गैप सागर झील: Difference between revisions
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गैब सागर झील के निर्माण से संबंधित किंवदंती के अनुसार इस झील के स्थान पर पहले चौबीसों के खेत थे। इस स्मृति को चिरस्थायी बनाए रखने के लिए पाल पर तीन छत्रियाँ बनाई गईं, जिन्हें ‘चौबीसों की छत्रियाँ’ कहा जाता है। लहलहाती फ़सलों ने वहां से गुजर रहे [[डूंगरपुर]] के साहूकार श्यामलदास दावड़ा के पुत्रों का ध्यान अपनी ओर खींचा और वे [[गेहूँ]] की उंबियां पाने की जिद करने लगे, किंतु संध्या हो जाने की वजह से वहां चौकीदार ने इंकार कर दिया। रोते हुए बच्चों ने घर आकर खिन्न मन से यह बात पिता को बतायी। यह सारी घटना सेठ को नागवार गुजरी। उसने इन खेतों का अस्तित्व मिटा देने की ठान ली और इन्हें खरीद कर तालाब बनवाने का काम शुरू किया। राज-दरबार से जुड़े लोगों ने तत्कालीन महारावल को सारी स्थिति समझाते हुए इस काम को यह कहकर बन्द कराने की गुजारिश की कि ऐसा हो जाने पर सेठ की कीर्ति हो जाएगी। तब बन्द कराने के यत्न शुरू हुए और चालाकी के साथ सेठ को समझाया गया कि तालाब बनने पर मछलियों का शिकार होगा और इसका सारा पाप उसे लगेगा। यह बात सेठ को जंच गई और उसने तालाब का काम बीच में ही छोड़ दिया। इसकी एवज में सेठ को खर्चा एवं माणक चौक में जमीन दे दी गई, जहां उसने [[संवत]] 1526 में आदिनाथ भगवान का मन्दिर बनवाने का काम शुरू किया, जो संवत 1529 में पूर्ण हुआ। | गैब सागर झील के निर्माण से संबंधित किंवदंती के अनुसार इस झील के स्थान पर पहले चौबीसों के खेत थे। इस स्मृति को चिरस्थायी बनाए रखने के लिए पाल पर तीन छत्रियाँ बनाई गईं, जिन्हें ‘चौबीसों की छत्रियाँ’ कहा जाता है। लहलहाती फ़सलों ने वहां से गुजर रहे [[डूंगरपुर]] के साहूकार श्यामलदास दावड़ा के पुत्रों का ध्यान अपनी ओर खींचा और वे [[गेहूँ]] की उंबियां पाने की जिद करने लगे, किंतु संध्या हो जाने की वजह से वहां चौकीदार ने इंकार कर दिया। रोते हुए बच्चों ने घर आकर खिन्न मन से यह बात पिता को बतायी। यह सारी घटना सेठ को नागवार गुजरी। उसने इन खेतों का अस्तित्व मिटा देने की ठान ली और इन्हें खरीद कर तालाब बनवाने का काम शुरू किया। राज-दरबार से जुड़े लोगों ने तत्कालीन महारावल को सारी स्थिति समझाते हुए इस काम को यह कहकर बन्द कराने की गुजारिश की कि ऐसा हो जाने पर सेठ की कीर्ति हो जाएगी। तब बन्द कराने के यत्न शुरू हुए और चालाकी के साथ सेठ को समझाया गया कि तालाब बनने पर मछलियों का शिकार होगा और इसका सारा पाप उसे लगेगा। यह बात सेठ को जंच गई और उसने तालाब का काम बीच में ही छोड़ दिया। इसकी एवज में सेठ को खर्चा एवं माणक चौक में जमीन दे दी गई, जहां उसने [[संवत]] 1526 में आदिनाथ भगवान का मन्दिर बनवाने का काम शुरू किया, जो संवत 1529 में पूर्ण हुआ।<ref>{{cite web |url=http://hindi.indiawaterportal.org/content/%E0%A4%A1%E0%A5%82%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%97%E0%A5%88%E0%A4%AA-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%B0-%E0%A4%9D%E0%A5%80%E0%A4%B2 |title=डूंगरपुर की गैप सागर झील|accessmonthday=14 मई|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | ||
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क्षेत्रफल के लिहाज से देखा जाए तो अपने चारों तरफ़ चार घाट वाली गैब सागर झील 279 बीघा 2 बिस्वा (44.5 हैक्टर) है, जिसके मुख्य घाट की लम्बाई ही 700 फीट और ऊँचाई 100 फीट है। जलाशयों के वास्तुशास्त्र की पुरातन विधियों पर आधारित गैब सागर के उत्तरी पार्श्व में तहसील चौराहे से लेकर रामबोला मठ तक 570 फीट लम्बा धोबी घाट है, जो जीर्ण-शीर्ण हो चुका है। बादल महल के नीचे जनाना घाट है, जहाँ सन्नारियां अथाह जलराशि के बीच खुद को पाकर अपना सौन्दर्य निखारती थीं; जबकि वनेश्वर महादेव मंदिर के सामने छोटा घाट था, जो साधु-संतों और महन्त-मठाधीशों के [[स्नान]]-[[ध्यान]] में प्रयुक्त होता था। मुख्य घाट [[डूंगरपुर]] नगरपालिका ने सन [[1993]]-[[1994]] में भराव डालकर 450 फीट का कर दिया, इससे इसका पारम्परिक स्वरूप संकुचित हो गया। | क्षेत्रफल के लिहाज से देखा जाए तो अपने चारों तरफ़ चार घाट वाली गैब सागर झील 279 बीघा 2 