जगदीश चंद्र बोस: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
Line 9: Line 9:
==अध्यापन==
==अध्यापन==
{{tocright}}  
{{tocright}}  
वर्ष 1885 में ये स्वदेश लौट कर आये और भौतिक विषय के सहायक प्राध्यापक के रूप में 'प्रेसिडेंसी कॉलेज' में अध्यापन करने लगे। यहां वह 1915 तक कार्यरत रहे। उस समय भारतीय शिक्षकों को अंग्रेज शिक्षकों की तुलना में एक तिहाई वेतन दिया जाता था। इसका श्री जगदीश चंद्र बोस ने बहुत विरोध किया और तीन वर्षों तक बिना वेतन लिए काम करते रहे, जिसके कारण उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई और उन पर काफ़ी कर्ज भी हो गया था। इस कर्ज को चुकाने के लिये उन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन भी बेच दी। चौथे वर्ष जगदीश चंद्र बोस की जीत हुई और उन्हें पूरा वेतन दे दिया गया। बोस एक बहुत अच्छे शिक्षक भी थे, वह कक्षा में पढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक प्रदर्शनों का प्रयोग करते थे। '''बोस के ही कुछ छात्र सत्येंद्रनाथ बोस  आगे चलकर प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री बने।
वर्ष 1885 में ये स्वदेश लौट कर आये और भौतिक विषय के सहायक प्राध्यापक के रूप में 'प्रेसिडेंसी कॉलेज' में अध्यापन करने लगे। यहां वह 1915 तक कार्यरत रहे। उस समय भारतीय शिक्षकों को अंग्रेज शिक्षकों की तुलना में एक तिहाई वेतन दिया जाता था। इसका श्री जगदीश चंद्र बोस ने बहुत विरोध किया और तीन वर्षों तक बिना वेतन लिए काम करते रहे, जिसके कारण उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई और उन पर काफ़ी कर्ज भी हो गया था। इस कर्ज को चुकाने के लिये उन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन भी बेच दी। चौथे वर्ष जगदीश चंद्र बोस की जीत हुई और उन्हें पूरा वेतन दे दिया गया। बोस एक बहुत अच्छे शिक्षक भी थे, वह कक्षा में पढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक प्रदर्शनों का प्रयोग करते थे। बोस के ही कुछ छात्र [[सत्येंद्रनाथ बोस]] आगे चलकर प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री बने।
 
==प्रयोग और सफलता==
==प्रयोग और सफलता==
*जगदीश चंद्र बोस ने सूक्ष्म तरंगों (माइक्रोवेव) के क्षेत्र में वैज्ञानिक कार्य तथा अपवर्तन, विवर्तन और ध्रुवीकरण के विषय में अपने प्रयोग आरंभ कर दिये थे।  
*जगदीश चंद्र बोस ने सूक्ष्म तरंगों (माइक्रोवेव) के क्षेत्र में वैज्ञानिक कार्य तथा अपवर्तन, विवर्तन और ध्रुवीकरण के विषय में अपने प्रयोग आरंभ कर दिये थे।  

Revision as of 12:44, 17 May 2010

जगदीश चंद्र बोस / J. C. Bose

परिचय

जगदीश चंद्र बोस
J. C. Bose|thumb|200px
श्री जगदीश चंद्र बोस का जन्म 30 नवम्बर 1858 में ढाका ज़िले के फरीदपुर ज़िले के माइमसिंह गांव में हुआ था, जो कि अब बंगला देश का भाग है।

शिक्षा

ग्यारह वर्ष की आयु तक गांव के ही एक विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने के बाद में ये कलकत्ता आ गये और 'सेंट जेवियर स्कूल' में प्रवेश लिया। जगदीश चंद्र बोस की जीव विज्ञान में बहुत रुचि थी फिर भी भौतिकी के एक विख्यात प्रो. फादर लाफोण्ट ने बोस को 'भौतिक शास्त्र' के अध्ययन के लिए प्रेरित किया। भौतिक शास्त्र में बी. ए. की डिग्री प्राप्त करने के बाद 22 वर्षीय बोस चिकित्सा विज्ञान की शिक्षा के लिए लंदन चले गए। मगर स्वास्थ्य के खराब रहने की वजह से इन्होंने चिकित्सक (डॉक्टर) बनने का विचार छोड़ दिया और कैम्ब्रिज के 'क्राइस्ट महाविद्यालय' से बी. ए. की डिग्री ले ली।

