सदाबहार: Difference between revisions

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अब [[यूरोप]], भारत, [[चीन]] और [[अमेरिका]] के अनेक देशों में इस पौधे की खेती होने लगी है। पूरे भारत और संभवत: एशिया के पाँचों महाद्वीपों में पाया जाने वाला यह अत्यंत दृढ़ प्रकृति व क्षमता वाला पौधा है, जो खूब मजे से उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में खिलता व लोकप्रिय है।  
अब [[यूरोप]], भारत, [[चीन]] और [[अमेरिका]] के अनेक देशों में इस पौधे की खेती होने लगी है। पूरे भारत और संभवत: एशिया के पाँचों महाद्वीपों में पाया जाने वाला यह अत्यंत दृढ़ प्रकृति व क्षमता वाला पौधा है, जो खूब मजे से उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में खिलता व लोकप्रिय है।  
==सदाबहार का पौधा==
==सदाबहार का पौधा==
सदाबहार के अंडाकार पत्ते डालियों पर एक-दूसरे के विपरीत लगते हैं और झाड़ी की बढ़वार इतनी साफ़ सुथरी और सलीकेदार होती है कि झाड़ियों की काँट छाँट की कभी ज़रूरत नहीं पड़ती। सदाबहार छोटा झाड़ीनुमा पौधा है। इसके गोल पत्ते थोड़ी लम्बाई लिए अंडाकार व अत्यंत चमकदार व चिकने होते हैं। एक बार पौधा जमने पर उसके आसपास अन्य पौधे अपने आप उगते जाते हैं। पत्ते व फल की सतह थोड़ी मोटी होती है। इसके चिकने मोटे पत्तों के कारण ही पानी का वाष्पीकरण कम होता है और पानी की आवश्यकता बहुत कम होने से यह बड़े मजे में कहीं पर भी चलता खिलता व फैलता है।  <ref>{{cite web |url=http://upchar.blogspot.com/2010/06/blog-post_7301.html |title=औषधीय गुणों से भरपूर सदाबहार |accessmonthday=[[25 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format=एच टी एम एल |publisher=उपचार ब्लॉग्स्पॉट |language=हिन्दी }}</ref>
सदाबहार के अंडाकार पत्ते डालियों पर एक-दूसरे के विपरीत लगते हैं और झाड़ी की बढ़वार इतनी साफ़ सुथरी और सलीकेदार होती है कि झाड़ियों की काँट छाँट की कभी ज़रूरत नहीं पड़ती। सदाबहार छोटा झाड़ीनुमा पौधा है। इसके गोल पत्ते थोड़ी लम्बाई लिए अंडाकार व अत्यंत चमकदार व चिकने होते हैं। एक बार पौधा जमने पर उसके आसपास अन्य पौधे अपने आप उगते जाते हैं। पत्ते व फल की सतह थोड़ी मोटी होती है। इसके चिकने मोटे पत्तों के कारण ही पानी का वाष्पीकरण कम होता है और पानी की आवश्यकता बहुत कम होने से यह बड़े मजे में कहीं पर भी चलता खिलता व फैलता है।  <ref>{{cite web |url=http://upchar.blogspot.com/2010/06/blog-post_7301.html |title=औषधीय गुणों से भरपूर सदाबहार |accessmonthday=[[25 अगस्त]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format=एच टी एम एल |publisher=उपचार ब्लॉग्स्पॉट |language=हिन्दी |last=आर्य|first=प्रतिभा}}</ref>
==सदाबहार के फायदे==
==सदाबहार के फायदे==
*अनेक देशों में इसे खाँसी, गले की ख़राश और फेफड़ों के संक्रमण की चिकित्सा में इस्तेमाल किया जाता है।  
*अनेक देशों में इसे खाँसी, गले की ख़राश और फेफड़ों के संक्रमण की चिकित्सा में इस्तेमाल किया जाता है।  

