कीर्ति: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 16: | Line 16: | ||
[[Category:पौराणिक_कोश]] | [[Category:पौराणिक_कोश]] | ||
[[Category:हिन्दू_धर्म_कोश]] | [[Category:हिन्दू_धर्म_कोश]] | ||
[[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 10:17, 27 May 2010
वृषभानु पत्नी
- राधा की माता कीर्ति के लिए 'वृषभानु पत्नी' शब्द का प्रयोग किया जाता है।
- कृष्ण की माता यशोदा की तुलना में उसका स्नेह संकुचित धरातल पर व्यक्त हुआ है।
- उसका आवास स्थान बरसाना है।
- कृष्ण भक्तिकाव्य में राधा की शैशव-लीलाओं के अन्तर्गत उसके व्यक्तित्व की सरलता एवं स्नेह की व्यंजना हुई है।
- उसे सामाजिक मर्यादा का भय है, इसीलिए वह राधा को असमय भ्रमण से रोकती है और उस पर क्रोध दिखाती है किन्तु अन्तत: वृषभानु पत्नी का क्रोध प्रेम में समा जाता है।
- गारूड़ी प्रसंग में प्रकारान्तर से उसकी कृष्णभक्ति व्यंजित हुई है। वह कृष्ण से राधा का विवाह कर देना चाहती है।
- कृष्ण-काव्य में कीर्ति का उल्लेख राधा की शैशव एवं किशोरी लीलाओं में मिलता है।
- यशोदा की तुलना में उसका चरित्र संकुचित परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत हुआ है।
- उसके चरित्र में राधावल्लभीय भक्त कवियों ने वृन्दावनदास, सेवकजी, चतुर्भुजदास, ध्रुवदास आदि कवियों के पद तथा 'ब्रजप्रेमानन्द सागर', 'राधा लाड़सागर') मातृत्व के चित्रण में वात्सल्य की उसी व्यंजना का यत्न किया है जो अष्टछापी कवियों ने यशोदा के चरित्र के द्वारा की है।
- राधावल्लभीय भक्तों ने जिस रूप में वृषभानु पत्नी का राधा के माध्यम से कृष्ण के प्रति अनुराग व्यक्त किया है, लगभग उसी रूप में वल्लभसम्प्रदायी कवियों ने यशोदा का कृष्ण के माध्यम से राधा के प्रति स्नेह दर्शाया है किन्तु इसे सर्वथा साम्प्रदायिक वैशिष्टय के रूप में स्वीकार करना भूल होगी।