बिस्वा (44.5 हैक्टर) है, जिसके मुख्य घाट की लम्बाई ही 700 फीट और ऊँचाई 100 फीट है। जलाशयों के वास्तुशास्त्र की पुरातन विधियों पर आधारित गैब सागर के उत्तरी पार्श्व में तहसील चौराहे से लेकर रामबोला मठ तक 570 फीट लम्बा धोबी घाट है, जो जीर्ण-शीर्ण हो चुका है। बादल महल के नीचे जनाना घाट है, जहाँ सन्नारियां अथाह जलराशि के बीच खुद को पाकर अपना सौन्दर्य निखारती थीं; जबकि वनेश्वर महादेव मंदिर के सामने छोटा घाट था, जो साधु-संतों और महन्त-मठाधीशों के [[स्नान]]-[[ध्यान]] में प्रयुक्त होता था। मुख्य घाट [[डूंगरपुर]] नगरपालिका ने सन [[1993]]-[[1994]] में भराव डालकर 450 फीट का कर दिया, इससे इसका पारम्परिक स्वरूप संकुचित हो गया। |
Revision as of 09:52, 14 May 2014
गैब सागर झील राजस्थान के डूंगरपुर में स्थित है। इस झील के खूबसूरत प्राकृतिक वातावरण में विभिन्न प्रजातियों के पक्षी रहते हैं। इसलिए बड़ी संख्या में पक्षियों को देखने में रुचि रखने वाले लोग यहां आते हैं। झील के पास ही 'श्रीनाथजी' का प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के अलावा कई छोटे-छोटे मंदिर हैं। इनमें से एक मंदिर 'विजयराज राजेश्वर' का है, जो भगवान शिव को समर्पित है।
निर्माण
गैब सागर झील के निर्माण से संबंधित किंवदंती के अनुसार इस झील के स्थान पर पहले चौबीसों के खेत थे। इस स्मृति को चिरस्थायी बनाए रखने के लिए पाल पर तीन छत्रियाँ बनाई गईं, जिन्हें ‘चौबीसों की छत्रियाँ’ कहा जाता है। लहलहाती फ़सलों ने वहां से गुजर रहे डूंगरपुर के साहूकार श्यामलदास दावड़ा के पुत्रों का ध्यान अपनी ओर खींचा और वे गेहूँ की उंबियां पाने की जिद करने लगे, किंतु संध्या हो जाने की वजह से वहां चौकीदार ने इंकार कर दिया। रोते हुए बच्चों ने घर आकर खिन्न मन से यह बात पिता को बतायी। यह सारी घटना सेठ को नागवार गुजरी। उसने इन खेतों का अस्तित्व मिटा देने की ठान ली और इन्हें खरीद कर तालाब बनवाने का काम शुरू किया। राज-दरबार से जुड़े लोगों ने तत्कालीन महारावल को सारी स्थिति समझाते हुए इस काम को यह कहकर बन्द कराने की गुजारिश की कि ऐसा हो जाने पर सेठ की कीर्ति हो जाएगी। तब बन्द कराने के यत्न शुरू हुए और चालाकी के साथ सेठ को समझाया गया कि तालाब बनने पर मछलियों का शिकार होगा और इसका सारा पाप उसे लगेगा। यह बात सेठ को जंच गई और उसने तालाब का काम बीच में ही छोड़ दिया। इसकी एवज में सेठ को खर्चा एवं माणक चौक में जमीन दे दी गई, जहां उसने संवत 1526 में आदिनाथ भगवान का मन्दिर बनवाने का काम शुरू किया, जो संवत 1529 में पूर्ण हुआ।[1]
क्षेत्रफल
क्षेत्रफल के लिहाज से देखा जाए तो अपने चारों तरफ़ चार घाट वाली गैब सागर झील 279 बीघा 2 बिस्वा (44.5 हैक्टर) है, जिसके मुख्य घाट की लम्बाई ही 700 फीट और ऊँचाई 100 फीट है। जलाशयों के वास्तुशास्त्र की पुरातन विधियों पर आधारित गैब सागर के उत्तरी पार्श्व में तहसील चौराहे से लेकर रामबोला मठ तक 570 फीट लम्बा धोबी घाट है, जो जीर्ण-शीर्ण हो चुका है। बादल महल के नीचे जनाना घाट है, जहाँ सन्नारियां अथाह जलराशि के बीच खुद को पाकर अपना सौन्दर्य निखारती थीं; जबकि वनेश्वर महादेव मंदिर के सामने छोटा घाट था, जो साधु-संतों और महन्त-मठाधीशों के स्नान-ध्यान में प्रयुक्त होता था। मुख्य घाट डूंगरपुर नगरपालिका ने सन 1993-1994 में भराव डालकर 450 फीट का कर दिया, इससे इसका पारम्परिक स्वरूप संकुचित हो गया।
जीर्णोद्धार
समय-समय पर गैब सागर झील की मरम्मत का काम होता रहा है। डूंगरपुर के 27वें महारावल शिवसिंह, ईस्वी सन 1730-1785 (विक्रम संवत 1786-1842) के समय व्यापक स्तर पर इसकी मरम्मत का काम हुआ। उन्होंने तालाब को पर्यटन स्थल बनाने के लिए इसकी मुख्य पाल पर छतरियाँ बनवाईं, जिन्हें 'शिवशाही छतरियाँ' कहा जाता है। रियासत के तत्कालीन संभ्रांत व्यक्तियों के नाम पर यहीं ओटली में पारेवा पत्थर की प्रशस्ति अंकित की गई। अब इसके लेख घिस गए हैं। महारावल लक्ष्मणसिंह ने इसके जीर्णोद्धार में रुचि ली और भागा महल के पास की छतरी को दूसरे छोर पर स्थापित करवा दिया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ डूंगरपुर की गैप सागर झील (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 14 मई, 2014।