उत्सवसंकेत: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "ref>(" to "ref>")
m (Text replace - ")</ref" to "</ref")
Line 3: Line 3:
<poem>'पौरवं युधि निर्जित्य दस्यून् पर्वतवासिन:,  
<poem>'पौरवं युधि निर्जित्य दस्यून् पर्वतवासिन:,  
गणानुत्सव संकेतानजयत् सप्त पांडव:।'<ref>[[सभा पर्व महाभारत]] 27, 16</ref></poem>
गणानुत्सव संकेतानजयत् सप्त पांडव:।'<ref>[[सभा पर्व महाभारत]] 27, 16</ref></poem>
कुछ विद्वानों का मत है कि प्राचीन [[साहित्य]] में वर्णित किन्नर देश शायद इसी प्रदेश में स्थित था। इन गणराज्यों के नामकरण का कारण संभवत: यह था कि इनके निवासियों में सामान्य विवाहोत्सव की रीति प्रचलित नहीं थी, वरन् भावी वरवधू संकेत या पूर्व-निश्चित एकांत स्थान पर मिलकर गंधर्व रीति में विवाह करते थे।<ref>[[आदिवासी]] गौंडों की विशिष्ट प्रथा जिसे घोटुल कहते हैं इससे मिलती-जुलती है। [[मत्स्यपुराण]] 154, 406 में भी इसका निर्देश है)</ref> वर्तमान लाहूल के इलाके में जो किन्नर देश में शामिल था इस प्रकार के रीतिरिवाज आज भी प्रचलित हैं, विशेषत: यहाँ की कनौड़ी नामक जाति में। कनौड़ी शायद किन्नर का ही अपभ्रंश है। [[कालिदास]] ने भी उत्सवसंकेतों का वर्णन रघु की दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में देश के इसी भाग में किया है और इन्हें किन्नरों से सम्बद्ध बताया है-  
कुछ विद्वानों का मत है कि प्राचीन [[साहित्य]] में वर्णित किन्नर देश शायद इसी प्रदेश में स्थित था। इन गणराज्यों के नामकरण का कारण संभवत: यह था कि इनके निवासियों में सामान्य विवाहोत्सव की रीति प्रचलित नहीं थी, वरन् भावी वरवधू संकेत या पूर्व-निश्चित एकांत स्थान पर मिलकर गंधर्व रीति में विवाह करते थे।<ref>[[आदिवासी]] गौंडों की विशिष्ट प्रथा जिसे घोटुल कहते हैं इससे मिलती-जुलती है। [[मत्स्यपुराण]] 154, 406 में भी इसका निर्देश है</ref> वर्तमान लाहूल के इलाके में जो किन्नर देश में शामिल था इस प्रकार के रीतिरिवाज आज भी प्रचलित हैं, विशेषत: यहाँ की कनौड़ी नामक जाति में। कनौड़ी शायद किन्नर का ही अपभ्रंश है। [[कालिदास]] ने भी उत्सवसंकेतों का वर्णन रघु की दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में देश के इसी भाग में किया है और इन्हें किन्नरों से सम्बद्ध बताया है-  
<poem>'शरैरुत्सबसंकेतान्स कृत्वा विरतोत्सवान्,  
<poem>'शरैरुत्सबसंकेतान्स कृत्वा विरतोत्सवान्,  
जयोदाहरणं बाह्वोर्गापयामास किन्नरान्।'<ref>[[रघुवंश]] 4, 78</ref></poem>
जयोदाहरणं बाह्वोर्गापयामास किन्नरान्।'<ref>[[रघुवंश]] 4, 78</ref></poem>

Revision as of 12:42, 27 July 2011

चित्र:Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

वर्तमान हिमाचल प्रदेश और पंजाब की पहाड़ियों में बसे हुए सप्त गणराज्यों का सामूहिक नाम जिनका उल्लेख महाभारत में है। इन्हें अर्जुन ने जीता था-

'पौरवं युधि निर्जित्य दस्यून् पर्वतवासिन:,
गणानुत्सव संकेतानजयत् सप्त पांडव:।'[1]

कुछ विद्वानों का मत है कि प्राचीन साहित्य में वर्णित किन्नर देश शायद इसी प्रदेश में स्थित था। इन गणराज्यों के नामकरण का कारण संभवत: यह था कि इनके निवासियों में सामान्य विवाहोत्सव की रीति प्रचलित नहीं थी, वरन् भावी वरवधू संकेत या पूर्व-निश्चित एकांत स्थान पर मिलकर गंधर्व रीति में विवाह करते थे।[2] वर्तमान लाहूल के इलाके में जो किन्नर देश में शामिल था इस प्रकार के रीतिरिवाज आज भी प्रचलित हैं, विशेषत: यहाँ की कनौड़ी नामक जाति में। कनौड़ी शायद किन्नर का ही अपभ्रंश है। कालिदास ने भी उत्सवसंकेतों का वर्णन रघु की दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में देश के इसी भाग में किया है और इन्हें किन्नरों से सम्बद्ध बताया है-

'शरैरुत्सबसंकेतान्स कृत्वा विरतोत्सवान्,
जयोदाहरणं बाह्वोर्गापयामास किन्नरान्।'[3]

अर्थात् रघु ने उत्सवसंकेतों को बाणों से पराजित करके उनकी सारी प्रसन्नता हर ली और वहाँ के किन्नरों को अपनी भुजाओं के बल के गीत गाने पर विवश कर दिया। रघुवंश 4, 77 में कालिदास ने उत्सवसंकेतों को पर्वतीयगण कहा है-

'तत्र जन्यं रघोर्घोरं पर्वतीयगणैरभूत'।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सभा पर्व महाभारत 27, 16
  2. आदिवासी गौंडों की विशिष्ट प्रथा जिसे घोटुल कहते हैं इससे मिलती-जुलती है। मत्स्यपुराण 154, 406 में भी इसका निर्देश है
  3. रघुवंश 4, 78

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख