मुहम्मद बहमनी शाह तृतीय: Difference between revisions

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मुहम्मद बहमनी शाह तृतीय [[बहमनी राज्य]] का तेरहवाँ (1463-82 ई.) सुल्तान था। सिंहासनासीन होने के समय उसकी उम्र केवल 9 वर्ष की थी और उसका सारा राज्य प्रबंध बड़े ही व्यवस्थित रूप से उसके मंत्री [[मुहम्मद गवाँ]] द्वारा संचालित होता था। जिसने [[कोंकण]] और [[गोवा]] के हिन्दू शासकों को पराजित किया था। मुहम्मदशाह तृतीय ने 1478 ई. में [[उड़ीसा]] को ध्वस्त कर डाला और 1481 ई. में सुदूर दक्षिण के [[काँची]] या [[कांजीवरम]] नगर को भी लूटा। यद्यपि उसका शासनकाल सैनिक सफलताओं से पूर्ण था, परन्तु उसका अंत दुःखद हुआ। मुहम्मदशाह अत्यधिक मद्यपान करता था और जाली चिट्ठियों के आधार पर मुहम्मद गवाँ की स्वामिभक्ति पर संदेह उत्पन्न कर 1481 ई. में उसका वध करा दिया गया। इन जाली चिट्ठियों का शीघ्र ही भंडाफोड़ हो गया किन्तु अगले ही वर्ष शोक और मदिरापान के कारण सुल्तान की मृत्यु हो गयी।  
मुहम्मद बहमनी शाह तृतीय [[बहमनी राज्य]] का तेरहवाँ (1463-82 ई.) सुल्तान था। सिंहासनासीन होने के समय उसकी उम्र केवल 9 वर्ष की थी और उसका सारा राज्य प्रबंध बड़े ही व्यवस्थित रूप से उसके मंत्री [[महमूद गवाँ]] द्वारा संचालित होता था। जिसने [[कोंकण]] और [[गोवा]] के हिन्दू शासकों को पराजित किया था। मुहम्मदशाह तृतीय ने 1478 ई. में [[उड़ीसा]] को ध्वस्त कर डाला और 1481 ई. में सुदूर दक्षिण के [[काँची]] या 'काँजीवरम' नगर को भी लूटा। यद्यपि उसका शासनकाल सैनिक सफलताओं से पूर्ण था, परन्तु उसका अंत दुःखद हुआ। मुहम्मदशाह अत्यधिक मद्यपान करता था और जाली चिट्ठियों के आधार पर मुहम्मद गवाँ की स्वामिभक्ति पर संदेह उत्पन्न कर 1481 ई. में उसका वध करा दिया गया। इन जाली चिट्ठियों का शीघ्र ही भंडाफोड़ हो गया किन्तु अगले ही वर्ष शोक और मदिरापान के कारण सुल्तान की मृत्यु हो गयी।  


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Revision as of 09:04, 7 July 2011

मुहम्मद बहमनी शाह तृतीय बहमनी राज्य का तेरहवाँ (1463-82 ई.) सुल्तान था। सिंहासनासीन होने के समय उसकी उम्र केवल 9 वर्ष की थी और उसका सारा राज्य प्रबंध बड़े ही व्यवस्थित रूप से उसके मंत्री महमूद गवाँ द्वारा संचालित होता था। जिसने कोंकण और गोवा के हिन्दू शासकों को पराजित किया था। मुहम्मदशाह तृतीय ने 1478 ई. में उड़ीसा को ध्वस्त कर डाला और 1481 ई. में सुदूर दक्षिण के काँची या 'काँजीवरम' नगर को भी लूटा। यद्यपि उसका शासनकाल सैनिक सफलताओं से पूर्ण था, परन्तु उसका अंत दुःखद हुआ। मुहम्मदशाह अत्यधिक मद्यपान करता था और जाली चिट्ठियों के आधार पर मुहम्मद गवाँ की स्वामिभक्ति पर संदेह उत्पन्न कर 1481 ई. में उसका वध करा दिया गया। इन जाली चिट्ठियों का शीघ्र ही भंडाफोड़ हो गया किन्तु अगले ही वर्ष शोक और मदिरापान के कारण सुल्तान की मृत्यु हो गयी।


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