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आंवला यूफॉरबियेसी फैमिली का पेड़ है। इसकी उत्पत्ति और विकास मुख्य रूप से भारत में मानी जाती है। आंवले का पेड़ भारत के प्राय: सभी प्रांतों में पैदा होता है। तुलसी की तरह आंवले का पेड़ भी धार्मिक दृष्टिकोण से पवित्र माना जाता है। स्त्रियां इसकी पूजा भी करती हैं।
साम्राज्य- पादप


आंवले का पेड़ 6 से 8 मीटर ऊंचा होता है तथा इसका तना टेढ़ा-मेढ़ा और 150 से 300 सेमी तक मोटा होता है। आंवले के पेड़ की छाल पतली और परत छोड़ती हुई होती है। आंवले के पत्ते इमली के पत्तों की तरह छोटी और नुकीली और लगभग आधा इंच लंबे होते हैं। जिससे नींबू के पत्तियां सी खुशबू आती है। इस पेड़ में फरवरी से मई के दौरान फूल लगते हैं जो आगे चल कर अक्टूबर से अप्रैल तक फल बनाते हैं। इसके पुष्प हरे-पीले रंग के बहुत छोटे गुच्छों में लगते हैं तथा फल गोलाकार लगभग 2.5 से 5 सेमी व्यास के गूदेदार हरे, पीले रंग के होते हैं। पके फलों का रंग लालिमायुक्त होता है। खरबूजे की भांति फल पर 6 रेखाएं 6 खंडों का प्रतीक होती हैं। फल की गुठली में 6 कोष (षट्कोषीय बीज) होते हैं, छोटे आंवलों में गूदा कम, रेशेदार और गुठली बड़ी होती है, औषधीय प्रयोग के लिए छोटे आंवले ही अधिक उपयुक्त होते हैं।
विभाग-मैंगोलियोफाइटा
 
वर्ग-मैंगोलियोफाइटा क्रम- सक्सीफ्रैगल्स
 
परिवार-ग्रोसुलैरीसी
 
जाति-रिबीस
 
प्रजाति- आर यूवा-क्रिस्पा
 
वैज्ञानिक नाम- रिबीस यूवा-क्रिस्पा
 
आंवला यूफॉरबियेसी फैमिली का पेड़ है। आंवला एशिया के अलावा यूरोप अफ्रीका में भी पाया जाता है। हिमालयी क्षेत्र और प्राद्वीपीय भारत में आंवला के पौधे बहुतायत मिलते हैं। इसकी उत्पत्ति और विकास मुख्य रूप से भारत में मानी जाती है। आंवले का पेड़ भारत के प्राय: सभी प्रांतों में पैदा होता है। तुलसी की तरह आंवले का पेड़ भी धार्मिक दृष्टिकोण से पवित्र माना जाता है। स्त्रियां इसकी पूजा भी करती हैं।
 
आंवले का पेड़ 6 से 8 मीटर ऊंचा झारीय पौधा होता है तथा इसका तना टेढ़ा-मेढ़ा और 150 से 300 सेमी तक मोटा होता है। आंवले के पेड़ की छाल पतली और परत छोड़ती हुई होती है। आंवले के पत्ते इमली के पत्तों की तरह छोटी और नुकीली और लगभग आधा इंच लंबे होते हैं। जिससे नींबू के पत्तियां सी खुशबू आती है। इस पेड़ में फरवरी से मई के दौरान फूल लगते हैं जो आगे चल कर अक्टूबर से अप्रैल तक फल बनाते हैं। इसके पुष्प हरे-पीले रंग के बहुत छोटे गुच्छों में लगते हैं तथा घंटे की तरह होते हैं। इसके फल सामान्य रूप से छोटे होते हैं, लेकिन प्रसंस्कृत पौधे में थोड़े बड़े फल लगते हैं। फल गोलाकार लगभग 2.5 से 5 सेमी व्यास के चिकने, गूदेदार हरे, पीले रंग के होते हैं। पके फलों का रंग लालिमायुक्त होता है। खरबूजे की भांति फल पर 6 रेखाएं 6 खंडों का प्रतीक होती हैं। फल की गुठली में 6 कोष (षट्कोषीय बीज) होते हैं, छोटे आंवलों में गूदा कम, रेशेदार और गुठली बड़ी होती है, औषधीय प्रयोग के लिए छोटे आंवले ही अधिक उपयुक्त होते हैं। स्वाद में इनके फल कसाय होते हैं।


