेगा।
  • अठखेलियाँ सूझना।
  • अडियल टट्टू।
  • अड्डे पर चहकना।
  • अढ़ाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना।
  • अढ़ाई दिन की बादशाहत।
  • अढ़ाई हाथ की लकड़ी, नौ हाथ का बीज।
  • अति ऊँचे भूधारन पर भुजगन के स्थान

तुलसी अति नीचे सुखद उंख अन्न असपान।

  • अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।

चँदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।

  • अधजल गगरी छलकत जाय।
  • अधर में लटकना या झूलना।
  • अनजान सुजान, सदा कल्याण।
  • अन्‍न जल उठ जाना।
  • अन्‍न न लगना।
  • अपना अपना कमाना, अपना अपना खाना।
  • अपना अपना राग अलापना।
  • अपना उल्‍लू सीधा करना।
  • अपना ढेंढर देखे नही, दूसरे की फुल्ली निहारे।
  • अपना मकान कोट (क़िले) समान।
  • अपना रख पराया चख।
  • अपना लाल गँवाय के दर दर माँगे भीख।
  • अपना सा मुँह लेकर रह जाना।
  • अपना ही पैसा खोया तो परखने वाले का क्या दोष।
  • अपनी अपनी तुनतुनी (ढफली), अपना अपना राग।
  • अपनी करनी पार उतरनी।
  • अपनी खाल में मस्‍त रहना।
  • अपनी खिचड़ी अलग पकाना।
  • अपनी गरज बावली।
  • अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं।
  • अपनी गली में कुत्ता भी शेर।
  • अपनी गाँठ पैसा तो, पराया आसरा कैसा।
  • अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो।
  • अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता।
  • अपनी टाँग उघारिए, आपहि मरिए लाज।
  • अपनी नाक कटे तो कटे दूसरों का सगुन तो बिगड़े।
  • अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना।
  • अपनी पगड़ी अपने हाथ,
  • अपनी–अपनी खाल में सब मस्त।
  • अपने किए का क्या इलाज।
  • अपने झोपड़े की खैर मनाओ।
  • अपने पांव पर आप कुल्‍हाड़ी मारना।
  • अपने पूत को कोई काना नहीं कहता।
  • अपने पैरों पर खड़ा होना।
  • अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनाना।
  • अपने मुँह मिया मिट्ठू बनाना।
  • अब की अब के साथ, जब की जब के साथ।
  • अब के बनिया देय उधार।
  • अब पछताए होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत।
  • अब सतवंती होकर बैठी, लूट लिया सारा संसार।
  • अबे-तबे करना।
  • अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे।
  • अभी दिल्ली दूर है।
  • अमरी की जान प्यारी, ग़रीब को दम भारी।
  • अरहर की टट्टिया, गुजराती ताला।
  • अलख पुरुष की माया, कहीं धूप कहीं छाया।
  • अशर्फ़ियाँ लुटें और कोयलों पर मोहर।
  • असाढ़ जोतो लड़के ढार, सावन भादों हरवा है।

क्वार जोतो घर का बैल, तब ऊंचे उनहारे।

  • असाढ़ मास आठें अंधियारी। जो निकले बादर जल धारी।।

चन्दा निकले बादर फोड़। साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।

  • असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र।

तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।।

  • असुनी नलिया अन्त विनासै।गली रेवती जल को नासै।।

भरनी नासै तृनौ सहूतो।कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।