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भारत का परमाणु ऊर्जा विभाग तीन चरणों में नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम चला रहा है-
- पहले चरण में दाबित गुरुजल रिएक्टरों (पी एच डब्ल्यू आर) और उनसे जुड़े ईंधन-चक्र के लिए विधा को स्थापित किया जाना है। ऐसे रिएक्टरों में प्राकृतिक यूरेनियम को ईंधन के रुप में गुरुजल को मॉडरेटर एवं कूलेंट के रुप में प्रयोग किया जाता है।
- दूसरे चरण में फास्ट ब्रीडर रिएक्टर बनाने का प्रावधान है, जिनके साथ पुनः प्रसंस्करण संयंत्र और प्लूटोनियम-आधारित ईंधन संविचरण संयंत्र भी होंगे। प्लूटोनियम को यूरेनियम 238 के विखंडन से प्राप्त किया जाता है।
- तीसरा चरण थोरियम-यूरेनियम-233 चक्र पर आधारित है। यूरेनियम-233 को थोरियम के विकिरण से हासिल किया जाता है।
पहले चरण
नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम के प्रथम चरण का उपयोग व्यावसायिक क्षेत्रों में हो रहा है। भारतीय नाभिकीय ऊर्जा निगम लिमिटेड (एन.पी.सी.आई.एल.) परमाणु ऊर्जा विभाग की सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई है जिस पर नाभिकीय रिएक्टरों के डिजाइन, निर्माण और संचालन का दायित्व है। कम्पनी 17 रिएक्टर्स (दो उबलते जल वाले रिएक्टर और 15 दाबित गुरुजल रिएक्टर) का संचालन करती है जिनकी कुल क्षमता 4120 मेगावॉट है। एनपीसीआईएल 03 पीएचडब्ल्यू रिएक्टर्स का तथा दो हल्के जल रिएक्टर्स का निर्माण का रही है जिससे इसकी क्षमता वर्ष 2008 तक बढ़ का 6780 मेगा इलेक्ट्रिक वॉट हो जाएगी।
द्वितीय चरण
फास्ट ब्रीडर कार्यक्रम तकनीकी प्रदर्शन के चरण में है। दूसरे चरण का अनुभव प्राप्त करने के लिए इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केन्द्र (आई. जी. सी. ए. आर.) तरल सोडियम द्वारा ठंडे किए जा रहे फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों के डिजाइन और विकास में लगा है। इसने फास्ट ब्रीडर रिएक्टर प्रौद्योगिकी विकसित करने में सफलता हासिल कर ली है। इसके 500 मेगावाट क्षमता के प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (पी.एफ.बी.आर.) का निर्माण कलपक्कम में शुरू कर दिया गया है। इन परियोजनाओं को लागू करने के लिए नई कंपनी भारतीय नाभिकीय विद्युत निगम (बीएचएबीआरएनआई) ‘भाविनी’ द्वारा वर्ष 2010-11 तक दक्षिणी ग्रिड को 500 मेगा इलेक्ट्रिक वाट विद्युत की आपूर्ति की जा सकेगी।
तृतीय चरण
नाभिकीय उर्जा कार्यक्रम का तीसरा चरण तकनीकी विकास के चरण में है। बार्क में 300 मेगावाट के उन्नत गुरुजल रिएक्टर (ए.एच.डब्लू.आर.) का विकास कार्य चल रहा है ताकि थोरियम इस्तेमाल में विशेषज्ञता हासिल हो सके और सुरक्षा के पुख्ता तरीकों का प्रदर्शन हो जाए। थोरियम आधारित प्रणालियों जैसे एएचडब्ल्यूआर को व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए तभी स्थापित किया जा सकता है जबकि फास्ट ब्रीडर रिएक्टर के आधार पर उच्च क्षमता का निर्माण कर लिया जाए।
भारत के भारी जल संयंत्र
क्रम | स्थिति | क्षमता (टन-वर्ष) |
---|---|---|
1 | नांगल(पंजाब) | 14 |
2 | बड़ोदरा(गुजरात) | 45 |
3 | तुतीकोरन(तमिलनाडु) | 49 |
4 | तलचर(उड़ीसा) | |
5 | कोटा(राजस्थान) | 85 |
6 | थाल(महाराष्ट्र) | 100 |
7 | मानगुरु(आंध्र प्रदेश) | 185 |
8 | हजीरा(गुजरात) | 100 |
भारत के ईंधन फेब्रीकेशन संयंत्र
क्रम | स्थिति | क्षमता/वर्ष |
---|---|---|
1 | न्यूक्लियर फुएल कॉम्पलैक्स, हैदराबाद | 90 मीट्रिक टन |
2 | यूरेनियम मैटिल संयंत्र, ट्रॉम्बे | 'साइरस' रिएक्टर हेतु पर्याप्त |
3 | तुराहमीर(बिहार) | निर्माणाधीन |
भारत के अनुसंधान रिएक्टर
क्रम | रिएक्टर | स्थिति | निर्माण वर्ष | क्षमता (मेगावॉट) |
---|---|---|---|---|
1 | अप्सरा | ट्रॉम्बे, महाराष्ट्र | 1956 | 1 |
2 | साइरस | ट्रॉम्बे, महाराष्ट्र | 1960 | 40 |
3 | जरलीना | ट्रॉम्बे, महाराष्ट्र | 1961 | 100 |
4 | पूर्णिमा-1, पूर्णिमा-2 | ट्रॉम्बे, महाराष्ट्र | 1972, 1980 | |
5 | पूर्णिमा-3 | ट्रॉम्बे, महाराष्ट्र | 1990 | |
6 | कामिनी | कलपक्कम(तमिलनाडु) | 30 | |
7 | ध्रुव | ट्रॉम्बे, महाराष्ट्र | 1985 | 100 |
8 | फास्ट ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर | कलपक्कम(तमिलनाडु) | 1985 | 42 |