आंवला (Emblic Myrobalan, Indian Gooseberry, Emblica Officinalis) शीतल (ठंडी) प्रकृति का होता है। आंवला युवकों को यौवन और बड़ों को युवा जैसी शक्ति प्रदान करता है। एक टॉनिक के रूप में आंवला शरीर और स्वास्थ्य के लिए अमृत के समान है। दिमागी परिश्रम करने वाले व्यक्तियों को वर्ष भर नियमित रूप से किसी भी विधि से आंवले का सेवन करने से दिमाग में तरावट और शक्ति मिलती है। कसैला आंवला खाने के बाद पानी पीने पर मीठा लगता है।
आंवला (Emblic Myrobalan, Indian Gooseberry, Emblica Officinalis) शीतल (ठंडी) प्रकृति का होता है। आंवला युवकों को यौवन और बड़ों को युवा जैसी शक्ति प्रदान करता है। एक टॉनिक के रूप में आंवला शरीर और स्वास्थ्य के लिए अमृत के समान है। दिमागी परिश्रम करने वाले व्यक्तियों को वर्ष भर नियमित रूप से किसी भी विधि से आंवले का सेवन करने से दिमाग में तरावट और शक्ति मिलती है। कसैला आंवला खाने के बाद पानी पीने पर मीठा लगता है।
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बवासीर [मस्से], स्वप्न दोष, स्मरण शक्ति का कमजोर होना, औरतों में श्वेत प्रदर, सोमरोग [बूंद-बूंद पेशाब आना मूत्र पर नियंत्रण नहीं रहना] आदि रोगों में भी पूर्व में बताए अनुसार शहद और आंवला रस का सेवन हितकारी है।
बवासीर [मस्से], स्वप्न दोष, स्मरण शक्ति का कमजोर होना, औरतों में श्वेत प्रदर, सोमरोग [बूंद-बूंद पेशाब आना मूत्र पर नियंत्रण नहीं रहना] आदि रोगों में भी पूर्व में बताए अनुसार शहद और आंवला रस का सेवन हितकारी है।


;आंवले के खेती का तरीका
===आंवले के खेती का तरीका===
आंवले का पौधा सीधे मिट्टी में रोपा जाता है। इसके अलावा आंवला के बीजों से भी नए पौधे उत्पन्न किए जा सकते हैं। यह पौधा सभी तरह की जलवायु के लिए उपयुक्त है। एक ओर जहां यह 45 डिग्री से भी अघिक तापमान सहन कर सकता है वहीं दूसरी ओर अधिक-से-अधिक शीत और कुहरे का भी इस पर कोई खास प्रभाव नहीं पडता। यही कारण है कि यह नमक युक्त मिट्टी से लेकर पोषक तत्वों से भरपूर उपजाऊ भूमि अथवा अपेक्षाकृत सूखी जलवायु और मिट्टी में भी बेहतर तरीके से विकास करने में सक्षम है। आंवला के पेड में मार्च से मई के दौरान फल बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। यूं तो आंवला के पौधे का लगभग हर भाग उपयोगी है लेकिन मुख्य रूप से इसके फलों की वजह से ही आंवला की पहचान औषधीय पौधे के रूप में की जाती है। आंवला के फलों को कच्चा अथवा पकने के बाद अपने उपयोग के लिए काम में लाया जा सकता है।
'''वृद्धि --''' एशिया और यूरोप में बड़े पैमाने पर आंवला की खेती होती है। आंवला के फल औषधीय गुणों से युक्त होते हैं, इसलिए इसकी व्यवसायिक खेती किसानों के लिए फायदेमंद होता है। यूं तो आंवला के पौधे का लगभग हर भाग उपयोगी है लेकिन मुख्य रूप से इसके फलों की वजह से ही आंवला की पहचान औषधीय पौधे के रूप में की जाती है। आंवला के फलों को कच्चा अथवा पकने के बाद अपने उपयोग के लिए काम में लाया जा सकता है।
 
