के एस सुदर्शन: Difference between revisions

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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर एस एस) के पूर्व सरसंघचालक के एस सुदर्शन का पूरा नाम कुप्पाली सीतारमैया सुदर्शन था। के एस सुदर्शन का जन्म तत्कालीन मध्यप्रदेश [मौजूदा छत्तीसगढ] की राजधानी रायपुर जिले में एक ब्राह्मण परिवार में 18 जून 1931 में हुआ था। आजीवन अविवाहित रहे सुदर्शन के परिवार में उनसे छोटी बहन वत्सला, बहनोई, छोटा भाई रमेश और भाभी हैं। सुदर्शन की प्रारंभिक शिक्षा रायपुर, दामोह, मंडला और चंद्रपुर में हुई। उन्होंने सागर यूनिवर्सिटी से टेलीकम्युनिकेशंस में बीटेक डिग्री प्राप्त की। महज 9 साल की उम्र में ही उन्होंने पहली बार आर एस एस शाखा में भाग लिया। वर्ष 1954 में जबलपुर इंजीनिरिंग कालेज से दूरसंचार विषय (टेलीकाम) में बीई की उपाधि प्राप्त कर वो 23 साल की उम्र में पहली बार सुदर्शन आरएसएस के पूर्णकालिक प्रचारक बने। संघ में परंपरा है कि पूर्णकालिक प्रचारक विवाह नहीं करते हैं। उन्होंने भी इस परंपरा का निर्वाह करते हुए सारा जीवन देश और संगठन को समर्पित कर दिया।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर एस एस) के पूर्व सरसंघचालक के एस सुदर्शन का पूरा नाम कुप्पाली सीतारमैया सुदर्शन था। के एस सुदर्शन का जन्म तत्कालीन मध्यप्रदेश [मौजूदा छत्तीसगढ] की राजधानी रायपुर जिले में एक ब्राह्मण परिवार में 18 जून 1931 में हुआ था। आजीवन अविवाहित रहे सुदर्शन के परिवार में उनसे छोटी बहन वत्सला, बहनोई, छोटा भाई रमेश और भाभी हैं। सुदर्शन की प्रारंभिक शिक्षा रायपुर, दामोह, मंडला और चंद्रपुर में हुई। उन्होंने सागर यूनिवर्सिटी से टेलीकम्युनिकेशंस में बीटेक डिग्री प्राप्त की। महज 9 साल की उम्र में ही उन्होंने पहली बार आर एस एस शाखा में भाग लिया। वर्ष 1954 में जबलपुर इंजीनिरिंग कालेज से दूरसंचार विषय (टेलीकाम) में बीई की उपाधि प्राप्त कर वो 23 साल की उम्र में पहली बार सुदर्शन आरएसएस के पूर्णकालिक प्रचारक बने। संघ में परंपरा है कि पूर्णकालिक प्रचारक विवाह नहीं करते हैं। उन्होंने भी इस परंपरा का निर्वाह करते हुए सारा जीवन देश और संगठन को समर्पित कर दिया।

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thumb|350px| के एस सुदर्शन (कुप्पाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन) राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर एस एस) के पूर्व सरसंघचालक के एस सुदर्शन का पूरा नाम कुप्पाली सीतारमैया सुदर्शन था। के एस सुदर्शन का जन्म तत्कालीन मध्यप्रदेश [मौजूदा छत्तीसगढ] की राजधानी रायपुर जिले में एक ब्राह्मण परिवार में 18 जून 1931 में हुआ था। आजीवन अविवाहित रहे सुदर्शन के परिवार में उनसे छोटी बहन वत्सला, बहनोई, छोटा भाई रमेश और भाभी हैं। सुदर्शन की प्रारंभिक शिक्षा रायपुर, दामोह, मंडला और चंद्रपुर में हुई। उन्होंने सागर यूनिवर्सिटी से टेलीकम्युनिकेशंस में बीटेक डिग्री प्राप्त की। महज 9 साल की उम्र में ही उन्होंने पहली बार आर एस एस शाखा में भाग लिया। वर्ष 1954 में जबलपुर इंजीनिरिंग कालेज से दूरसंचार विषय (टेलीकाम) में बीई की उपाधि प्राप्त कर वो 23 साल की उम्र में पहली बार सुदर्शन आरएसएस के पूर्णकालिक प्रचारक बने। संघ में परंपरा है कि पूर्णकालिक प्रचारक विवाह नहीं करते हैं। उन्होंने भी इस परंपरा का निर्वाह करते हुए सारा जीवन देश और संगठन को समर्पित कर दिया।