Revision as of 13:40, 25 August 2010

thumb|250px|सदाबहार
Catharanthus
सदाबहार पुष्प को सदाफूली, नयनतारा नामों से भी जाना जाता है। सदाबहार की कुल आठ जातियाँ हैं। इनमें से सात मेडागास्कर में तथा आठवीं भारतीय उपमहाद्वीप में पायी जाती है। सदाबहार का वैज्ञानिक नाम केथारेन्थस है। भारत में पायी जाने वाली प्रजाति का वैज्ञानिक नाम केथारेन्थस रोजस है। यह फूल न केवल सुन्दर और आकर्षक है, बल्कि औषधीय गुणों से भी भरपूर माना गया है। इसे कई देशों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। सदाबहार बारहों महीने खिलने वाला फूल है। कठिन शीत के कुछ दिनों को छोड़कर यह पूरे वर्ष खूब खिलता है। सदाबहार को भारत की किसी भी उष्ण जगह की शोभा बढ़ाते हुए सालों साल बारह महीने देखे जा सकते हैं। फूल तोड़कर रख देने पर भी पूरा दिन ताजा रहता है। मंदिरों में पूजा पर चढ़ाए जाने में इसका उपयोग खूब होता है। यह फूल सुंदर तो है ही आसानी से हर मौसम में उगता है, हर रंग में खिलता है और इसके गुणों का भी कोई जवाब नहीं, शायद यही सब देखकर नेशनल गार्डेन ब्यूरो ने सन 2002 को इयर आफ़ विंका के लिए चुना। विंका या विंकारोज़ा सदाबहार का अंग्रेज़ी नाम है।[1]

रंग

पाँच पंखुड़ियों वाला सदाबहार पुष्प श्वेत, गुलाबी, फालसाई, जामुनी आदि रंगों में खिलता है।

सदाबहार का विवरण

अब यूरोप, भारत, चीन और अमेरिका के अनेक देशों में इस पौधे की खेती होने लगी है। पूरे भारत और संभवत: एशिया के पाँचों महाद्वीपों में पाया जाने वाला यह अत्यंत दृढ़ प्रकृति व क्षमता वाला पौधा है, जो खूब मजे से उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में खिलता व लोकप्रिय है।

सदाबहार का पौधा

सदाबहार के अंडाकार पत्ते डालियों पर एक-दूसरे के विपरीत लगते हैं और झाड़ी की बढ़वार इतनी साफ़ सुथरी और सलीकेदार होती है कि झाड़ियों की काँट छाँट की कभी ज़रूरत नहीं पड़ती। सदाबहार छोटा झाड़ीनुमा पौधा है। इसके गोल पत्ते थोड़ी लम्बाई लिए अंडाकार व अत्यंत चमकदार व चिकने होते हैं। एक बार पौधा जमने पर उसके आसपास अन्य पौधे अपने आप उगते जाते हैं। पत्ते व फल की सतह थोड़ी मोटी होती है। इसके चिकने मोटे पत्तों के कारण ही पानी का वाष्पीकरण कम होता है और पानी की आवश्यकता बहुत कम होने से यह बड़े मजे में कहीं पर भी चलता खिलता व फैलता है। [2]

सदाबहार के फायदे

  • अनेक देशों में इसे खाँसी, गले की ख़राश और फेफड़ों के संक्रमण की चिकित्सा में इस्तेमाल किया जाता है।
  • सबसे रोचक बात यह है कि इसे मधुमेह के उपचार में भी उपयोगी पाया गया है।
  • वैसे स्कर्वी, अतिसार, गले में दर्द, टांसिल्स में सूजन, रक्तस्नव आदि रोगों में इसके प्रयोग के विषय में लिखा है।
  • भारत में प्राकृतिक चिकित्सक मधुमेह रोगियों को इसके श्वेत फूल का प्रयोग सुबह खाली पेट करने की सलाह देते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. प्रकृति और पर्यावरण (हिन्दी) (एच टी एम) अभिव्यक्ति। अभिगमन तिथि: 25 अगस्त, 2010
  2. आर्य, प्रतिभा। औषधीय गुणों से भरपूर सदाबहार (हिन्दी) (एच टी एम एल) उपचार ब्लॉग्स्पॉट। अभिगमन तिथि: 25 अगस्त, 2010