'''जलवायु --''' भारत की जलवायु आंवले की खेती के लिहाज से सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इसके बावजूद ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, सकॉटलैंड, नॉर्वे आदि देशों में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जाती है। इसके फलों को विकसित होने के लिए सूर्य का प्रकाश आवश्यक माना जाता है। हालांकि आंवले को किसी भी मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन काली जलोढ़ मिट्टी को इसके लिए उपयुक्त माना जाता है। यह पौधा सभी तरह की जलवायु के लिए उपयुक्त है। एक ओर जहां यह 45 डिग्री से भी अधिक तापमान सहन कर सकता है वहीं दूसरी ओर अधिक-से-अधिक शीत और कुहरे का भी इस पर कोई खास प्रभाव नहीं पडता। यही कारण है कि यह नमक युक्त मिट्टी से लेकर पोषक तत्वों से भरपूर उपजाऊ भूमि अथवा अपेक्षाकृत सूखी जलवायु और मिट्टी में भी बेहतर तरीके से विकास करने में सक्षम है।  
 
'''खेती --''' आंवले का पौधा सीधे मिट्टी में रोपा जाता है। इसके अलावा आंवला के बीजों से भी नए पौधे उत्पन्न किए जा सकते हैं। आंवले को बीज के उगाने की अपेक्षा कलम लगाना ज्यादा अच्छा माना जाता है। कलम पौधा जल्द ही मिट्टी में जड़ जमा लेता है और इसमें जल्द फल लग जाते हैं। कस्पोस्ट खाद का इस्तेमाल कर भारी मात्रा में फल पाए जा सकते हैं। आंवले के फल विभिन्न आकार के होते हैं। छोटे फल बड़े फल की अपेक्षा ज्यादा तीखे होते हैं।
 
'''कीटनाशक का प्रयोग --''' आंवला के पौधे और फल कोमल प्रकृति के होते हैं, इसलिए इसमें कीड़े जल्दी लग जाते हैं। आंवले की व्यवसायिक खेती के दौरान यह ध्यान रखना होता है कि पौधे और फल को संक्रमण से रोका जाए। शुरुआती दिनों में इनमें लगे कीड़ों और उसके लार्वे को हाथ से हटाया जा सकता है। पोटाशियम सल्फाइड कीटाणुओं और फफुंदियों की रोकथाम के लिए उपयोगी माना जाता है।


;विभिन्न भाषाओं में आंवला का नाम
;विभिन्न भाषाओं में आंवला का नाम

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साम्राज्य- पादप

विभाग-मैंगोलियोफाइटा

वर्ग-मैंगोलियोफाइटा क्रम- सक्सीफ्रैगल्स

परिवार-ग्रोसुलैरीसी

जाति-रिबीस

प्रजाति- आर यूवा-क्रिस्पा

वैज्ञानिक नाम- रिबीस यूवा-क्रिस्पा

आंवला यूफॉरबियेसी फैमिली का पेड़ है। आंवला एशिया के अलावा यूरोप अफ्रीका में भी पाया जाता है। हिमालयी क्षेत्र और प्राद्वीपीय भारत में आंवला के पौधे बहुतायत मिलते हैं। इसकी उत्पत्ति और विकास मुख्य रूप से भारत में मानी जाती है। आंवले का पेड़ भारत के प्राय: सभी प्रांतों में पैदा होता है। तुलसी की तरह आंवले का पेड़ भी धार्मिक दृष्टिकोण से पवित्र माना जाता है। स्त्रियां इसकी पूजा भी करती हैं।

