अब रहीम मुसकिल पड़ी -रहीम: Difference between revisions

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बड़ी मुश्किल में आ पड़े कि ये दोनों ही काम बड़े कठिन हैं। सच्चाई से तो दुनिया दारी हासिल नही होती है, लोग रीझते नही हैं, और झूठ से [[राम]] की प्राप्ति नहीं होती है। तो अब किसे छोडा जाए, और किससे मिला जाए ?
बड़ी मुश्किल में आ पड़े कि ये दोनों ही काम बड़े कठिन हैं। सच्चाई से तो दुनिया दारी हासिल नही होती है, लोग रीझते नहीं हैं, और झूठ से [[राम]] की प्राप्ति नहीं होती है। तो अब किसे छोड़ा जाए, और किससे मिला जाए?


{{लेख क्रम3| पिछला=अनुचित बचत न मानिए -रहीम|मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=आदर घटै नरेस ढिग -रहीम}}
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Latest revision as of 11:13, 12 February 2016

अब ‘रहीम’ मुसकिल पड़ी, गाढ़े दोऊ काम ।
सांचे से तो जग नहीं, झुठे मिलै न राम ॥

अर्थ

बड़ी मुश्किल में आ पड़े कि ये दोनों ही काम बड़े कठिन हैं। सच्चाई से तो दुनिया दारी हासिल नही होती है, लोग रीझते नहीं हैं, और झूठ से राम की प्राप्ति नहीं होती है। तो अब किसे छोड़ा जाए, और किससे मिला जाए?


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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