यम (संयम): Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
m (Adding category Category:शब्द संदर्भ कोश (को हटा दिया गया हैं।)) |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "संन्यास" to "सन्न्यास") |
||
Line 3: | Line 3: | ||
'''यम''' [[संस्कृत]] शब्द है जिसका अर्थ 'संयम' है। भारतीय दर्शन की योग पद्धति में साधक को समाधि या परम [[ध्यान]] की स्थिति की ओर ले जाने वाली आठ प्रक्रियाओं में से पहली। यम व्यक्ति के शुद्धिकरण के लिए एक नीतिपरक तैयारी है, इसमें दूसरों को चोट पहुँचाने से बचना, झूठ, चोरी, संभोग एवं कृपणता का त्याग शामिल हैं। | '''यम''' [[संस्कृत]] शब्द है जिसका अर्थ 'संयम' है। भारतीय दर्शन की योग पद्धति में साधक को समाधि या परम [[ध्यान]] की स्थिति की ओर ले जाने वाली आठ प्रक्रियाओं में से पहली। यम व्यक्ति के शुद्धिकरण के लिए एक नीतिपरक तैयारी है, इसमें दूसरों को चोट पहुँचाने से बचना, झूठ, चोरी, संभोग एवं कृपणता का त्याग शामिल हैं। | ||
दूसरा चरण 'नियम'<ref>संस्कृत शब्द, अर्थात अनुशासन</ref> अपने नैतिक उद्देश्य में यम के समान है, जिसमें अनुपालन के पाँच वर्ग हैं। स्वच्छता, अपनी भौतिक स्थिति से संतुष्टि, | दूसरा चरण 'नियम'<ref>संस्कृत शब्द, अर्थात अनुशासन</ref> अपने नैतिक उद्देश्य में यम के समान है, जिसमें अनुपालन के पाँच वर्ग हैं। स्वच्छता, अपनी भौतिक स्थिति से संतुष्टि, सन्न्यास, मोक्ष से संबद्ध तत्त्वमीमांसा का अध्ययन और भगवान के प्रति समर्पण। न तो यम और न ही नियम अलग से योग की कोई स्थिति हैं, ये लोग साधक को दुःसाध्य चरणों के लिए तैयार करते हैं। | ||
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} |
Revision as of 13:54, 2 May 2015
चित्र:Icon-edit.gif | इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
चित्र:Disamb2.jpg यम | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- यम (बहुविकल्पी) |
यम संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ 'संयम' है। भारतीय दर्शन की योग पद्धति में साधक को समाधि या परम ध्यान की स्थिति की ओर ले जाने वाली आठ प्रक्रियाओं में से पहली। यम व्यक्ति के शुद्धिकरण के लिए एक नीतिपरक तैयारी है, इसमें दूसरों को चोट पहुँचाने से बचना, झूठ, चोरी, संभोग एवं कृपणता का त्याग शामिल हैं।
दूसरा चरण 'नियम'[1] अपने नैतिक उद्देश्य में यम के समान है, जिसमें अनुपालन के पाँच वर्ग हैं। स्वच्छता, अपनी भौतिक स्थिति से संतुष्टि, सन्न्यास, मोक्ष से संबद्ध तत्त्वमीमांसा का अध्ययन और भगवान के प्रति समर्पण। न तो यम और न ही नियम अलग से योग की कोई स्थिति हैं, ये लोग साधक को दुःसाध्य चरणों के लिए तैयार करते हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ संस्कृत शब्द, अर्थात अनुशासन