Template:साप्ताहिक सम्पादकीय: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 3: Line 3:
| style="background:transparent;"|
| style="background:transparent;"|
{| style="background:transparent; width:100%"
{| style="background:transparent; width:100%"
|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 9 जुलाई 2013|भारतकोश सम्पादकीय <small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 11 अगस्त 2013|भारतकोश सम्पादकीय <small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
|-
|-
{{मुखपृष्ठ-{{CURRENTHOUR}}}}
{{मुखपृष्ठ-{{CURRENTHOUR}}}}
Line 9: Line 9:
|- valign="top"
|- valign="top"
|  
|  
[[चित्र:Sundial.jpg|border|right|100px|link=भारतकोश सम्पादकीय 9 जुलाई 2013]]
[[चित्र:Ghareebee.jpg|border|right|100px|link=भारतकोश सम्पादकीय 11 अगस्त 2013]]
<center>[[भारतकोश सम्पादकीय 9 जुलाई 2013|कल आज और कल]]</center>
<center>[[भारतकोश सम्पादकीय 11 अगस्त 2013|ग़रीबी का दिमाग़]]</center>
<poem>
<poem>
अक्सर [[नारद|नारद जी]] ही अपने अनूठे प्रश्नों के लिए प्रसिद्ध हैं, तो नारद जी ने भगवान [[कृष्ण]] से पूछा-
        तम्बू में सन्नाटा हो गया, सब एक दूसरे की तरफ़ देखने लगे। जब कोई कुछ नहीं बोला तो पहले ग़रीब की हाईस्कूल पास पत्नी अचानक बोल पड़ी-
"अब [[द्वापर युग|द्वापर]] के बाद [[कलि युग|कलियुग]] आएगा वह कैसा [[युग]] होगा प्रभु!
"ठीक कह रहे हैं बाबू जी, ग़रीबी हमारे दिमाग़ में है... आप लोगों के दिमाग़ में नहीं... अगर हमारी ग़रीबी आपके दिमाग़ में भी होती तो हम ग़रीब नहीं होते..." [[भारतकोश सम्पादकीय 11 अगस्त 2013|...पूरा पढ़ें]]
कृष्ण बोले "देवर्षि नारद! [[सत युग|सतयुग]], सत्य का युग था। [[त्रेता युग|त्रेता]] मर्यादा का युग था। द्वापर कर्म का युग है और कलियुग न्याय का युग होगा।"
नारद: "सर्वश्रेष्ठ युग कौन सा होता है प्रभु?" [[भारतकोश सम्पादकीय 9 जुलाई 2013|...पूरा पढ़ें]]
</poem>
</poem>
<center>
<center>
Line 21: Line 19:
|-
|-
| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले लेख]] →
| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले लेख]] →
| [[भारतकोश सम्पादकीय 9 जुलाई 2013|कल आज और कल]]  ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 3 जून 2013|घूँघट से मरघट तक]]  ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 3 जून 2013|घूँघट से मरघट तक]]  ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 3 मई 2013|सभ्य जानवर]]  ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 3 मई 2013|सभ्य जानवर]]   
| [[भारतकोश सम्पादकीय 15 अप्रॅल 2013|वोटरानी और वोटर]]
|}</center>
|}</center>
|}  
|}  
|}<noinclude>[[Category:मुखपृष्ठ के साँचे]]</noinclude>
|}<noinclude>[[Category:मुखपृष्ठ के साँचे]]</noinclude>

Revision as of 14:08, 11 August 2013

भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी

border|right|100px|link=भारतकोश सम्पादकीय 11 अगस्त 2013

ग़रीबी का दिमाग़

        तम्बू में सन्नाटा हो गया, सब एक दूसरे की तरफ़ देखने लगे। जब कोई कुछ नहीं बोला तो पहले ग़रीब की हाईस्कूल पास पत्नी अचानक बोल पड़ी-
"ठीक कह रहे हैं बाबू जी, ग़रीबी हमारे दिमाग़ में है... आप लोगों के दिमाग़ में नहीं... अगर हमारी ग़रीबी आपके दिमाग़ में भी होती तो हम ग़रीब नहीं होते..." ...पूरा पढ़ें

पिछले लेख कल आज और कल · घूँघट से मरघट तक · सभ्य जानवर