नित्य शील बौद्ध निकाय: Difference between revisions

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#शराब आद मादक द्रव्यों के पीने से विरत रहना-  
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ये पाँच नित्य शील हैं। अर्थात इनके पालन से कोई पुण्य नहीं होता, किन्तु इनका पालन न करने से दोष (आपत्ति) होता है। ये 5 शील सभी लोगों के लिए अनिवार्य हैं। गृहस्थ, प्रव्रजित (श्रामणेर), भिक्षु-भिक्षुणी सभी को इनका पालन करना चाहिए। यदि गृहस्थ श्रद्धा और उत्साह से सम्पन्न हो तो वह अष्टमी, पूर्णिमा अमावस्या (उपोसथ) के दिन 8 या 10 शीलों का भी पालन कर सकता है। इन्हें अष्टाङ्गशील या दशशील कहते हैं।  
ये पाँच नित्य शील हैं। अर्थात इनके पालन से कोई पुण्य नहीं होता, किन्तु इनका पालन न करने से दोष (आपत्ति) होता है। ये 5 शील सभी लोगों के लिए अनिवार्य हैं। गृहस्थ, प्रव्रजित (श्रामणेर), भिक्षु-भिक्षुणी सभी को इनका पालन करना चाहिए। यदि गृहस्थ श्रद्धा और उत्साह से सम्पन्न हो तो वह अष्टमी, पूर्णिमा अमावस्या (उपोसथ) के दिन 8 या 10 शीलों का भी पालन कर सकता है। इन्हें अष्टाङ्गशील या दशशील कहते हैं।  
 
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Revision as of 09:24, 15 July 2010

बौद्ध धर्म के अठारह बौद्ध निकायों में नित्य शील की यह परिभाषा है:-

  1. प्राणातिपात से विरत रहना,
  2. चोरी से विरत रहना,
  3. मृषावाद से विरत रहना,
  4. काम मिथ्याचार से विरत रहना, तथा
  5. शराब आद मादक द्रव्यों के पीने से विरत रहना-

ये पाँच नित्य शील हैं। अर्थात इनके पालन से कोई पुण्य नहीं होता, किन्तु इनका पालन न करने से दोष (आपत्ति) होता है। ये 5 शील सभी लोगों के लिए अनिवार्य हैं। गृहस्थ, प्रव्रजित (श्रामणेर), भिक्षु-भिक्षुणी सभी को इनका पालन करना चाहिए। यदि गृहस्थ श्रद्धा और उत्साह से सम्पन्न हो तो वह अष्टमी, पूर्णिमा अमावस्या (उपोसथ) के दिन 8 या 10 शीलों का भी पालन कर सकता है। इन्हें अष्टाङ्गशील या दशशील कहते हैं।

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