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[[भारतकोश सम्पादकीय 22 सितम्बर 2012|चौकोर फ़ुटबॉल]]
[[भारतकोश सम्पादकीय 30 अक्टूबर 2012|उसके सुख का दु:ख]]
             ये दुनिया जितनी भी तरक़्क़ी कर रही है वह पहली श्रेणी वाले लोगों के कारण कर रही है और दुनिया में व्यवस्था संभालने का ज़िम्मा उनका है जो दूसरी श्रेणी के लोग हैं, अब रह जाते हैं तीसरी श्रेणी के लोग... तो आप ख़ुद ही सोच सकते हैं कि वे किस श्रेणी में आते हैं। ये लोग होते हैं चौकोर फ़ुटबॉल।  [[भारतकोश सम्पादकीय 22 सितम्बर 2012|...पूरा पढ़ें]]
             ईर्ष्या के बारे में सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि ईर्ष्या 'की' नहीं जाती ईर्ष्या 'हो' जाती है। कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं होता जो सोच समझकर ईर्ष्या कर पाये। ईर्ष्या मानव के सहज स्वभाव के मूल में निहित है। यह प्रकृति की देन है। इसी तरह ईर्ष्या सामाजिक शिक्षा या संस्था नहीं है, जिसके लिए किसी को प्रशिक्षित किया जा सके। [[भारतकोश सम्पादकीय 30 अक्टूबर 2012|...पूरा पढ़ें]]
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 4 सितम्बर 2012|शाप और प्रतिज्ञा]] ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 22 सितम्बर 2012|चौकोर फ़ुटबॉल]] ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 21 अगस्त 2012|यादों का फंडा]]  
| [[भारतकोश सम्पादकीय 4 सितम्बर 2012|शाप और प्रतिज्ञा]]  
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Revision as of 10:41, 30 October 2012

भारतकोश सम्पादकीय-आदित्य चौधरी

right|120px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 30 अक्टूबर 2012

उसके सुख का दु:ख
             ईर्ष्या के बारे में सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि ईर्ष्या 'की' नहीं जाती ईर्ष्या 'हो' जाती है। कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं होता जो सोच समझकर ईर्ष्या कर पाये। ईर्ष्या मानव के सहज स्वभाव के मूल में निहित है। यह प्रकृति की देन है। इसी तरह ईर्ष्या सामाजिक शिक्षा या संस्था नहीं है, जिसके लिए किसी को प्रशिक्षित किया जा सके। ...पूरा पढ़ें

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