गोस्वामी समिति: Difference between revisions

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गोस्वामी समिति का गठन वर्ष 1990 में किया गया था। इस समिति ने भारत में होने वाले चुनावों के सम्बन्ध में कई महत्त्वपूर्ण सुझाव तथा सिफ़ारिशें पेश कीं। समिति की सबसे प्रमुख सिफ़ारिश यह थी कि किसी भी व्यक्ति को दो से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों पर चुनाव लड़ने की अनुमति न दी जाए तथा निर्दलीय उम्मीदवारों की जमानत राशि बढ़ायी जानी चाहिए। ऐसे सभी उम्मीदवारों की जमानत राशि जब्त की जानी चाहिए, जो एक चौथाई नहीं पा सके हों।

समिति गठन का कारण

भारत में चुनाव की व्यवस्था करना और उसकी कार्यविधि को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए संविधान के अनुसार एक 'चुनाव आयोग' की स्थापना की गई है। चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष हो, इस बात का आयोग द्वारा विशेष ध्यान रखा जाता है। पीछे के कुछ वर्षों में चुनाव पद्धति में कुछ ऐसी विसंगतियाँ उत्पन्न होने लगी हैं, जिन्होंने जनता की चुनावों में आस्था को कम किया है। हिंसा, फर्जी मतदान, मतदान केंद्रों पर कब्जा, काले धन का प्रयोग आदि कुछ ऐसी ही विसंगतियाँ हैं, जिनकी प्रवृत्ति निरंतर बढ़ती ही जा रही है। इस कारण आज चुनाव व्यवस्था के महत्त्व में कमी आई है और जनता द्वारा भी उसे शंका की दृष्टि से देखा जाता रहा है। इस कारण सरकार को चुनाव प्रणाली में सुधारों के प्रति सचेत होना पड़ा और समय-समय पर इसके लिए आयोगों और समितियों की स्थापना की गई, जिनका मुख्य उद्देश्य चुनाव व्यवस्था में सुधार लाने के लिए विभिन्न सिफ़ारिशें प्रस्तुत करना था। इस श्रेणी में मुख्यत: ‘तारकुंडे समिति’ और 1990 में दिनेश गोस्वामी की अध्यक्षता में गठित 'गोस्वामी समिति' रहीं, जिनके द्वारा चुनाव सुधार सम्बंधी अनेक महत्त्वपूर्ण सिफ़ारिशें प्रस्तुत की गईं।

सुझाव

'गोस्वामी समिति' द्वारा जिन सुझावों को प्रस्तुत किया गया, उनका वर्णन निम्नलिखित है-

  1. मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों को न केवल सरकार के अंतर्गत किसी नियुक्ति बल्कि राज्यपाल के पद सहित किसी अन्य पद के लिए अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए।
  2. किसी भी व्यक्ति को दो से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों पर चुनाव लड़ने की अनुमति न दी जाए।
  3. सभी चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक मतदान मशीन (ईवीएम) का प्रयोग किया जाए।
  4. मतदान केंद्रों पर कब्जा और मतदाताओं को प्रभावित करने और डराने को समाप्त करने के लिए विधायी उपाये करने चाहिए।
  5. मतदान के दिन मोटर गाड़ियाँ चलाना, आग्नेय शस्त्र लेकर चलना, शराब की बिक्री और वितरण चुनावी अपराध घोषित होना चाहिए।
  6. मतदाताओं को बहुउद्देश्यीय पहचान पत्र प्रदान किया जाए ताकि फर्जी मतदान पर अंकुश लगाया जा सके।
  7. चुनाव आयोग में सदस्यों की संख्या बढ़ायी जाए तथा उसे बहुसदस्यीय बनाया जाए।
  8. सभी चुनावी मुद्दों की जाँच के लिए संसद की एक स्थायी समिति का गठन किया जाए।
  9. निर्दलीय उम्मीदवारों की जमानत राशि बढ़ायी जानी चाहिए। ऐसे सभी उम्मीदवारों की जमानत राशि जब्त की जानी चाहिए, जो एक चौथाई नहीं पा सके हों।
  10. मतदाता सूची तैयार करने, अद्यतन करने आदि सम्बंधी सरकारी ड्यूटी का उल्लघंन करने पर दण्ड की व्यवस्था होनी चाहिए।
  11. आयोग के पर्यवेक्षकों को क़ानूनी हैसियत प्रदान की जाए और उन्हें कुछ हालातों में मतगणना रोकने का अधिकार दिया जाए।

हालांकि 'गोस्वामी समिति' में महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया था, लेकिन इस समिति द्वारा प्रस्तुत की गई सिफ़ारिशों को क्रियान्वित नहीं किया गया। आगे चलकर चुनाव सुधारों से सम्बंधित जिन आयोगों और समितियों का गठन किया गया, उनके लिए इसकी सिफ़ारिशें महत्त्वपूर्ण प्रेरणादायक रहीं और समय-समय पर सरकार द्वारा इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण सिफ़ारिशों को स्वीकार भी किया गया। मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य 'निर्वाचन आयुक्त अधिनियम 1991' तथा लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन) अधिनियम 1996 के द्वारा समिति की अनेक सिफ़ारिशें लागू हो गईं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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