जयवर्मन द्वितीय: Difference between revisions
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'''जयवर्मन द्वितीय''' (802-854 ई.) [[कंबोडिया]] का प्रसिद्ध राजा, जिसने 'अंगकोर वंश' की नींव डाली थी। जयवर्मन द्वितीय को अपने समय में 'कंबुजराजेंद्र' और उसकी महारानी को 'कंबुजराजलक्ष्मी' नाम से अभिहित किया जाता था। इसी के समय से कंबोडिया के प्राचीन नाम 'कंबुज' या 'कंबोज' का विदेशी लेखकों ने भी प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया था। | '''जयवर्मन द्वितीय''' (802-854 ई.) [[कंबोडिया]] का प्रसिद्ध [[हिन्दू]] राजा, जिसने 'अंगकोर वंश' की नींव डाली थी। जयवर्मन द्वितीय को अपने समय में 'कंबुजराजेंद्र' और उसकी महारानी को 'कंबुजराजलक्ष्मी' नाम से अभिहित किया जाता था। इसी के समय से कंबोडिया के प्राचीन नाम 'कंबुज' या 'कंबोज' का विदेशी लेखकों ने भी प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया था। | ||
*8वीं सदी ई. का कंबोज इतिहास अधिक स्पष्ट नहीं है, किंतु 9वीं सदी का आरंभ होते ही इस प्राचीन साम्राज्य की शक्ति मानों पुन: जीवित हो उठी थी। इसका श्रेय जयवर्मन द्वितीय (802-854 ई.) को दिया जाता है। | *8वीं सदी ई. का कंबोज इतिहास अधिक स्पष्ट नहीं है, किंतु 9वीं सदी का आरंभ होते ही इस प्राचीन साम्राज्य की शक्ति मानों पुन: जीवित हो उठी थी। इसका श्रेय जयवर्मन द्वितीय (802-854 ई.) को दिया जाता है। |
Revision as of 10:25, 19 May 2014
जयवर्मन द्वितीय (802-854 ई.) कंबोडिया का प्रसिद्ध हिन्दू राजा, जिसने 'अंगकोर वंश' की नींव डाली थी। जयवर्मन द्वितीय को अपने समय में 'कंबुजराजेंद्र' और उसकी महारानी को 'कंबुजराजलक्ष्मी' नाम से अभिहित किया जाता था। इसी के समय से कंबोडिया के प्राचीन नाम 'कंबुज' या 'कंबोज' का विदेशी लेखकों ने भी प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया था।
- 8वीं सदी ई. का कंबोज इतिहास अधिक स्पष्ट नहीं है, किंतु 9वीं सदी का आरंभ होते ही इस प्राचीन साम्राज्य की शक्ति मानों पुन: जीवित हो उठी थी। इसका श्रेय जयवर्मन द्वितीय (802-854 ई.) को दिया जाता है।
- जयवर्मन द्वितीय ने 'अंगकोर वंश' की नींव डाली और कंबोज को जावा की अधीनता से मुक्त किया।
- संभवत: जयवर्मन द्वितीय ने भारत से 'हिरण्यदास' नामक ब्राह्मण को बुलवाकर अपने राज्य की सुरक्षा के लिए तांत्रिक क्रियाएँ करवाई थीं। इस विद्वान ब्राह्मण ने 'देवराज' नामक संप्रदाय की स्थापना की, जो शीघ्र ही कंबोज का राजधर्म बन गया।
- जयवर्मन द्वितीय ने अपनी राजधानी क्रमश: कुटी, हरिहरालय और अमरेंद्रपुर नामक नगरों में बनाई थी, जिससे स्पष्ट है कि वर्तमान कंबोडिया का प्राय: समस्त क्षेत्र उसके अधीन था।
- राज्य की शक्ति का केंद्र बढ़ाकर जयवर्मन द्वितीय ने धीरे-धीरे पूर्व से पश्चिम की ओर बढ़या, जिससे यह अंतत: अंग्कोर के प्रदेश तक में स्थापित हो गया था।
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