गुरदयाल सिंह ढिल्‍लों: Difference between revisions

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'''डॉ. गुरदयाल सिंह ढिल्लों''' भारत के चौथे लोकसभा अध्यक्ष थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे जिन्हें कानून से लेकर पत्रकारिता तथा शिक्षा और खेलकूद से लेकर संवैधानिक अध्ययन में रुचि थी। सिद्धांतों से समझौता करना उन्हें कतई पसंद नहीं था। उनके लिए संसद लोकतंत्र का मंदिर था और इसलिए सभा और इसकी परम्पराओं तथा परिपाटियों के प्रति उनके मन में अत्यधिक सम्मान था। उनमें सभा की मनःस्थिति को पल भर में भांपने की अद्भुत क्षमता थी तथा उनका दृष्टिकोण व्यावहारिक हुआ करता था। इन्हीं गुणों के कारण वे अध्यक्ष पद के गुरुतर दायित्व का निर्वहन गौरवशाली तरीके से कर पाए। अंतर-संसदीय संघ की अंतर-संसदीय परिषद के प्रेजीडेंट के रूप में ढिल्लों का चुनाव न केवल उनके लिए बल्कि भारत की पूरी जनता तथा भारतीय संसद के लिए भी बहुत सम्मान की बात थी।
'''डॉ. गुरदयाल सिंह ढिल्लों''' भारत के चौथे लोकसभा अध्यक्ष थे। ये बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे जिन्हें कानून से लेकर पत्रकारिता तथा शिक्षा और खेलकूद से लेकर संवैधानिक अध्ययन में रुचि थी। सिद्धांतों से समझौता करना उन्हें कतई पसंद नहीं था। उनके लिए संसद लोकतंत्र का मंदिर था और इसलिए सभा और इसकी परम्पराओं तथा परिपाटियों के प्रति उनके मन में अत्यधिक सम्मान था। उनमें सभा की मनःस्थिति को पल भर में भांपने की अद्भुत क्षमता थी तथा उनका दृष्टिकोण व्यावहारिक हुआ करता था। इन्हीं गुणों के कारण वे अध्यक्ष पद के गुरुतर दायित्व का निर्वहन गौरवशाली तरीके से कर पाए। अंतर-संसदीय संघ की अंतर-संसदीय परिषद के प्रेजीडेंट के रूप में ढिल्लों का चुनाव न केवल उनके लिए बल्कि भारत की पूरी जनता तथा भारतीय संसद के लिए भी बहुत सम्मान की बात थी।


==शीर्षक उदाहरण 1==
==शीर्षक उदाहरण 1==

Revision as of 11:36, 18 September 2012

डॉ. गुरदयाल सिंह ढिल्लों भारत के चौथे लोकसभा अध्यक्ष थे। ये बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे जिन्हें कानून से लेकर पत्रकारिता तथा शिक्षा और खेलकूद से लेकर संवैधानिक अध्ययन में रुचि थी। सिद्धांतों से समझौता करना उन्हें कतई पसंद नहीं था। उनके लिए संसद लोकतंत्र का मंदिर था और इसलिए सभा और इसकी परम्पराओं तथा परिपाटियों के प्रति उनके मन में अत्यधिक सम्मान था। उनमें सभा की मनःस्थिति को पल भर में भांपने की अद्भुत क्षमता थी तथा उनका दृष्टिकोण व्यावहारिक हुआ करता था। इन्हीं गुणों के कारण वे अध्यक्ष पद के गुरुतर दायित्व का निर्वहन गौरवशाली तरीके से कर पाए। अंतर-संसदीय संघ की अंतर-संसदीय परिषद के प्रेजीडेंट के रूप में ढिल्लों का चुनाव न केवल उनके लिए बल्कि भारत की पूरी जनता तथा भारतीय संसद के लिए भी बहुत सम्मान की बात थी।

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