आंवले का पेड़ 6 से 8 मीटर ऊंचा झारीय पौधा होता है तथा इसका तना टेढ़ा-मेढ़ा और 150 से 300 सेमी तक मोटा होता है। आंवले के पेड़ की छाल पतली और परत छोड़ती हुई होती है। आंवले के पत्ते इमली के पत्तों की तरह छोटी और नुकीली और लगभग आधा इंच लंबे होते हैं। जिससे नींबू के पत्तियां सी खुशबू आती है। इस पेड़ में फरवरी से मई के दौरान फूल लगते हैं जो आगे चल कर अक्टूबर से अप्रैल तक फल बनाते हैं। इसके पुष्प हरे-पीले रंग के बहुत छोटे गुच्छों में लगते हैं तथा घंटे की तरह होते हैं। इसके फल सामान्य रूप से छोटे होते हैं, लेकिन प्रसंस्कृत पौधे में थोड़े बड़े फल लगते हैं। फल गोलाकार लगभग 2.5 से 5 सेमी व्यास के चिकने, गूदेदार हरे, पीले रंग के होते हैं। पके फलों का रंग लालिमायुक्त होता है। खरबूजे की भांति फल पर 6 रेखाएं 6 खंडों का प्रतीक होती हैं। फल की गुठली में 6 कोष (षट्कोषीय बीज) होते हैं, छोटे आंवलों में गूदा कम, रेशेदार और गुठली बड़ी होती है, औषधीय प्रयोग के लिए छोटे आंवले ही अधिक उपयुक्त होते हैं। स्वाद में इनके फल कसाय होते हैं।

आंवला (Emblic Myrobalan, Indian Gooseberry, Emblica Officinalis) शीतल (ठंडी) प्रकृति का होता है। आंवला युवकों को यौवन और बड़ों को युवा जैसी शक्ति प्रदान करता है। एक टॉनिक के रूप में आंवला शरीर और स्वास्थ्य के लिए अमृत के समान है। दिमागी परिश्रम करने वाले व्यक्तियों को वर्ष भर नियमित रूप से किसी भी विधि से आंवले का सेवन करने से दिमाग में तरावट और शक्ति मिलती है। कसैला आंवला खाने के बाद पानी पीने पर मीठा लगता है।

आंवला एक ऎसा फल है जिसमें अम्ल, क्षार, लवण, तिक्त, मधु और कषाय गुण एक साथ होते हैं। यह त्रिदोष से बचाता है। आंवला शरीर में षट्रसों की पूर्ति कर रोग प्रतिरोधक शक्ति प्रदान करता है। चरक संहितानुसार आंवले के 100 ग्राम रस में 921 मिलीग्राम और 100 ग्राम गूदे [फल का चूरा] में 720 मिलीग्राम विटामिन सी और अन्य शरीर के लिए आवश्यक खनिज तत्व पाए जाते हैं।

