चश्मा: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 15: Line 15:
{{संदर्भ ग्रंथ}}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
{{cite book | last = | first =  | title =हिन्दी विश्वकोश | edition =[[1964]] | publisher =नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी | location =भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language =हिन्दी | pages =280 | chapter =खण्ड 4 }}
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
[[Category:नया पन्ना]]
[[Category:नया पन्ना]]
__INDEX__
__INDEX__

Revision as of 11:04, 4 July 2011

चित्र:Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

thumb|250px|चश्मा
Eyeglasses
दृष्टि संबंधी दोषों का परिहार करने अथवा तीव्र एवं अरुचिकर प्रकाश से नेत्रों की रक्षा करने के लिये प्रयुक्त लेंसों को चश्मे के फ्रेम में धारण करने का प्रयोग बहुत प्राचीन काल से ही संसार के प्राय: सभी सभ्य देशों में चला आ रहा है। मुद्रण कला का विकास हाने पर जब अत्यंत छोटे एवं सघन अक्षरों में छपी पुस्तकों का बाहुल्य हुआ, तो उन्हें पढ़ने के लिये चश्मे की आवश्यकता का विशेष अनुभव होने लगा। फलस्वरूप 17 वीं शताब्दी में चश्मा निर्माण उद्योग बड़ी तेज़ी से बढ़ा और आज तो संसार के विभिन्न देशों में 35 से लेकर 50 प्रतिशत तक लोग किसी न किसी प्रकार के चश्मे का प्रयोग करते हैं।

दृष्टि दोषों के परिहार के लिये प्रयुक्त चश्मों में प्राय: तीन प्रकार के लेंस प्रयुक्त होते हैं। ये दृष्टिदोष की प्रकृति पर निर्भर करते हैं। सामान्यतया चार प्रकार के दोष आँखों में ऐसे पाए जाते हैं जिनसे चश्मों की सहायता से त्राण हो सकता है: thumb|250px|left|चश्मा
Eyeglasses

  • दूरदृष्टि
  • निकटदृष्टि
  • जरा-दूर दृष्टि

दृष्टिवैषम्य

इस विकार से ग्रस्त नेत्र की वर्तक शक्ति भिन्न-भिन्न दिशाओं में भिन्न होती है और साधारणतया किसी एक दिशा में यह अधिकतम तथा उसकी लंबवत्‌ दिशा में न्यूनतम होती है। परिणामस्वरूप किसी वस्तु से आने वाली सभी किरणें एक ही स्थान पर अभिसृत नहीं हो पाती और वस्तु धुँधली एवं अस्पष्ट दिखलाई पड़ती है। इस दोष के निवारणार्थ ऐसे बेलनाकार लेंसों का प्रयोग किया जाता है जिनकी शक्ति एक दिशा में अधिकतम और उसकी लंबवत्‌ दिशा में न्यूनतम होती हैं। इन्हें चश्मे के अंदर सही अक्ष पर बैठाया जाता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

“खण्ड 4”, हिन्दी विश्वकोश, 1964 (हिन्दी), भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी, 280।

बाहरी कड़ियाँ