मिलखा सिंह: Difference between revisions
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'''मिलखा सिंह''' का जन्म [[लायलपुर]] मे [[8 अक्तूबर]] [[1935]] को हुआ था। मिलखा सिंह ने [[रोम]] के [[1960]] ग्रीष्म ओलंपिक और [[टोक्यो]] के [[1964]] ग्रीष्म ओलंपिक में [[भारत]] का प्रतिनिधित्व किया था। उनको "उड़न सिख" का उपनाम दिया गया था। | '''मिलखा सिंह''' का जन्म [[लायलपुर]] मे [[8 अक्तूबर]] [[1935]] को हुआ था। मिलखा सिंह ने [[रोम]] के [[1960]] ग्रीष्म ओलंपिक और [[टोक्यो]] के [[1964]] ग्रीष्म ओलंपिक में [[भारत]] का प्रतिनिधित्व किया था। उनको "उड़न सिख" का उपनाम दिया गया था। | ||
Revision as of 10:55, 22 August 2010
thumb|मिलखा सिंह
Milkha Singh
मिलखा सिंह का जन्म लायलपुर मे 8 अक्तूबर 1935 को हुआ था। मिलखा सिंह ने रोम के 1960 ग्रीष्म ओलंपिक और टोक्यो के 1964 ग्रीष्म ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। उनको "उड़न सिख" का उपनाम दिया गया था।
जीवन परिचय
- भारत के विभाजन के संघर्ष में मिलखा सिंह ने अपने माँ बाप खो दिए। पाकिस्तान में उन पर होने वाली ज़्यादती के कारण उनका लगभग पूरा परिवार खत्म हो गया। अंततः वे शरणार्थी बन के ट्रेन द्वारा पाकिस्तान से भारत आए।
- ऐसे भयानक बचपन के बाद उन्होंने अपने जीवन में कुछ कर गुज़रने की ठानी। एक होनहार धावक के तौर पर ख्याति प्राप्त करने के बाद उन्होंने 200 मी और 400 मी की दौड़े सफलतापूर्वक की, और इस प्रकार भारत के अब तक के सफलतम धावक बने। कुछ समय के लिए वे 400 मी के विश्व कीर्तिमान धारक भी रहे।
- कार्डिफ़, वेल्स, संयुक्त साम्राज्य में 1958 के कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण जेतने के बाद सिख होने की वजह से लंबे बालों के साथ पदक स्वीकारने पर पूरा खेल विश्व उन्हें जानने लगा।
- इसी समय पर उन्हें पाकिस्तान में दौड़ने का न्यौता मिला, लेकिन बचपन की घटनाओं की वजह से वे वहाँ जाने से हिचक रहे थे। लेकिन न जाने पर राजनैतिक उथल पुथल के डर से उन्हें जाने को कहा गया। उन्होंने दौड़ने का न्यौता स्वीकार लिया।
- दौड़ में मिलखा सिंह ने सरलता से अपने प्रतिद्वन्द्वियों को ध्वस्त कर दिया, और आसानी से जीत गए। अधिकांशतः मुस्लिम दर्शक इतने प्रभावित हुए कि पूरी तरह बुर्कानशीन औरतों ने भी इस महान धावक को गुज़रते देखने के लिए अपने नक़ाब उतार लिए थे, तभी से उन्हें फ़्लाइंग सिख की उपाधि मिली।
- मिलखा सिंह ने बाद में खेल से सन्यास ले लिया और भारत सरकार के साथ खेलकूद के प्रोत्साहन के लिए काम करना शुरू किया। अब वे चंडीगढ़ में रहते हैं।
पुरस्कार
- इन्होंने 1958 के एशियाई खेलों में 200 मी व 400 मी में स्वर्ण पदक जीते।
- इन्होंने 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता।
- इन्होंने 1958 के कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक जीता।
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