औषधीय उपयोग

बार-बार होने वाली बीमारियों से बचाव करने वाला आंवला के फलों में विटामिन "सी" का सबसे बड़ा भण्डार है। इसका विटामिन "सी" पकाने, सुखाने, तलने, पुराना होने पर भी नष्ट नहीं होता। आंवला हरा, ताजा हो या प्राकृतिक रूप से सुखाया हुआ पुराना हो, इसके गुण नष्ट नहीं होते। इसकी अम्लता इसके गुणों की रक्षा करती है। आंवला का सेवन स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी लाभप्रद माना गया है। यह शरीर में विटामिन सी की कमी को पूरा करता है और इस तरह विटामिन सी की कमी से होने वाले रोगों से यह बचाव करने में सक्षम है। आयुर्वेद में आंवले को बहुत महत्ता प्रदान की गई है, जिससे इसे रसायन माना जाता है। च्यवनप्राश आयुर्वेद का प्रसिद्ध रसायन है, जो टॉनिक के रूप में आम आदमी भी प्रयोग करता है। इसमें आंवले की अधिकता के कारण ही विटामिन `सी´ भरपूर होता है। यह शरीर में आरोग्य शक्ति बढ़ाता है। त्वचा, नेत्र रोग और केश (बालों) के लिए विटामिन सी बहुत उपयोगी है। संक्रमण से बचाने, मसूढ़ों को स्वस्थ रखने, घाव भरने और खून बनाने में भी विटामिन सी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसके अलावा आंवला का उपयोग त्रिफला बनाने में किया जाता है जो कब्ज या पेट में गैस की समस्या को दूर करने के लिए उपयुक्त दवा है। त्रिफला स्वास्थ्य को बहेतर बनाने के साथ ही शरीर में रोग प्रतिरोधी क्षमता को भी बढाता है। भारत में आंवला का उपयोग एक कॉस्मेटिक के रूप में भी किया जाता है। बालों के लिए यह एक हेल्थ टॉनिक है। इसके नियमित उपयोग से बाल काले होते हैं और उनकी चमक भी बढती है।

आंवला आयुर्वेद और यूनानी पैथी की प्रसिद्ध दवाइयों, च्यवन प्राश, ब्राह्म रसायन, धात्री रसायन, अनोशदारू, त्रिफला रसायन, आमलकी रसायन, त्रिफला चूर्ण, धायरिष्ट, त्रिफलारिष्ट, त्रिफला घृत आदि के साथ मुरब्बे, शर्बत, केश तेल आदि निर्माण में प्रयुक्त होता है। रक्तवर्धक नवायस लौह, धात्री लौह, योगराज रसायन, त्रिफला मंडूर भी आंवले से बनाए जाते हैं। मानव शरीर में सिर्फ श्वेत कुष्ठ [ल्यूकोडर्मा] में आंवला उपयोग में नहीं लिया जाता। इसके अलावा सिर से पैर तक का कोई ऎसा रोग नहीं जहां आंवला दवा या खुराक के रूप में उपयोगी न रहता हो।

भारतीय गृहिणी की रसोई में भी आंवला, चटनी, सब्जी, आचार, मुरब्बे के रूप में सदा से विराजमान है। बढ़ती उम्र के प्रभावों को धीमा करने का अद्भुत गुण इसे "रसायन" बनाता है। इसके निरंतर प्रयोग से बाल टूटना, रूसी, सफेद होना रूक जाते हैं। नेत्र ज्योति सुरक्षित रहती है। दांत मजबूत बने रहते हैं तथा नेत्र, हाथ पांव के तलुओं, मूत्रमार्ग, आमाशय, आंतों तथा मलमार्ग की जलन समाप्त हो जाती है। इसके प्रयोग से इम्युनिटी पावर सुरक्षित रहती है। आजकल आंवला+ पालक+ गाजर का मिश्रित रस जूस बेचने वालों व पीने वालों का सर्वप्रिय स्वास्थ्यवर्धक पेय है।

आयुर्वेद के विद्वानों एवं ग्रंथों में वनौषधियों में हरड़ और आंवले को सर्वश्रेष्ठ माना है। इसमें हरड़ रोगनाशक तथा आंवला सर्वोत्तम स्वास्थ्य रक्षक माने गए हैं। आंवले में खट्टापन एवं कसैलापन प्रधान रूप से है पर इसमें मिठास, कडुवापन और खारापन भी गौण रूप से विद्यमान है। आयुर्वेद ग्रंथों के अनुसार आंवला कब्जकारक, मूत्रल, रक्त शोधक, पाचक, रूचिवर्धक तथा अतिसार, प्रमेह, दाह, पीलिया, अम्ल पित्त, रक्त विकार, रक्त स्त्राव, बवासीर, कब्ज, अजीर्ण, बदहजमी, श्वास, खांसी, वीर्य क्षीणता, रक्त प्रदर नाशक तथा आयुवर्धक है।

