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[[भारतकोश सम्पादकीय 14 अगस्त 2012|ईमानदारी की क़ीमत]]
[[भारतकोश सम्पादकीय 21 अगस्त 2012|यादों का फंडा]]
           "देखिए सर ! पॉपुलर होने के बहुत सारे तरीक़े हैं पॉलिटिक्स में लेकिन जो आजकल सबसे ज़्यादा अच्छा माना जाता है और सबसे ज़्यादा हिट भी है, वो है 'स्कॅम पॉपुलरटी' याने 'घोटाला फ़ेम'। अगर आपके ऊपर कोई भ्रष्टाचार का आरोप लग जाये तो लोग जान जाएँगे कि आप भी मंत्री हैं... आपका नाम क्या है... आपके रिश्तेदार कौन-कौन हैं... मतलब ये कि आपको बच्चा-बच्चा जान जाएगा... आपको तो क्या आपकी सात पुश्तों को भी लोग जान जाएँगे... वैसे और भी कई तरीक़े हैं... लेकिन जो मुझे भी सही लगता है वो मैंने आपको बताया है।" [[भारतकोश सम्पादकीय 14 अगस्त 2012|...पूरा पढ़ें]]
           मस्तिष्क को वैज्ञानिकों ने एक कम्प्यूटर की तरह मानकर ही इसका अध्ययन किया है और यह अध्ययन लगातार जारी है। वैज्ञानिक मस्तिष्क की याददाश्त की क्षमता को अद्‌भुत मानते हैं और यह भी प्रमाणित है कि मस्तिष्क को जितने भी संदेश मिलते हैं वह उन्हें संचित कर लेता है। किंतु हिप्पोकॅम्पस में संचित इन संदेशों को पुन: प्रस्तुत करने के लिए मनुष्य के पास कोई सुगम प्रणाली नहीं होती। [[भारतकोश सम्पादकीय 21 अगस्त 2012|...पूरा पढ़ें]]
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 14 अगस्त 2012|ईमानदारी की क़ीमत]] ·
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 31 जुलाई 2012|मौसम है ओलम्पिकाना]]  
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Revision as of 14:05, 21 August 2012

साप्ताहिक सम्पादकीय-आदित्य चौधरी

right|130px|link=भारतकोश सम्पादकीय 21 अगस्त 2012

यादों का फंडा
          मस्तिष्क को वैज्ञानिकों ने एक कम्प्यूटर की तरह मानकर ही इसका अध्ययन किया है और यह अध्ययन लगातार जारी है। वैज्ञानिक मस्तिष्क की याददाश्त की क्षमता को अद्‌भुत मानते हैं और यह भी प्रमाणित है कि मस्तिष्क को जितने भी संदेश मिलते हैं वह उन्हें संचित कर लेता है। किंतु हिप्पोकॅम्पस में संचित इन संदेशों को पुन: प्रस्तुत करने के लिए मनुष्य के पास कोई सुगम प्रणाली नहीं होती। ...पूरा पढ़ें

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