1964 में रायगढ़ जिले में सुदर्शन बतौर संघ के प्रचारक बनाए गए। बाद में वे मध्य प्रदेश के प्रांत प्रचारक बने। इसके बाद संघ में उन्होंने कई तरह की अहम जिम्मेदारियां संभाली। 1969 में उन्हें ऑल इंडिया आर्गेनाइजेशन का कंवेनर बनाया गया। वह इस पद पर करीब उन्नीस वर्ष तक रहे। 1990 में उन्हें संघ का महासचिव नियुक्त किया गया। सुदर्शन करीब छह दशकों तक आर एस एस प्रचारक रहे। सुदर्शन ने 10 मार्च 2000 को नागपुर में अखिल भारतीय प्रतिनधि सभा के उद्घाटन सत्र में तत्कालीन सरसंघचालक रज्जू भैया से आर एस एस प्रमुख के रुप में दायित्व ग्रहण किया था। राजेंद्र सिंह की जगह इस पद के लिए चुने गए थे, खराब स्वास्थ्य के चलते बाद में उन्होंने यह पद छोड दिया था। 21 मार्च 2009 तक वह इस पद पर रहे। पद सुदर्शन संघ प्रमुख के पद से हटने के बाद से भोपाल में रह रहे थे और संघ के विभिन्न कार्यों में मार्गदर्शक की भूमिका में थे। डिमेंशिया से पीडि़त सुदर्शन कुछ समय से बीमार चल रहे थे और उनकी देखभाल के लिए एक अटेंडेंट रखा गया था।

कर्नाटक के मांड्या जिले के कुप्पाली गांव निवासी सुदर्शन संघ कार्यकर्ताओं के बीच शारीरिक प्रशिक्षण के लिए जाने जाते थे। सुदर्शन दक्षिण भारत से पहले आरएसएस प्रमुख थे। उन्होंने आर्थिक संप्रभुता और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण पर जोर दिया। अगस्त 2012 में मैसूर में सुबह की सैर के दौरान वह कुछ समय के लिए लापता हो गए थे। सुदर्शन अपने कट्टर विचारों के लिए जाने जाते थे और ‘स्वदेशी’ की अवधारणा में विश्वास रखते थे। शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को लोग याद रखेंगे। सामाजिक समरसता और सद्भाव के लिए अपने कार्यकाल के दौरान वह ईसाई और मुस्लिम समाज से सतत संवाद स्थापित करने में प्रयत्नशील रहे।

वह भाजपा नेताओं के खिलाफ विवादात्मक टिप्पणियों के लिए भी जाने जाते थे। 2004 के लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार के बाद सुदर्शन ने एक साक्षात्कार में कहा था कि अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे वरिष्ठ नेताओं को युवा नेतृत्व के लिए मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। वह संघ के अंदर एनडीए सरकार की आर्थिक नीतियों के आलोचक रहे थे। सुदर्शन आरएसएस के वह प्रमुख थे, जिनके कार्यकाल में भाजपा और संघ के रिश्‍तों का एक नया अध्‍याय शुरू हुआ और एक तरह से दोनों के बीच तल्‍खी भी तभी से शुरू हुई। उनके कड़े रुख के चलते ही आडवाणी को भाजपा अध्‍यक्ष का पद छोड़ना पड़ा था।

के एस सुदर्शन का 15-09-2012 को रायपुर में दिल का दौरा पड़ने से निधन हुआ था। वह 81 वर्ष के थे। सुदर्शन का सुबह लगभग 6:30 बजे आर एस एस के प्रांतीय कार्यालय जागृति मंडल में निधन हुआ। वह रोज की तरह सुबह सैर करके आर एस एस के दफ्तर में आकर बैठे थे, तभी उन्हें दिल का दौरा पड़ गया। वह काफी लंबे समय से बीमार चल रहे थे। डाक्टरों ने बताया कि उन्होंने उस समय अंतिम सांस ली जब वह सुबह के समय 40 मिनट की नियमित सैर के बाद अपने कक्ष में प्राणायाम कर रहे थे। वह 13 सितंबर से रायुपर प्रवास पर थे। उन्होंने पूर्व सांसद गोपाल व्यास द्वारा लिखित पुस्तक ‘सत्यमेव जयते’ का विमोचन 14-09-2012 को किया था। मरने से पूर्व उन्होंने अपनी आंख माधव आई बैंक को दान में दे दी थी।

नागपुर में आरएसएस मुख्यालय के एक अधिकारी विकास तेलंग के मुताबिक सुदर्शन रोज की तरह शनिवार सुबह भी टहलने के लिए निकले थे। टहलने के बाद वह रायपुर कार्यालय में कुछ स्वयंसेवकों ने देखा कि सुदर्शन अपने कमरे में ध्यान लगाने के दौरान नीचे झुक गए। उन्हें देखकर लगा कि वह सो गए हैं, स्वयंसेवकों ने उन्हें हिलाया लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। बाद में डॉक्टर को बुलाया गया, उसने पुष्टि की कि उनका निधन हो गया है।


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