शहद और बादाम का तेल आंवले के दोषों को दूर करता है तथा इसके गुणों में सहायक होता है। आंवला प्लीहा (तिल्ली) के लिए हानिकारक होता है लेकिन शहद के साथ सेवन करने से यह दुष्प्रभाव खत्म हो जाता है। मात्रा :- आंवले का रस 10 से 20 मिलीलीटर। चूर्ण 5 से 10 ग्राम। आंवले के रस को कांच एवं प्लास्टिक के बर्तन में रख सकते हैं। हरा ताजा आंवला नहीं मिलने पर सूखे आंवले का चूर्ण बनाकर सुबह और शाम दूध या ताजा पानी के साथ लेना चाहिए।

आंवला से रोगों के उपचार

अतिसार: कच्चा आंवला पीस कर रोगी की नाभि के चारों ओर कटोरी जैसी बनाकर इस नाभि में अदरक का रस भर दें।

हिचकी: आंवला, कैथ का गूदा, छोटी पीपर का चूर्ण, शहद से चटाएं तो हिचकियां मिट जाएंगी।

अजीर्ण: ताजा आंवला, अदरक, हरा धनिया मिलाकर चटनी बनावें इसमें सेंधा नमक, काला नमक, हींग, जीरा, काली मिर्च मिला चटावें। डकारें आएंगी, भूख खुलेगी, हाजमा बढ़ेगा।

स्त्रियों का बहुमूत्र [सोमरोग]: आंवले का रस, पका हुआ केले का गूदा, शहद व मिश्री चारों मिलाकर चटाएं।

मूत्र कष्ट: आंवले का 25 ग्राम ताजा रस, छोटी इलायची के बीजों का चूर्ण बुरक कर पिलाएं। मूत्र आने लगेगा।

बवासीर: आंवले पीस कर पीठी को मिट्टी के बर्तन में लेप कर दें। इसमें गाय की ताजा छाछ भर रोगी को पिलाएं।

मुंह के छाले और घाव: आंवले के पत्तों के काढे से दिन में 2 से 3 बार कुल्ले कराएं।

श्वेत प्रदर: आंवले की गुठली फोड़ कर निकाले बीजों का चूर्ण पानी से पीस कर शहद व मिश्री मिला पिलाएं।

नेत्रों के रोग: आंवला छिलका दरदरा कूट कर पानी में भिगोकर रखें। इसे कपड़े से [साफ] छान कर दिन में तीन बार 2-2 बूंद आंखों में टपकाएं।

बाल झड़ना: आंवला रस और नारियल तेल बराबर मात्रा में मिलाकर बालों की जड़ों में मालिश करें।

नाक से खून आना: नाक से खून आने पर नाक में आंवले के रस की दो बूंद डालें तथा आंवले को पीस कर सिर पर लेप करें।

प्रतिदिन आंवले का रस और शहद पचास-पचास ग्राम सुबह तथा रात सोते समय लेने से पेट का मोटापा दूर हो जाता है। सूखी खांसी में भी आंवला रस और शहद फायदेमंद है।

हाई ब्लडप्रैशर, एसिडिटी, दृष्टि दोष, मौसमी बुखार, सिर दर्द, पित्त शूल, वायु विकार, अनिद्रा, उल्टी आना, बार-बार पेशाब जाना, प्रोस्टेट ग्रंथि के विकार, हकलाना, तुतलाना, पेशाब में जलन, ह्वदयशूल [पित्त दोष] आदि रोगों में पचास-पचास ग्राम आंवला रस और शहद मिलाकर रोजाना सोते समय लेने से रोग विकार दूर होकर शरीर स्वस्थ बन जाता है।

