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|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 31 मार्च 2012|साप्ताहिक सम्पादकीय<small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
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[[भारतकोश सम्पादकीय 24 मार्च 2012|गुड़ का सनीचर]]
[[भारतकोश सम्पादकीय 31 मार्च 2012|उकसाव का इमोशनल अत्याचार]]
    "क्या बताऊँ पंडिज्जी ! बड़ी तंगी चल रही है। एक के बाद एक सब काम-काज बिगड़ते जा रहे हैं। खोपड़ी भिन्नौट हो गई है, काम ही नहीं कर रही पता नईं चक्कर क्या है ?" [[भारतकोश सम्पादकीय 24 मार्च 2012|...पूरा पढ़ें]]
    "नये क़ैदी की क्या ख़बर है हवलदार ? उसको टॉर्चर किया कि नहीं ?"
"जी सर ! आतंकवादियों को टॉर्चर करने के लिए रूल-बुक में तीन तरीक़े दिए गए हैं। हमने तीनों कर लिए। ऑडर की कंप्लाइंस हो गयी सर, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ सर..."   [[भारतकोश सम्पादकीय 31 मार्च 2012|पूरा पढ़ें]]
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 17 मार्च 2012|ज़माना]] ·
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 10 मार्च 2012|राज की नीति]]
| [[भारतकोश सम्पादकीय 17 मार्च 2012|ज़माना]]  
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Revision as of 12:44, 31 March 2012

साप्ताहिक सम्पादकीय-आदित्य चौधरी
100px|border|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 31 मार्च 2012

उकसाव का इमोशनल अत्याचार
     "नये क़ैदी की क्या ख़बर है हवलदार ? उसको टॉर्चर किया कि नहीं ?"
"जी सर ! आतंकवादियों को टॉर्चर करने के लिए रूल-बुक में तीन तरीक़े दिए गए हैं। हमने तीनों कर लिए। ऑडर की कंप्लाइंस हो गयी सर, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ सर..." पूरा पढ़ें

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