आपस की फूट: Difference between revisions

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'''आपस की फूट''' [[पंचतंत्र]] की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता [[विष्णु शर्मा|आचार्य विष्णु शर्मा]] है।
'''आपस की फूट''' [[पंचतंत्र]] की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता [[विष्णु शर्मा|आचार्य विष्णु शर्मा]] है।
==कहानी==
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         प्राचीन समय में एक विचित्र पक्षी रहता था। उसका धड़ एक ही था, परन्तु सिर दो थे नाम था उसका भारुंड। एक शरीर होने के बावज़ूद उसके सिरों में एकता नहीं थी और न ही था तालमेल। वे एक दूसरे से बैर रखते थे। हर जीव सोचने समझने का काम दिमाग से करता हैं और दिमाग होता हैं सिर में। दो सिर होने के कारण भारुंड के दिमाग भी दो थे। जिनमें से एक पूरब जाने की सोचता तो दूसरा पश्चिम, फल यह होता था कि टांगें एक क़दम पूरब की ओर चलती तो अगला क़दम पश्चिम की ओर और भारुंड स्वयं को वहीं खडा पाता था। भारुंड का जीवन बस दो सिरों के बीच रस्साकसी बनकर रह गया था।
         प्राचीन समय में एक विचित्र पक्षी रहता था। उसका धड़ एक ही था, परन्तु सिर दो थे नाम था उसका भारुंड। एक शरीर होने के बावज़ूद उसके सिरों में एकता नहीं थी और न ही था तालमेल। वे एक दूसरे से बैर रखते थे। हर जीव सोचने समझने का काम दिमाग से करता हैं और दिमाग होता हैं सिर में। दो सिर होने के कारण भारुंड के दिमाग भी दो थे। जिनमें से एक पूरब जाने की सोचता तो दूसरा पश्चिम, फल यह होता था कि टांगें एक क़दम पूरब की ओर चलती तो अगला क़दम पश्चिम की ओर और भारुंड स्वयं को वहीं खडा पाता था। भारुंड का जीवन बस दो सिरों के बीच रस्साकसी बनकर रह गया था।


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दूसरा सिर तो बदला लेने पर उतारु था। बोला 'मैने तेरे मरने-जीने का ठेका थोडे ही ले रखा हैं? मैं जो खाना चाहता हूं, वह खाऊंगा चाहे उसका नतीजा कुछ भी हो। अब मुझे शांति से विषैला फल खाने दे।'
दूसरा सिर तो बदला लेने पर उतारु था। बोला 'मैने तेरे मरने-जीने का ठेका थोडे ही ले रखा हैं? मैं जो खाना चाहता हूं, वह खाऊंगा चाहे उसका नतीजा कुछ भी हो। अब मुझे शांति से विषैला फल खाने दे।'
दूसरे सिर ने सारा विषैला फल खा लिया और भारुंड तडप-तडपकर मर गया।
दूसरे सिर ने सारा विषैला फल खा लिया और भारुंड तडप-तडपकर मर गया।
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;सीख-- आपस की फूट सदा ले डूबती है।
;सीख-- आपस की फूट सदा ले डूबती है।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

Revision as of 08:42, 25 November 2012

आपस की फूट पंचतंत्र की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता आचार्य विष्णु शर्मा है।

कहानी

        प्राचीन समय में एक विचित्र पक्षी रहता था। उसका धड़ एक ही था, परन्तु सिर दो थे नाम था उसका भारुंड। एक शरीर होने के बावज़ूद उसके सिरों में एकता नहीं थी और न ही था तालमेल। वे एक दूसरे से बैर रखते थे। हर जीव सोचने समझने का काम दिमाग से करता हैं और दिमाग होता हैं सिर में। दो सिर होने के कारण भारुंड के दिमाग भी दो थे। जिनमें से एक पूरब जाने की सोचता तो दूसरा पश्चिम, फल यह होता था कि टांगें एक क़दम पूरब की ओर चलती तो अगला क़दम पश्चिम की ओर और भारुंड स्वयं को वहीं खडा पाता था। भारुंड का जीवन बस दो सिरों के बीच रस्साकसी बनकर रह गया था।

        एक दिन भारुंड भोजन की तलाश में नदी तट पर धूम रहा था कि एक सिर को नीचे गिरा एक फल नजर आया। उसने चोंच मारकर उसे चखकर देखा तो जीभ चटकाने लगा 'वाह! ऐसा स्वादिष्ट फल तो मैंने आज तक कभी नहीं खाया। भगवान ने दुनिया में क्या-क्या चीज़ें बनाई हैं।'
'अच्छा! जरा मैं भी चखकर देखूं।' कहकर दूसरे ने अपनी चोंच उस फल की ओर बढाई ही थी कि पहले सिर ने झटककर दूसरे सिर को दूर फेंका और बोला 'अपनी गंदी चोंच इस फल से दूर ही रख। यह फल मैंने पाया हैं और इसे मैं ही खाऊंगा।'
'अरे! हम् दोनों एक ही शरीर के भाग हैं। खाने-पीने की चीज़ें तो हमें बांटकर खानी चाहिए।' दूसरे सिर ने दलील दी। पहला सिर कहने लगा 'ठीक ! हम एक शरीर के भाग हैं। पेट हमारा एक ही हैं। मैं इस फल को खाऊंगा तो वह पेट में ही तो जाएगा और पेट तेरा भी हैं।'
दूसरा सिर बोला 'खाने का मतलब केवल पेट भरना ही नहीं होता भाई। जीभ का स्वाद भी तो कोई चीज़ हैं। तबीयत को संतुष्टि तो जीभ से ही मिलती हैं। खाने का असली मजा तो मुंह में ही हैं।'
पहला सिर तुनकर चिढाने वाले स्वर में बोला 'मैंने तेरी जीभ और खाने के मजे का ठेका थोडे ही ले रखा हैं। फल खाने के बाद पेट से डकार आएगी। वह डकार तेरे मुंह से भी निकलेगी। उसी से गुजारा चला लेना। अब ज़्यादा बकवास न कर और मुझे शांति से फल खाने दे।' ऐसा कहकर पहला सिर चटकारे ले-लेकर फल खाने लगा।

        इस घटना के बाद दूसरे सिर ने बदला लेने की ठान ली और मौके की तलाश में रहने लगा। कुछ दिन बाद फिर भारुंड भोजन की तलाश में घूम रहा था कि दूसरे सिर की नजर एक फल पर पडी। उसे जिस चीज़ की तलाश थी, उसे वह मिल गई थी। दूसरा सिर उस फल पर चोंच मारने ही जा रहा था कि कि पहले सिर ने चीखकर चेतावनी दी 'अरे, अरे! इस फल को मत खाना। क्या तुझे पता नहीं कि यह विषैला फल हैं? इसे खाने पर मॄत्यु भी हो सकती है।'
दूसरा सिर हंसा 'हे हे हे! तु चुपचाप अपना काम देख। तुझे क्या लेना हैं कि मैं क्या खा रहा हूं? भूल गया उस दिन की बात?'
पहले सिर ने समझाने की कोशिश की 'तुने यह फल खा लिया तो हम दोनों मर जाएंगे।'
दूसरा सिर तो बदला लेने पर उतारु था। बोला 'मैने तेरे मरने-जीने का ठेका थोडे ही ले रखा हैं? मैं जो खाना चाहता हूं, वह खाऊंगा चाहे उसका नतीजा कुछ भी हो। अब मुझे शांति से विषैला फल खाने दे।'
दूसरे सिर ने सारा विषैला फल खा लिया और भारुंड तडप-तडपकर मर गया।

सीख-- आपस की फूट सदा ले डूबती है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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