बवासीर [मस्से], स्वप्न दोष, स्मरण शक्ति का कमजोर होना, औरतों में श्वेत प्रदर, सोमरोग [बूंद-बूंद पेशाब आना मूत्र पर नियंत्रण नहीं रहना] आदि रोगों में भी पूर्व में बताए अनुसार शहद और आंवला रस का सेवन हितकारी है।

आंवले के खेती का तरीका

वृद्धि -- एशिया और यूरोप में बड़े पैमाने पर आंवला की खेती होती है। आंवला के फल औषधीय गुणों से युक्त होते हैं, इसलिए इसकी व्यवसायिक खेती किसानों के लिए फायदेमंद होता है। यूं तो आंवला के पौधे का लगभग हर भाग उपयोगी है लेकिन मुख्य रूप से इसके फलों की वजह से ही आंवला की पहचान औषधीय पौधे के रूप में की जाती है। आंवला के फलों को कच्चा अथवा पकने के बाद अपने उपयोग के लिए काम में लाया जा सकता है।

जलवायु -- भारत की जलवायु आंवले की खेती के लिहाज से सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इसके बावजूद ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, सकॉटलैंड, नॉर्वे आदि देशों में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जाती है। इसके फलों को विकसित होने के लिए सूर्य का प्रकाश आवश्यक माना जाता है। हालांकि आंवले को किसी भी मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन काली जलोढ़ मिट्टी को इसके लिए उपयुक्त माना जाता है। यह पौधा सभी तरह की जलवायु के लिए उपयुक्त है। एक ओर जहां यह 45 डिग्री से भी अधिक तापमान सहन कर सकता है वहीं दूसरी ओर अधिक-से-अधिक शीत और कुहरे का भी इस पर कोई खास प्रभाव नहीं पडता। यही कारण है कि यह नमक युक्त मिट्टी से लेकर पोषक तत्वों से भरपूर उपजाऊ भूमि अथवा अपेक्षाकृत सूखी जलवायु और मिट्टी में भी बेहतर तरीके से विकास करने में सक्षम है।

खेती -- आंवले का पौधा सीधे मिट्टी में रोपा जाता है। इसके अलावा आंवला के बीजों से भी नए पौधे उत्पन्न किए जा सकते हैं। आंवले को बीज के उगाने की अपेक्षा कलम लगाना ज्यादा अच्छा माना जाता है। कलम पौधा जल्द ही मिट्टी में जड़ जमा लेता है और इसमें जल्द फल लग जाते हैं। कस्पोस्ट खाद का इस्तेमाल कर भारी मात्रा में फल पाए जा सकते हैं। आंवले के फल विभिन्न आकार के होते हैं। छोटे फल बड़े फल की अपेक्षा ज्यादा तीखे होते हैं।

कीटनाशक का प्रयोग -- आंवला के पौधे और फल कोमल प्रकृति के होते हैं, इसलिए इसमें कीड़े जल्दी लग जाते हैं। आंवले की व्यवसायिक खेती के दौरान यह ध्यान रखना होता है कि पौधे और फल को संक्रमण से रोका जाए। शुरुआती दिनों में इनमें लगे कीड़ों और उसके लार्वे को हाथ से हटाया जा सकता है। पोटाशियम सल्फाइड कीटाणुओं और फफुंदियों की रोकथाम के लिए उपयोगी माना जाता है।

विभिन्न भाषाओं में आंवला का नाम
भाषा नाम
हिन्दी आंवला, आमला, आंवरा।
अंग्रेज़ी एमब्लिक माइरोबेलन, इंडियन गोसबेरी।
संस्कृत आमलकी, धात्री, शिवा।
मराठी आंवली, आंवलकांटी, आंवला।
गुजराती आंवला, आमला।
बंगाली आमलकी, आमला, आंगला।
तेलगू असरिकाय, उशीरिकई।
कन्नड़ निल्लकाय, नेल्लि।
द्राविड़ी नेल्लिक्काय्, अमृत फल, वयस्था।
अरबी आमलन्।
लैटिन एमब्लिका ऑफिसिनेलिस।


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