चिपको आंदोलन: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) m (Adding category Category:उत्तराखंड का इतिहास (को हटा दिया गया हैं।)) |
गोविन्द राम (talk | contribs) m (Adding category Category:उत्तराखंड (को हटा दिया गया हैं।)) |
||
Line 16: | Line 16: | ||
[[Category:पर्यावरण और जलवायु]] | [[Category:पर्यावरण और जलवायु]] | ||
[[Category:उत्तराखंड का इतिहास]] | [[Category:उत्तराखंड का इतिहास]] | ||
[[Category:उत्तराखंड]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Revision as of 07:37, 30 August 2014
thumb|150px|चिपको आंदोलन चिपको आंदोलन पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए किया गया एक महत्त्वपूर्ण आन्दोलन था। आन्दोलन के अंतर्गत 26 मार्च, 1974 ई. को उत्तराखण्ड (तब उत्तर प्रदेश का भाग) के वनों में शांत और अहिंसक विरोध प्रदर्शन किया गया। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य व्यावसाय के लिए हो रही वनों की कटाई को रोकना था और इसे रोकने के लिए महिलाएँ वृक्षों से चिपककर खड़ी हो गई थीं।
शुरुआत
26 मार्च, 1974 को पेड़ों की कटाई रोकने के लिए 'चिपको आंदोलन' शुरू हुआ। उस साल जब उत्तराखंड के रैंणी गाँव के जंगल के लगभग ढाई हज़ार पेड़ों को काटने की नीलामी हुई, तो गौरा देवी नामक महिला ने अन्य महिलाओं के साथ इस नीलामी का विरोध किया। इसके बावजूद सरकार और ठेकेदार के निर्णय में बदलाव नहीं आया। जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने पहुँचे, तो गौरा देवी और उनके 21 साथियों ने उन लोगों को समझाने की कोशिश की। जब उन्होंने पेड़ काटने की जिद की तो महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर उन्हें ललकारा कि पहले हमें काटो फ़िर इन पेड़ों को भी काट लेना। अंतत: ठेकेदार को जाना पड़ा। बाद में स्थानीय वन विभाग के अधिकारियों के सामने इन महिलाओं ने अपनी बात रखी। फलस्वरूप रैंणी गाँव का जंगल नहीं काटा गया। इस प्रकार यहीं से "चिपको आंदोलन" की शुरुआत हुई।[1]
मुख्य कार्यकर्ता
यह आंदोलन सैकड़ों विकेंद्रित तथा स्थानीय स्वत: स्फूर्त प्रयासों का परिणाम था। इस आंदोलन के नेता सुन्दर लाल बहुगुणा और कार्यकर्ता मुख्यत: ग्रामीण महिलाएँ थीं, जो अपने जीवनयापन के साधन व समुदाय को बचाने के लिए तत्पर थीं। पर्यावरणीय विनाश के ख़िलाफ़ शांत अहिंसक विरोध प्रदर्शन इस आंदोलन की अद्वितीय विशेषता थी।
आंदोलन का प्रभाव
उत्तर प्रदेश में इस आंदोलन ने 1980 में तब एक बड़ी जीत हासिल की, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने प्रदेश के हिमालयी वनों में वृक्षों की कटाई पर 15 वर्षों के लिए रोक लगा दी। बाद के वर्षों में यह आंदोलन उत्तर में हिमाचल प्रदेश, दक्षिण में कर्नाटक, पश्चिम में राजस्थान, पूर्व में बिहार और मध्य भारत में विंध्य तक फैला। उत्तर प्रदेश में प्रतिबंध के अलावा यह आंदोलन पश्चिमी घाट और विंध्य पर्वतमाला में वृक्षों की कटाई को रोकने में सफल रहा। साथ ही यह लोगों की आवश्यकताओं और पर्यावरण के प्रति अधिक सचेत प्राकृतिक संसाधन नीति के लिए दबाब बनाने में भी सफल रहा।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ चिपको आंदोलन की शुरुआत (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 24 मार्च, 2013।
संबंधित लेख