तै रहीम अब कौन है -रहीम: Difference between revisions

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[[काग़ज़]] के बने पुतले के जैसा यह शरीर है। नमी पाते ही यह गल-घुल जाता है। समझ में नहीं आता कि इसके अन्दर जो [[श्वसन|साँस]] ले रहा है, वह आखिर कौन है?
[[काग़ज़]] के बने पुतले के जैसा यह शरीर है। नमी पाते ही यह गल-घुल जाता है। समझ में नहीं आता कि इसके अन्दर जो [[श्वसन|साँस]] ले रहा है, वह आखिर कौन है?


{{लेख क्रम3| पिछला=कागज को सो पूतरा|मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=रहिमन ठठरि धूरि की -रहीम}}
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Latest revision as of 12:32, 9 February 2016

तै ‘रहीम’ अब कौन है, एतो खैंचत बाय।
जस कागद को पूतरा, नमी माहिं घुल जाय॥

अर्थ

काग़ज़ के बने पुतले के जैसा यह शरीर है। नमी पाते ही यह गल-घुल जाता है। समझ में नहीं आता कि इसके अन्दर जो साँस ले रहा है, वह आखिर कौन है?


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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