अध्यापन

वर्ष 1885 में ये स्वदेश लौट कर आये और भौतिक विषय के सहायक प्राध्यापक के रूप में 'प्रेसिडेंसी कॉलेज' में अध्यापन करने लगे। यहां वह 1915 तक कार्यरत रहे। उस समय भारतीय शिक्षकों को अंग्रेज शिक्षकों की तुलना में एक तिहाई वेतन दिया जाता था। इसका श्री जगदीश चंद्र बोस ने बहुत विरोध किया और तीन वर्षों तक बिना वेतन लिए काम करते रहे, जिसके कारण उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो गई और उन पर काफ़ी कर्ज भी हो गया था। इस कर्ज को चुकाने के लिये उन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन भी बेच दी। चौथे वर्ष जगदीश चंद्र बोस की जीत हुई और उन्हें पूरा वेतन दे दिया गया। बोस एक बहुत अच्छे शिक्षक भी थे, वह कक्षा में पढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक प्रदर्शनों का प्रयोग करते थे। बोस के ही कुछ छात्र सत्येंद्रनाथ बोस आगे चलकर प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री बने।

प्रयोग और सफलता

  • जगदीश चंद्र बोस ने सूक्ष्म तरंगों (माइक्रोवेव) के क्षेत्र में वैज्ञानिक कार्य तथा अपवर्तन, विवर्तन और ध्रुवीकरण के विषय में अपने प्रयोग आरंभ कर दिये थे।
  • लघु तरंगदैर्ध्य, रेडियो तरंगों तथा श्वेत एवं पराबैंगनी प्रकाश दोनों के रिसीवर में गेलेना क्रिस्टल का प्रयोग बोस के द्वारा ही विकसित किया गया था।
  • मारकोनी के प्रदर्शन से 2 वर्ष पहले ही 1885 में बोस ने रेडियो तरंगों द्वारा बेतार संचार का प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन में जगदीश चंद्र बोस ने दूर से एक घण्टी बजाई और बारूद में विस्फोट कराया था।
  • आजकल प्रचलित बहुत सारे माइक्रोवेव उपकरण जैसे वेव गाईड, ध्रुवक, परावैद्युत लैंस, विद्युतचुम्बकीय विकिरण के लिये अर्धचालक संसूचक, इन सभी उपकरणों का उन्नींसवी सदी के अंतिम दशक में बोस ने अविष्कार किया और उपयोग किया था।
  • बोस ने ही सूर्य से आने वाले विद्युत चुम्बकीय विकिरण के अस्तित्व का सुझाव दिया था जिसकी पुष्टि 1944 में हुई।
  • इसके बाद बोस ने, किसी घटना पर पौधों की प्रतिक्रिया पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया। बोस ने दिखाया कि यांत्रिक, ताप, विद्युत तथा रासायनिक जैसी विभिन्न प्रकार की उत्तेजनाओं में सब्जियों के ऊतक भी प्राणियों के समान विद्युतीय संकेत उत्पन्न करते हैं।

'नाइट' की उपाधि

1917 में जगदीश चंद्र बोस को "नाइट" (Knight) की उपाधि प्रदान की गई तथा शीघ्र ही भौतिक तथा जीव विज्ञान के लिए 'रॉयल सोसायटी लंदन' के फैलो चुन लिए गए। बोस ने अपना पूरा शोधकार्य बिना किसी अच्छे (महगें) उपकरण और प्रयोगशाला के किया था, इसलिये जगदीश चंद्र बोस एक अच्छी प्रयोगशाला बनाने की सोच रहे थे। 'बोस इंस्टीट्यूट' (बोस विज्ञान मंदिर) इसी विचार से प्रेरित है जो विज्ञान में शोध कार्य के लिए राष्ट्र का एक प्रसिद्ध केन्द्र है।