क़ायदा -लाल बहादुर शास्त्री: Difference between revisions

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[[लाल बहादुर शास्त्री|शास्त्री जी]] को खुद कष्ट उठाकर दूसरों को सुखी देखने में जो आनंद मिलता था, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। एक बार की घटना है, जब शास्त्री जी रेल मंत्री थे और वह [[मुंबई]] जा रहे थे। उनके लिए प्रथम श्रेणी का डिब्बा लगा था। गाड़ी चलने पर शास्त्रीजी बोले,
'डिब्बे में काफी ठंडक है, वैसे बाहर गर्मी है।'
'डिब्बे में काफ़ी ठंडक है, वैसे बाहर गर्मी है।'
उनके पी.ए. कैलाश बाबू ने कहा,
उनके पी.ए. कैलाश बाबू ने कहा,
'जी, इसमें कूलर लग गया है।'
'जी, इसमें कूलर लग गया है।'

Revision as of 14:10, 1 November 2014

क़ायदा -लाल बहादुर शास्त्री
विवरण लाल बहादुर शास्त्री
भाषा हिंदी
देश भारत
मूल शीर्षक प्रेरक प्रसंग
उप शीर्षक लाल बहादुर शास्त्री के प्रेरक प्रसंग
संकलनकर्ता अशोक कुमार शुक्ला

शास्त्री जी को खुद कष्ट उठाकर दूसरों को सुखी देखने में जो आनंद मिलता था, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। एक बार की घटना है, जब शास्त्री जी रेल मंत्री थे और वह मुंबई जा रहे थे। उनके लिए प्रथम श्रेणी का डिब्बा लगा था। गाड़ी चलने पर शास्त्रीजी बोले,
'डिब्बे में काफ़ी ठंडक है, वैसे बाहर गर्मी है।'
उनके पी.ए. कैलाश बाबू ने कहा,
'जी, इसमें कूलर लग गया है।'
शास्त्री जी ने पैनी निगाह से उन्हें देखा और आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा,
'कूलर लग गया है?...बिना मुझे बताए? आप लोग कोई काम करने से पहले मुझसे पूछते क्यों नहीं? क्या और सारे लोग जो गाड़ी में चल रहे हैं, उन्हें गरमी नहीं लगती होगी?'
शास्त्री जी ने कहा,
'कायदा तो यह है कि मुझे भी थर्ड क्लास में चलना चाहिए, लेकिन उतना तो नहीं हो सकता, पर जितना हो सकता है उतना तो करना चाहिए।'
उन्होंने आगे कहा,
'बड़ा गलत काम हुआ है। आगे गाड़ी जहाँ भी रुके, पहले कूलर निकलवाइए।'
मथुरा स्टेशन पर गाड़ी रुकी और कूलर निकलवाने के बाद ही गाड़ी आगे बढ़ी। आज भी फर्स्ट क्लास के उस डिब्बे में जहाँ कूलर लगा था, वहाँ पर लकड़ी जड़ी है।
(शास्त्री जी के पुत्र सुनील शास्त्री की लिखी पुस्तक 'लालबहादुर शास्त्री, मेरे बाबूजी' के अनुसार)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख