दारा सिंह: Difference between revisions

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बचपन से ही पहलवानी के दीवाने रहे दारा सिंह का पूरा नाम दारा सिंह रंधावा है। हालांकि चाहनेवालों के बीच वे दारा सिंह के नाम से ही जाने गए। सूरत सिंह रंधावा और बलवन्त कौर के बेटे दारा सिंह का जन्म 19 नवंबर 1928 को पंजाब के अमृतसर के धरमूचक में हुआ था।
बचपन से ही पहलवानी के दीवाने रहे दारा सिंह का पूरा नाम दारा सिंह रंधावा है। हालांकि चाहनेवालों के बीच वे दारा सिंह के नाम से ही जाने गए। सूरत सिंह रंधावा और बलवन्त कौर के बेटे दारा सिंह का जन्म 19 नवंबर 1928 को पंजाब के अमृतसर के धरमूचक (धर्मूचक्क) गांव के जाट-सिख परिवार में हुआ था।  


बॉलीवुड में दारा सिंह की पहली फिल्म ‘संगदिल’ थी। लेकिन उनकी असल पहचान बनी 1962 में आई फिल्म ‘किंग कॉन्ग’ से। इस फिल्म ने उन्हें शोहरत के आसमान पर पहुंचा दिया।  
बॉलीवुड में दारा सिंह की पहली फिल्म ‘संगदिल’ थी। लेकिन उनकी असल पहचान बनी 1962 में आई फिल्म ‘किंग कॉन्ग’ से। इस फिल्म ने उन्हें शोहरत के आसमान पर पहुंचा दिया। ये फिल्म कुश्ती पर ही आधारित थी।


ये फिल्म कुश्ती पर ही आधारित थी। अपने 60 साल लंबे फिल्मी करियर में दारा सिंह ने 100 से ज्यादा फिल्मों में काम किया लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा शोहरत मिली टीवी सीरियल रामायण से। इस सीरियल में उन्होंने हनुमान का किरदार निभाया। इसकी वजह से दारा सिंह को देखते हीं लोगों के जेहन में आज भी जो पहला अक्स उभरता है वो बजरंग बली का ही होता है।
अपने 60 साल लंबे फिल्मी करियर में दारा सिंह ने 100 से ज्यादा फिल्मों में काम किया लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा शोहरत मिली टेलीविजन के चर्चित धारावाहिक 'रामायण' से। इस सीरियल में उन्होंने हनुमान का किरदार निभाया। इसकी वजह से दारा सिंह को देखते हीं लोगों के जेहन में आज भी जो पहला अक्स उभरता है वो बजरंग बली का ही होता है।


हालांकि अखाड़े और स्क्रीन में अपना जलवा दिखा चुके दारा सिंह की दिलचस्पी पर्दे से कम नहीं हुई और 2003 में उन्होंने ‘जब वी मेट’ में करीना कपूर के दादा का किरदार निभाया।
हालांकि अखाड़े और स्क्रीन में अपना जलवा दिखा चुके दारा सिंह की दिलचस्पी पर्दे से कम नहीं हुई और 2003 में उन्होंने ‘जब वी मेट’ में करीना कपूर के दादा का किरदार निभाया। कई धार्मिक फिल्मों में दारा सिंह ने भीम का किरदार निभाया है।


अखाड़े को पहले ही अलविदा कह चुके दारा सिंह ने इसके बाद किसी फिल्म में काम नहीं किया। जिसकी वजह शायद उनकी बढ़ती उम्र और खराब सेहत ही थी।
अखाड़े को पहले ही अलविदा कह चुके दारा सिंह ने इसके बाद किसी फिल्म में काम नहीं किया। जिसकी वजह शायद उनकी बढ़ती उम्र और खराब सेहत ही थी।


दारा सिंह को पहलवानी का शौक बचपन से ही था। बचपन से ही वो अपने छोटे भाई के साथ मिलकर आसपास के जिलों में कुश्ती समारोहों में हिस्सा लेते थे। दोनों भाइयों ने कई कुश्तियां जीतीं। इसके बाद पूरे इलाके में उनका नाम हो गया लेकिन असल शुरूआत अभी बाकी थी।
दारा सिंह को पहलवानी का शौक बचपन से ही था। कद-काठी से मजबूत होने के कारण बचपन से ही उनको कुश्ती के लिए प्रेरित किया गया। बचपन से ही वो अपने छोटे भाई के साथ मिलकर आसपास के जिलों में कुश्ती समारोहों में हिस्सा लेते थे। दोनों भाइयों ने कई कुश्तियां जीतीं। इसके बाद पूरे इलाके में उनका नाम हो गया लेकिन असल शुरूआत अभी बाकी थी।


