स्वाधीनता संग्राम में उत्तराखंड का योगदान: Difference between revisions

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8 [[उत्तराखंड]] में [[ईस्ट इंडिया कंपनी]] का आगमन [[1815]] में हुआ। वास्तव में यहां अंग्रेजों का आगमन गोरखों के 25 वर्षीय सामन्ती सैनिक शासन का अंत भी था।  
* [[उत्तराखंड]] में [[ईस्ट इंडिया कंपनी]] का आगमन [[1815]] में हुआ। वास्तव में यहां अंग्रेजों का आगमन गोरखों के 25 वर्षीय सामन्ती सैनिक शासन का अंत भी था।  


*[[1815]] से [[1857]] तक यहां कंपनी का शासन का दौर सामान्यतः शान्त और गतिशीलता से बंचित शासन के रूप में जाना जाता है। [[ईस्ट इंडिया कंपनी]] के अधिकार में आने के बाद यह क्षेत्र [[ब्रिटिश गढवाल]] कहलाने लगा था। किसी प्रबल विरोध के अभाव मे [[अविभाजित गढवाल]] के राजकुमार [[सुदर्शनशाह]] को कंपनी ने आधा [[गढ़वाल मण्डल|गढ़वाल]]  देकर मना लिया परन्तु चंद शासन के उत्तराधिकारी यह स्थिति भी न प्राप्त कर सके।  
*[[1815]] से [[1857]] तक यहां कंपनी का शासन का दौर सामान्यतः शान्त और गतिशीलता से बंचित शासन के रूप में जाना जाता है। [[ईस्ट इंडिया कंपनी]] के अधिकार में आने के बाद यह क्षेत्र [[ब्रिटिश गढवाल]] कहलाने लगा था। किसी प्रबल विरोध के अभाव मे [[अविभाजित गढवाल]] के राजकुमार [[सुदर्शनशाह]] को कंपनी ने आधा [[गढ़वाल मण्डल|गढ़वाल]]  देकर मना लिया परन्तु चंद शासन के उत्तराधिकारी यह स्थिति भी न प्राप्त कर सके।  
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  • 1815 से 1857 तक यहां कंपनी का शासन का दौर सामान्यतः शान्त और गतिशीलता से बंचित शासन के रूप में जाना जाता है। ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकार में आने के बाद यह क्षेत्र ब्रिटिश गढवाल कहलाने लगा था। किसी प्रबल विरोध के अभाव मे अविभाजित गढवाल के राजकुमार सुदर्शनशाह को कंपनी ने आधा गढ़वाल देकर मना लिया परन्तु चंद शासन के उत्तराधिकारी यह स्थिति भी न प्राप्त कर सके।

1927 में साइमन कमीशन की घोषणा के तत्काल बाद इसके विरोध में स्वर उठने लगे और जब 1928 में कमीशन देश मे पहुचा तो इसके विरोध में 29 नवम्बर 1928 को जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में 16 व्यक्तियों की एक टोली ने विरोध किया जिस पर घुडसवार पुलिस ने निर्ममता पूर्वक डंडो से प्रहार किया । जवाहरलाल नेहरू को बचाने के लिये गोविन्द बल्लभ पंत पर हुये लाठी के प्रहार के शारीरिक दुष्परिणाम स्वरूप वे बहुत दिनों तक कमर सीधी नहीं कर सके थे। (संदर्भःनेहरू एन आटोबाइग्राफी)।

  • आधिकारिक सूत्रों के अनुसार मई चित्र:१९३८ में तत्कालीन ब्रिटिश शासन मे गढ़वाल के श्रीनगर में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों को अपनी परिस्थितियों के अनुसार स्वयं निर्णय लेने तथा अपनी संस्कृति को समृद्ध करकने के आंदोलन का समर्थन किया।


उत्तराखंड के शहीदो की सूची

तिलाडी के शहीद

  • अजीत सिंह पुत्र काशी सिंह (1904-1930)
  • झूना सिंह पुत्र खडग सिंह(1912-1930)
  • गौरू पुत्र सिनकया (1907-1930)
  • नारायण सिंह पुत्र देबू सजवाण (1908-1930)
  • भगीरथ पुत्र रूपराम (1904-1930)

तिलाडी के आन्दोलकारी जो कारागार में शहीद हुये

  • गुन्दरू पुत्र सागरू (1890-1932)
  • गुलाब सिंह ठाकुर (1910- टिहरी जेल में मृत्यु )
  • ज्वाला सिंह पुत्र जमना सिंह (1880-1931)
  • जमन सिंह पुत्र लच्छू(1880-1931)
  • दिला पुत्र दलपति(1880- टिहरी जेल में मृत्यु )
  • मदन सिंह (1875- टिहरी जेल में मृत्यु )
  • लुदर सिंह पुत्र रणदीप (1890-1932)

टिहरी के शहीद

  • श्रीदेव सुमन पुत्र हरिराम बडोनी (1915-1944 टिहरी जेल में मृत्यु )

कीर्तिनगर के शहीद

  • नागेन्द्र सकलानी पुत्र कृपा राम (1920-1948)
  • मोलू राम भरदारी पुत्र लीला नन्द (1918-1948)

जैती (सालम) के शहीद

  • नरसिंह धानक (1886-1942)
  • टीका सिंह कन्याल पुत्र जीत सिंह (1919-1942)

खुमाड़ (सल्ट) के शहीद

  • सीमानन्द पुत्र टीकाराम (1913-1942)
  • गंगादत्त पुत्र टीकाराम (1909-1942)
  • चुडामणि पुत्र परमदेव (1886-1942)
  • बहादुर सिंह पुत्र पदम सिंह(1890-1942)

देघाट के शहीद

  • हरिकृष्ण ( -1942 )
  • हीरामणि ( -1942)

जेलों में शहीद संग्रामी

  • रतन सिंह पुत्र दौलत सिंह ,बोरारौ (1916-)
  • उदय सिंह पुत्र भवान सिंह ,बोरारौ (1917-)
  • किशन सिंह पुत्र दान सिंह,बोरारौ (1906-)
  • बाग सिंह पुत्र खीम सिंह ,बोरारौ (1905-)
  • दीवान सिंह पुत्र खीम सिंह ,बोरारौ (1905-)
  • अमर सिंह पुत्र देव सिंह ,बोरारौ (1918-)
  • त्रिलोक सिंह पांगती, चनौदा आश्रम
  • विशन सिंह , चनौदा
  • रामकृष्ण दुमका, हल्दूचौड
  • दीवान सिंह , पहाड़कोटा (-1943)

श्रेणी: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम

श्रेणी: उत्तराखंड 

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टीका टिप्पणी और संदर्भ


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संबंधित लेख