आत्मकथ्य -जयशंकर प्रसाद: Difference between revisions
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तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती। | तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती। | ||
किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही | किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही ख़ाली करने वाले- | ||
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले। | अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले। | ||
यह विडंबना! अरी सरलते हँसी तेरी उड़ाऊँ मैं। | यह विडंबना! अरी सरलते हँसी तेरी उड़ाऊँ मैं। |
Revision as of 12:41, 4 September 2011
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मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी अपनी यह, |