जैन तार्किक और उनके न्यायग्रन्थ: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
m (Text replace - "Category:कोश" to "Category:दर्शन कोश") |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
==बीसवीं शती के जैन तार्किक== | ==बीसवीं शती के जैन तार्किक== | ||
बीसवीं शती में भी कतिपय दार्शनिक एवं नैयायिक हुए हैं, जो उल्लेखनीय हैं। इन्होंने प्राचीन आचार्यों द्वारा लिखित दर्शन और न्याय के ग्रन्थों का न केवल अध्ययन-अध्यापन किया, अपितु उनका राष्ट्रभाषा हिन्दी में अनुवाद एवं सम्पादन भी किया है। साथ में अनुसंधानपूर्ण विस्तृत प्रस्तावनाएँ भी लिखी हैं, जिनमें ग्रन्थ एवं ग्रन्थकार के ऐतिहासिक परिचय के साथ ग्रन्थ के प्रतिपाद्य विषयों का भी तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक आकलन किया गया है। कुछ मौलिक ग्रन्थ भी हिन्दी भाषा में लिखे गये हैं। सन्तप्रवर न्यायचार्य पं॰ गणेशप्रसाद वर्णी न्यायचार्य, पं॰ माणिकचन्द्र कौन्देय, पं॰ सुखलाल संघवी, डा॰ पं॰ महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य, पं॰ कैलाश चन्द्र शास्त्री, पं॰ दलसुख भाइर मालवणिया एवं इस लेख के लेखक डा॰ पं॰ दरबारी लाला कोठिया न्यायाचार्य आदि के नाम विशेष उल्लेख योग्य हैं। | बीसवीं शती में भी कतिपय दार्शनिक एवं नैयायिक हुए हैं, जो उल्लेखनीय हैं। इन्होंने प्राचीन आचार्यों द्वारा लिखित दर्शन और न्याय के ग्रन्थों का न केवल अध्ययन-अध्यापन किया, अपितु उनका राष्ट्रभाषा हिन्दी में अनुवाद एवं सम्पादन भी किया है। साथ में अनुसंधानपूर्ण विस्तृत प्रस्तावनाएँ भी लिखी हैं, जिनमें ग्रन्थ एवं ग्रन्थकार के ऐतिहासिक परिचय के साथ ग्रन्थ के प्रतिपाद्य विषयों का भी तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक आकलन किया गया है। कुछ मौलिक ग्रन्थ भी हिन्दी भाषा में लिखे गये हैं। सन्तप्रवर न्यायचार्य पं॰ गणेशप्रसाद वर्णी न्यायचार्य, पं॰ माणिकचन्द्र कौन्देय, पं॰ सुखलाल संघवी, डा॰ पं॰ महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य, पं॰ कैलाश चन्द्र शास्त्री, पं॰ दलसुख भाइर मालवणिया एवं इस लेख के लेखक डा॰ पं॰ दरबारी लाला कोठिया न्यायाचार्य आदि के नाम विशेष उल्लेख योग्य हैं। | ||
Line 41: | Line 39: | ||
ये तीन तार्किक ऐसे हैं, जिन्होंने अपने न्याय ग्रन्थों में नव्यन्याय को भी अपनाया है, जो नैयायिक गङ्गेश उपाध्याय से उद्भूत हुआ और पिछले तीन-चार दशक तक अध्ययन- अध्यापन में रहा। हमने स्वयं नव्यन्याय के अवच्छेदकत्वनिरुक्ति, सिद्धांतलक्षण, व्याप्तिपंचक, दिनकरी आदि ग्रन्थों का अध्ययन किया तथा नव्यन्याय में मध्यता-परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। | ये तीन तार्किक ऐसे हैं, जिन्होंने अपने न्याय ग्रन्थों में नव्यन्याय को भी अपनाया है, जो नैयायिक गङ्गेश उपाध्याय से उद्भूत हुआ और पिछले तीन-चार दशक तक अध्ययन- अध्यापन में रहा। हमने स्वयं नव्यन्याय के अवच्छेदकत्वनिरुक्ति, सिद्धांतलक्षण, व्याप्तिपंचक, दिनकरी आदि ग्रन्थों का अध्ययन किया तथा नव्यन्याय में मध्यता-परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। | ||
{{जैन दर्शन}} | |||
[[Category:दर्शन कोश]] | [[Category:दर्शन कोश]] | ||
[[Category:दर्शन]] | [[Category:दर्शन]] | ||
[[Category:जैन]] | [[Category:जैन दर्शन]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 11:06, 25 March 2010
बीसवीं शती के जैन तार्किक
बीसवीं शती में भी कतिपय दार्शनिक एवं नैयायिक हुए हैं, जो उल्लेखनीय हैं। इन्होंने प्राचीन आचार्यों द्वारा लिखित दर्शन और न्याय के ग्रन्थों का न केवल अध्ययन-अध्यापन किया, अपितु उनका राष्ट्रभाषा हिन्दी में अनुवाद एवं सम्पादन भी किया है। साथ में अनुसंधानपूर्ण विस्तृत प्रस्तावनाएँ भी लिखी हैं, जिनमें ग्रन्थ एवं ग्रन्थकार के ऐतिहासिक परिचय के साथ ग्रन्थ के प्रतिपाद्य विषयों का भी तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक आकलन किया गया है। कुछ मौलिक ग्रन्थ भी हिन्दी भाषा में लिखे गये हैं। सन्तप्रवर न्यायचार्य पं॰ गणेशप्रसाद वर्णी न्यायचार्य, पं॰ माणिकचन्द्र कौन्देय, पं॰ सुखलाल संघवी, डा॰ पं॰ महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य, पं॰ कैलाश चन्द्र शास्त्री, पं॰ दलसुख भाइर मालवणिया एवं इस लेख के लेखक डा॰ पं॰ दरबारी लाला कोठिया न्यायाचार्य आदि के नाम विशेष उल्लेख योग्य हैं।
जैन तार्किक और उनके न्यायग्रन्थ
- गृद्धपिच्छ
- समन्तभद्र
- सिद्धसेन
- देवनन्दि पूज्यपाद
- श्रीदत्त
- पात्रस्वामी
- अकलंकदेव
- हरिभद्र
- सिद्धसेन द्वितीय
- वादीभसिंह
- बृहदनन्तवीर्य
- विद्यानन्द
- कुमारनन्दि (कुमारनन्दि भट्टारक)
- अनन्तकीर्ति
- माणिक्यनन्दि
- देवसेन
- वादिराज
- प्रभाचन्द्र
- अभयदेव
- लघु अनन्तवीर्य
- देवसूरि
- हेमचन्द्र
- भावसेन त्रैविद्य
- लघु समन्तभद्र
- अभयचन्द्र
- रत्नप्रभसूरि
- मल्लिषेण
- अभिनव धर्मभूषणयति
- शान्तिवर्णी
- नरेन्द्रसेन भट्टारक
- चारुकीर्ति भट्टारक
- विमलदास
- अजितसेन
- यशोविजय
चारुकीर्ति, विमलदास और यशोविजय
ये तीन तार्किक ऐसे हैं, जिन्होंने अपने न्याय ग्रन्थों में नव्यन्याय को भी अपनाया है, जो नैयायिक गङ्गेश उपाध्याय से उद्भूत हुआ और पिछले तीन-चार दशक तक अध्ययन- अध्यापन में रहा। हमने स्वयं नव्यन्याय के अवच्छेदकत्वनिरुक्ति, सिद्धांतलक्षण, व्याप्तिपंचक, दिनकरी आदि ग्रन्थों का अध्ययन किया तथा नव्यन्याय में मध्यता-परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।