बख्शी ग्रन्थावली-1: Difference between revisions
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Revision as of 08:34, 13 December 2012
बख्शी ग्रन्थावली-1 हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की 'बख्शी ग्रन्थावली' का पहला खण्ड है। इस खण्ड में पाठकों के समक्ष उनकी कविताएँ, नाटक/एकांकी, उपन्यास और कुछ अनूदित रचनाएँ प्रस्तुत की गयी हैं।
साहित्य जगत में 'साहित्यवाचस्पति पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी' का प्रवेश सर्वप्रथम कवि के रूप में हुआ था। कहा जाता है कवि का व्यक्तित्व जितना सर्वोपरि होगा साहित्य के लिए उतना ही महत्वपूर्ण भी । बख्शी जी इस कसौटी पर खरे उतरते हैं। उनकी रचनाओं में उनका व्यक्तित्व स्पष्ट परिलक्षित होता है। बख्शी जी मनसा, वाचा, और कर्मणा से विशुद्ध साहित्यकार थे। मान प्रतिष्ठा पद या कीर्ति की लालसा से कोसों दूर निष्काम कर्मयोगी की भाँति पूरी ईमानदारी और पवित्रता से निश्छल भावों की अभिव्यक्ति को साकार रूप देने की कोशिश में निरन्तर साहित्य सृजन करते रहे। उपन्यास के प्रेमी पाठक होने पर भी अपने को असफल कहते, लेकिन इनके उपन्यासों को पढ़ कर कोई यह नहीं कह सकता कि बख्शी जी असफल उपन्यासकार हैं।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीवास्तव, डॉ. नलिनी। सम्पूर्ण बख्शी ग्रन्थावली आठ खण्डों में (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) वाणी प्रकाशन (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 13 दिसम्बर, 2012।