दहेज प्रथा: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
गोविन्द राम (talk | contribs) m (Adding category Category:सामाजिक प्रथाएँ (को हटा दिया गया हैं।)) |
||
Line 25: | Line 25: | ||
[[Category:समाज सुधार]] | [[Category:समाज सुधार]] | ||
[[Category:प्राचीन समाज]] | [[Category:प्राचीन समाज]] | ||
[[Category:सामाजिक प्रथाएँ]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 08:35, 2 April 2012
दहेज का अर्थ है जो सम्पत्ति, विवाह के समय वधू के परिवार की तरफ़ से वर को दी जाती है। दहेज को ऊर्दू में जहेज़ कहते हैं। यूरोप, भारत, अफ्रीका और दुनिया के अन्य भागों में दहेज प्रथा का लंबा इतिहास है। भारत में इसे दहेज, हुँडा या वरदक्षिणा के नाम से भी जाना जाता है तथा वधू के परिवार द्वारा नक़द या वस्तुओं के रूप में यह वर के परिवार को वधू के साथ दिया जाता है। संभवत: इस प्रथा को उन समाजों में महत्त्व प्राप्त हुआ होगा, जहाँ छोटी उम्र में विवाह प्रचलित रहे होंगे।
दहेज का उद्देश्य
दहेज का उद्देश्य नवविवाहित पुरूष को गृहस्थी जमाने में मदद करना था, जो अन्य आर्थिक संसाधनों के अभाव में शायद वह स्वयं नहीं कर सकता था। कुछ समाजों में दहेज का एक अन्य उद्देश्य था, पति की अकस्मात मृत्यु होने पर पत्नी को जीवन निर्वाह में सहायता देना। दहेज के पीछे एक अवधारणा यह भी रही होगी कि पति, विवाह के साथ आई ज़िम्मेदारी का निर्वाह ठीक तरह से कर सके। वर्तमान युग में भी दहेज नवविवाहितों के जीवन-निर्वाह में मदद के उद्देश्य से ही दिया जाता है।
वधू मूल्य
एक प्रतिरोधी प्रथा है 'वधू-मूल्य', वधू के परिवार द्वारा उसके बदले बहुमूल्य नक़द या वस्तुओं की प्राप्ति। अत: वधू-मूल्य एक प्रकार का विनिमय है। दहेज और वधू-मूल्य के बारे में एक विशिष्ट तथ्य यह है कि दहेज ऊँची जतियों में प्रचलित है, जबकि वधू-मूल्य प्रधानत: निम्न जातियों और जनजातियों (आदिवासियों) में प्रचलित है। वधू-मूल्य के बारे में यह तर्क है कि जाति व्यवस्था में निम्न जातियाँ (वैश्य और शूद्र) अधिकांश शारीरिक एवं तुच्छ समझे जाने वाले कार्य करती हैं, परिवार में आने वाली एक वधू का अर्थ है, आय एवं कार्य के लिए अतिरिक्त श्रम, जबकि दुल्हन के परिवार में एक कमाने वाले सदस्य की कमी हो जाती है। इसलिए वधू-मूल्य द्वारा इसकी क्षतिपूर्ति की जाती है।
दहेज का प्रयोग
दहेज का प्रयोग अक्सर न केवल विवाह के लिए स्त्री की वांछनीयता बढ़ाने के लिए हुआ है, बल्कि बड़े परिवारों में यह सत्ता और संपत्ति बढ़ाने और कई बार राज्यों की सीमा व नीतियों के निर्धारण का कारण बना है।
दहेज के सामाजिक प्रभाव
दहेज प्रथा के अनेक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव हैं तथा इसके कई सुनिश्चित विपरीत परिणाम हैं यद्यपि दहेज प्रथा दुनिया के अनेक देशों में प्रचलित है, परंतु भारत में इसने संकटपूर्ण स्थितियाँ निर्मित कर दी है। ढिंढोरा पीटा जाता है कि दहेज लेना या देना सामाजिक अपराध है और क़ानून द्वारा इसे प्रतिबंधित भी किया गया है,लेकिन यह बुराई जारी है। समाज के पढ़े-लिखे वर्ग में भी विवाह तय करते समय इसे चर्चा का आवश्यक अंग बनाया जाता है। विवाह के समय दहेज की वस्तुओं को सामाजिक हैसियत के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। वर-वधू के परिवारों के बीच कई बार दहेज को लेकर सहमति न होने पर रिश्ते टूट जाते हैं।
दहेज से हानि
दहेज प्रथा के वीभत्स प्रमाण हैं, प्रताड़ना की घटनाएँ, जो अंतत: नवविवाहित वधुओं की 'दहेज हत्या' के रूप में परिणता होती हैं। लड़कियों के साथ बुरे बर्ताव, भेदभाव तथा कन्या भ्रूण और कन्या शिशुओं की हत्या जैसे जघन्य कृत्यों के रूप में सामने आने वाले इसके दुष्परिणाम दहेज प्रथा की उस क्रूरता को प्रदर्शित करते हैं, जिसका सामना समाज को अब भी करना है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