छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6 खण्ड-7: Difference between revisions
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- छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय छठा का यह सातवाँ खण्ड है।
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- मन और अन्न का परस्परिक सम्बन्ध
इस खण्ड में 'मन और अन्न का पारस्परिक सम्बन्ध' बताया गया है। उद्दालक ने एक दृष्टान्त से इसे समझाया है। उन्होंने अपने पुत्र श्वेतकेतु से कहा-'हे वत्स! यह मनुष्य सोलह कलाओं को धारण कर सकता है। यदि तुम पन्द्रह दिन तक भोजन न करो और मात्र जल का ही सेवन करते रहो, तो तुम्हारा जीवन नष्ट नहीं होगा; क्योंकि 'प्राण' को जल-रूप कहा गया है। केवल जल ग्रहण करने से जीवन का अन्त नहीं होता।' इस कथन की परीक्षा के लिए श्वेवकेतु ने पन्द्रह दिन तक भोजन नहीं किया। वह जल द्वारा ही अपने प्राणों को पुष्ट करता रहा।
पन्द्रह दिन बाद उद्दालक ने अपने पुत्र श्वेतकेतु से कहा कि अब वह जाये और वेदों का अध्ययन करे, किन्तु वह ऐसा नहीं कर सका। उसे मन्त्र याद नहीं होते थे। तब उद्दालक ने अपने पुत्र को भोजन करने के लिए कहा और फिर मन्त्र याद करने के लिए कहा।
इस बार उसे मन्त्र याद हो गये। इससे पता चला कि जैसे जल 'प्राण' के लिए अनिवार्य है, उसी प्रकार अन्न भी 'मन' के लिए अनिवार्य है। इसी प्रकार 'वाणी' तभी प्रस्फुटित होती है, जब ज्ञान का 'तेज' मनुष्य के भीतर होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 |
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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-2 |
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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3 |
खण्ड-1 से 5 | खण्ड-6 से 10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 से 19 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-5 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6 |
खण्ड-1 से 2 | खण्ड-3 से 4 | खण्ड-5 से 6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 से 13 | खण्ड-14 से 16 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-7 | |
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