आजादी के दौरान 1947 में दारा सिंह सिंगापुर पहुंचे। मकसद था भारतीय स्टाइल की कुश्ती में नाम कमाना और उन्होंने मलेशियाई चैंपियन तरलोक सिंह को पछाड़कर ही दम लिया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
आजादी के दौरान 1947 में दारा सिंह सिंगापुर पहुंचे। मकसद था भारतीय स्टाइल की कुश्ती में नाम कमाना और उन्होंने मलेशियाई चैंपियन तरलोक सिंह को पछाड़कर ही दम लिया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।


विदेश में अपनी कामयाबी का झंडा गाड़कर 1952 में दारा सिंह भारत लौट आए। 1954 में भारतीय कुश्ती चैंपियन बने। इसके बाद उन्होंने कॉमनवेल्थ देशों का दौरा किया और विश्व चैंपियन किंग कॉन्ग को भी धूल चटा दी।
विदेश में अपनी कामयाबी का झंडा गाड़कर 1952 में दारा सिंह भारत लौट आए। 1954 में भारतीय कुश्ती चैंपियन (राष्ट्रीय चैंपियन) बने। इसके बाद उन्होंने कॉमनवेल्थ देशों का दौरा किया और विश्व चैंपियन किंग कॉन्ग को भी धूल चटा दी।


दारा सिंह की लोकप्रियता से भन्नाए कनाडा के चैंपियन जार्ज गार्डीयांका और न्यूजीलैंड के जॉन डिसिल्वा ने 1959 में कोलकाता में कॉमनवेल्थ कुश्ती चैंपियनशिप में उन्हें खुली चुनौती दे डाली। नतीजा वही रहा।
दारा सिंह की लोकप्रियता से भन्नाए कनाडा के चैंपियन जार्ज गार्डीयांका और न्यूजीलैंड के जॉन डिसिल्वा ने 1959 में कोलकाता में कॉमनवेल्थ कुश्ती चैंपियनशिप में उन्हें खुली चुनौती दे डाली। नतीजा वही रहा।


यहां भी दारा सिंह ने दोनों पहलवानों को धो डाला। इसके बाद 1968 में दारा सिंह ने फ्रीस्टाइल कुश्ती के अमेरिकी चैंपियन लाऊ थेज को हराकर विश्व चैंपियन का खिताब हासिल कर दिया। लेकिन 1983 में उन्होंने कुश्ती को अलविदा कह दिया।
यहां भी दारा सिंह ने दोनों पहलवानों को धो डाला। इसके बाद 1968 में दारा सिंह ने फ्रीस्टाइल कुश्ती के अमेरिकी चैंपियन लाऊ थेज को हराकर विश्व चैंपियन का खिताब हासिल कर दिया। अपने दौर में दुनिया के सभी पहलवानों को उनके घर में ही धूल चटाने वाले रुस्तम-ए-हिंद दारा सिंह ने 1983 में कुश्ती से संन्यास ले लिया।


कुश्ती के करियर को खत्म करने से पहले दारा सिंह ने सोच लिया था कि अब उन्हें क्या करना है। सामने कामयाबी का एक और रास्ता दिखाई दे रहा था। चुनौतियां तो थीं लेकिन दारा सिंह को तो मुश्किलों से जूझने में मानो मजा आने लगा था लिहाजा वो निकल पड़े बॉलीवुड के सफर पर।
कुश्ती के करियर को खत्म करने से पहले दारा सिंह ने सोच लिया था कि अब उन्हें क्या करना है। सामने कामयाबी का एक और रास्ता दिखाई दे रहा था। चुनौतियां तो थीं लेकिन दारा सिंह को तो मुश्किलों से जूझने में मानो मजा आने लगा था लिहाजा वो निकल पड़े बॉलीवुड के सफर पर।
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आज दारा सिंह के भरे-पूरे परिवार में तीन बेटियां और तीन बेटे हैं। 2003 में भाजपा ने हनुमान की छवि को भुनाने के लिए दारा सिंह को राज्यसभा के जरिए संसद पहुंचाया।  
आज दारा सिंह के भरे-पूरे परिवार में तीन बेटियां और तीन बेटे हैं। 2003 में भाजपा ने हनुमान की छवि को भुनाने के लिए दारा सिंह को राज्यसभा के जरिए संसद पहुंचाया।  





Revision as of 18:43, 10 July 2012

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बचपन से ही पहलवानी के दीवाने रहे दारा सिंह का पूरा नाम दारा सिंह रंधावा है। हालांकि चाहनेवालों के बीच वे दारा सिंह के नाम से ही जाने गए। सूरत सिंह रंधावा और बलवन्त कौर के बेटे दारा सिंह का जन्म 19 नवंबर 1928 को पंजाब के अमृतसर के धरमूचक (धर्मूचक्क) गांव के जाट-सिख परिवार में हुआ था।

