दान की महिमा: Difference between revisions
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*[[माता]] की [[यात्रा]] के पुण्य-प्रसंग में पुत्र राजा सिद्वाराज प्रजा को लाखों रुपये का दान दिया। इससे मीणल के मन में [[अभिमान]] आ गया कि मेरे समान दान करने वाली जगत में दूसरी कौन होगी । | *[[माता]] की [[यात्रा]] के पुण्य-प्रसंग में पुत्र राजा सिद्वाराज प्रजा को लाखों रुपये का दान दिया। इससे मीणल के मन में [[अभिमान]] आ गया कि मेरे समान दान करने वाली जगत में दूसरी कौन होगी । | ||
*उसी रात्री को भगवान सोमनाथ जी ने सपने में कहा - 'मेरे मन्दिर में एक बहुत गरीब स्त्री यात्रा करने आयी है, तू उससे उसका पुण्य माँग सबेरे मीणल देवी ने सोचा, इसमें कौन-सी बड़ी बात है। रुपये देकर पुण्य ले | *उसी रात्री को भगवान सोमनाथ जी ने सपने में कहा - 'मेरे मन्दिर में एक बहुत गरीब स्त्री यात्रा करने आयी है, तू उससे उसका पुण्य माँग सबेरे मीणल देवी ने सोचा, इसमें कौन-सी बड़ी बात है। रुपये देकर पुण्य ले लूगी। | ||
*राजमाता ने गरीब स्त्री की खोज में आदमी भेजे। राजमाता के आदमी यात्रा में आयी हुई एक गरीब ब्राह्मणी को ले आये। | *राजमाता ने गरीब स्त्री की खोज में आदमी भेजे। राजमाता के आदमी यात्रा में आयी हुई एक गरीब ब्राह्मणी को ले आये। | ||
*राजमाता ने उस ब्राह्मणी से कहा-' अपना पुण्य मुझे दे दे और बदले में जितनी तेरी इच्छा हो उतना धन ले ले ।' उसने किसी तरह भी स्वीकार नहीं किया। | *राजमाता ने उस ब्राह्मणी से कहा-' अपना पुण्य मुझे दे दे और बदले में जितनी तेरी इच्छा हो उतना धन ले ले ।' उसने किसी तरह भी स्वीकार नहीं किया। |
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- दान की महिमा एक शिक्षाप्रद कहानी है।
- गुजरात की प्रसिद्ब राजमाता मीणल देवी बड़ी उदार थी। वह सवा करोड़ सोने की मोहरें लेकर सोमनाथ जी का दर्शन करने गयी। वहाँ जाकर उसने स्वर्ण-तुलादान आदि दिये।
- माता की यात्रा के पुण्य-प्रसंग में पुत्र राजा सिद्वाराज प्रजा को लाखों रुपये का दान दिया। इससे मीणल के मन में अभिमान आ गया कि मेरे समान दान करने वाली जगत में दूसरी कौन होगी ।
- उसी रात्री को भगवान सोमनाथ जी ने सपने में कहा - 'मेरे मन्दिर में एक बहुत गरीब स्त्री यात्रा करने आयी है, तू उससे उसका पुण्य माँग सबेरे मीणल देवी ने सोचा, इसमें कौन-सी बड़ी बात है। रुपये देकर पुण्य ले लूगी।
- राजमाता ने गरीब स्त्री की खोज में आदमी भेजे। राजमाता के आदमी यात्रा में आयी हुई एक गरीब ब्राह्मणी को ले आये।
- राजमाता ने उस ब्राह्मणी से कहा-' अपना पुण्य मुझे दे दे और बदले में जितनी तेरी इच्छा हो उतना धन ले ले ।' उसने किसी तरह भी स्वीकार नहीं किया।
- तब राजमाता ने कहा-;तुने ऐसा क्या पुण्य किया है-मुझे बता तो सही !
- ब्राह्मणी ने कहा-मैं घर से निकलकर सैकड़ों गाँवों में भीख माँगती हुई यहाँ तक पहुँची हूँ। कल तीर्थ का उपवास था। आज किसी पुण्यात्मा ने मुझे जैसा-तैसा थोड़ा-सा बिना नमक का सत्तू दिया। उसके आधे हिस्से से मैंने भगवान सोमेश्र्वर की पूजा की। आधे में से आधा एक अतिथि को दिया और शेष बचे हुए से मैंने ग्रहण किया।
- ब्रह्माणी ने राजमाता से कहा मेरा पुण्य ही क्या है। आप बड़ी पुण्यवती है आपके पिता, और पुत्र ,सभी राजा हैं। यात्रा की खुशी में आपने प्रजा को लाख़ों रुपये का दान दिया। सवा करोड़ मोहरों से शंकर की पूजा कि। इतना बड़ा पुण्य करने वाली आप मेरा अल्प-सा दीखने वाला पुण्य क्यों माँग रही हैं ? मुझ पर कोप न करें तो मैं निवेदन करुँ राजमाता ने क्रोध न करने का विश्वास दिलाया। तब ब्राह्मणी ने कहा- 'सच पूछें तो मेरा पुण्य आपके पुण्य से बहुत बढ़ा हुआ है। इसी से मैंने रुपयों बदले में इसे नही दिया। ब्राह्मणी की इन बातों से राजमाता मीणल देवी का अभिमान नष्ट हो गया।
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