बॉलीवुड में दारा सिंह की पहली फिल्म ‘संगदिल’ थी। लेकिन उनकी असल पहचान बनी 1962 में आई फिल्म ‘किंग कॉन्ग’ से। इस फिल्म ने उन्हें शोहरत के आसमान पर पहुंचा दिया। ये फिल्म कुश्ती पर ही आधारित थी।

अपने 60 साल लंबे फिल्मी करियर में दारा सिंह ने 100 से ज्यादा फिल्मों में काम किया लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा शोहरत मिली टेलीविजन के चर्चित धारावाहिक 'रामायण' से। इस सीरियल में उन्होंने हनुमान का किरदार निभाया। इसकी वजह से दारा सिंह को देखते हीं लोगों के जेहन में आज भी जो पहला अक्स उभरता है वो बजरंग बली का ही होता है।

हालांकि अखाड़े और स्क्रीन में अपना जलवा दिखा चुके दारा सिंह की दिलचस्पी पर्दे से कम नहीं हुई और 2003 में उन्होंने ‘जब वी मेट’ में करीना कपूर के दादा का किरदार निभाया। कई धार्मिक फिल्मों में दारा सिंह ने भीम का किरदार निभाया है।

अखाड़े को पहले ही अलविदा कह चुके दारा सिंह ने इसके बाद किसी फिल्म में काम नहीं किया। जिसकी वजह शायद उनकी बढ़ती उम्र और खराब सेहत ही थी।

दारा सिंह को पहलवानी का शौक बचपन से ही था। कद-काठी से मजबूत होने के कारण बचपन से ही उनको कुश्ती के लिए प्रेरित किया गया। बचपन से ही वो अपने छोटे भाई के साथ मिलकर आसपास के जिलों में कुश्ती समारोहों में हिस्सा लेते थे। दोनों भाइयों ने कई कुश्तियां जीतीं। इसके बाद पूरे इलाके में उनका नाम हो गया लेकिन असल शुरूआत अभी बाकी थी।

आजादी के दौरान 1947 में दारा सिंह सिंगापुर पहुंचे। मकसद था भारतीय स्टाइल की कुश्ती में नाम कमाना और उन्होंने मलेशियाई चैंपियन तरलोक सिंह को पछाड़कर ही दम लिया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

विदेश में अपनी कामयाबी का झंडा गाड़कर 1952 में दारा सिंह भारत लौट आए। 1954 में भारतीय कुश्ती चैंपियन (राष्ट्रीय चैंपियन) बने। इसके बाद उन्होंने कॉमनवेल्थ देशों का दौरा किया और विश्व चैंपियन किंग कॉन्ग को भी धूल चटा दी।

दारा सिंह की लोकप्रियता से भन्नाए कनाडा के चैंपियन जार्ज गार्डीयांका और न्यूजीलैंड के जॉन डिसिल्वा ने 1959 में कोलकाता में कॉमनवेल्थ कुश्ती चैंपियनशिप में उन्हें खुली चुनौती दे डाली। नतीजा वही रहा।

यहां भी दारा सिंह ने दोनों पहलवानों को धो डाला। इसके बाद 1968 में दारा सिंह ने फ्रीस्टाइल कुश्ती के अमेरिकी चैंपियन लाऊ थेज को हराकर विश्व चैंपियन का खिताब हासिल कर दिया। अपने दौर में दुनिया के सभी पहलवानों को उनके घर में ही धूल चटाने वाले रुस्तम-ए-हिंद दारा सिंह ने 1983 में कुश्ती से संन्यास ले लिया।

कुश्ती के करियर को खत्म करने से पहले दारा सिंह ने सोच लिया था कि अब उन्हें क्या करना है। सामने कामयाबी का एक और रास्ता दिखाई दे रहा था। चुनौतियां तो थीं लेकिन दारा सिंह को तो मुश्किलों से जूझने में मानो मजा आने लगा था लिहाजा वो निकल पड़े बॉलीवुड के सफर पर।

लेकिन दारा सिंह की जिंदगी से जुड़ी एक और भी खास बात है जो काफी कम लोगों को ही पता है। दरअसल दारा सिंह नाबालिग होते हुए ही एक बच्चे के पिता बन गए थे।

कम उम्र में ही दारा सिंह के घरवालों ने उनकी शादी कर दी। नतीजतन महज 17 साल की उम्र में ही एक बच्चे के पिता बन गए लेकिन जब उन्होंने कुश्ती की दुनिया में नाम कमाया तो उन्होंने अपनी पसन्द से दूसरी शादी सुरजीत कौर से की।

आज दारा सिंह के भरे-पूरे परिवार में तीन बेटियां और तीन बेटे हैं। 2003 में भाजपा ने हनुमान की छवि को भुनाने के लिए दारा सिंह को राज्यसभा के जरिए संसद पहुंचाया।



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