रेग्युलेटिंग एक्ट: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
रेग्युलेटिंग एक्ट का उद्देश्य [[भारत]] में [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] की गतिविधियों को ब्रिटिश सरकार की निगरानी में लाना था। इसके अतिरिक्त कम्पनी की संचालन समिति में आमूल-चूल परिवर्तन करना तथा कम्पनी के राजनीतिक अस्तित्व को स्वीकार कर उसके व्यापारिक ढाँचे को राजनीतिक कार्यों के संचालन योग्य बनाना भी इसका उद्देश्य था। इस अधिनियम को 1773 ई0 में ब्रिटिश संसद ने पास किया तथा 1774 ई0 में इसे लागू किया गया। एक्ट के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं– | रेग्युलेटिंग एक्ट का उद्देश्य [[भारत]] में [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] की गतिविधियों को ब्रिटिश सरकार की निगरानी में लाना था। इसके अतिरिक्त कम्पनी की संचालन समिति में आमूल-चूल परिवर्तन करना तथा कम्पनी के राजनीतिक अस्तित्व को स्वीकार कर उसके व्यापारिक ढाँचे को राजनीतिक कार्यों के संचालन योग्य बनाना भी इसका उद्देश्य था। इस अधिनियम को 1773 ई0 में ब्रिटिश संसद ने पास किया तथा 1774 ई0 में इसे लागू किया गया। एक्ट के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं– | ||
#कोर्ट आफ़ डायरेक्टर का कार्यकाल 1 वर्ष के स्थान पर 4 वर्ष का हो गया तथा डायरेक्टरों की संख्या 24 निर्धारित की गयी, जिसमें से 25% अर्थात् 6 सदस्यों द्वारा प्रति वर्ष अवकाश ग्रहण करना पड़ता था। 1000 पौण्ड के हिस्सेदारों को वोट का अधिकार दिया गया। 3.6 एवं 10 हज़ार पौण्ड के हिस्सेदारों को क्रमशः 2, 3 एवं 4 मत देने के अधिकार मिले। | #कोर्ट आफ़ डायरेक्टर का कार्यकाल 1 वर्ष के स्थान पर 4 वर्ष का हो गया तथा डायरेक्टरों की संख्या 24 निर्धारित की गयी, जिसमें से 25% अर्थात् 6 सदस्यों द्वारा प्रति वर्ष अवकाश ग्रहण करना पड़ता था। 1000 पौण्ड के हिस्सेदारों को वोट का अधिकार दिया गया। 3.6 एवं 10 हज़ार पौण्ड के हिस्सेदारों को क्रमशः 2, 3 एवं 4 मत देने के अधिकार मिले। |
Revision as of 07:10, 28 August 2010
रेग्युलेटिंग एक्ट का उद्देश्य भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी की गतिविधियों को ब्रिटिश सरकार की निगरानी में लाना था। इसके अतिरिक्त कम्पनी की संचालन समिति में आमूल-चूल परिवर्तन करना तथा कम्पनी के राजनीतिक अस्तित्व को स्वीकार कर उसके व्यापारिक ढाँचे को राजनीतिक कार्यों के संचालन योग्य बनाना भी इसका उद्देश्य था। इस अधिनियम को 1773 ई0 में ब्रिटिश संसद ने पास किया तथा 1774 ई0 में इसे लागू किया गया। एक्ट के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं–
- कोर्ट आफ़ डायरेक्टर का कार्यकाल 1 वर्ष के स्थान पर 4 वर्ष का हो गया तथा डायरेक्टरों की संख्या 24 निर्धारित की गयी, जिसमें से 25% अर्थात् 6 सदस्यों द्वारा प्रति वर्ष अवकाश ग्रहण करना पड़ता था। 1000 पौण्ड के हिस्सेदारों को वोट का अधिकार दिया गया। 3.6 एवं 10 हज़ार पौण्ड के हिस्सेदारों को क्रमशः 2, 3 एवं 4 मत देने के अधिकार मिले।
- कोर्ट आफ़ प्रेसीडेंसी (बंगाल) के प्रशासक को अब अंग्रेज़ी क्षेत्रों का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा तथा उसको सलाह देने हेतु 4 सदस्यों की एक कार्यकारिणी बनाई गयी, जिसका कार्यकाल 5 वर्ष का होता था। मद्रास तथा बम्बई के गवर्नर उसके अधीन हो गये। अधिनयम में प्रथम गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स तथा पार्षद फिलिप फ़्राँसिस, क्लेवारंग, मानसन तथा बारवेल का नाम लिख दिया गया था। ये केवल कोर्ट आफ़ डायेरेक्टर्स की सिफ़ारिश पर ब्रिटिश सम्राट द्वारा ही 5 वर्ष के पूर्व हटाये जा सकते थे।
- कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गयी, जिसमें एक मुख्य न्यायधीश और तीन अन्य न्यायाधीश नियुक्त किये गये, जो अंग्रेज़ी क़ानून के अनुसार प्रजा के मुक़दमों का निर्णय करते थे। इसका कार्य क्षेत्र बंगाल, बिहार, उड़ीसा तक था। इस सर्वोच्च न्यायालय को साम्य न्याय तथा सामान्य विधि के न्यायालय, नौसेना विधि के न्यायालय तथा धार्मिक न्यायालय के रूप में काम करना था। उच्चतम न्यायालय 1774 ई0 में गठित किया गया और सर एलीजा इम्पे मुख्य न्यायाधीश तथा चेम्बर्ज, लिमैस्टर और हाइड अन्य न्यायाधीश नियुक्त हुए।
- बिना लाइसेंस प्राप्त किए कम्पनी के कर्मचारी को निजी व्यापार करने से प्रतिबंधित कर दिया गया।
- गवर्नर जनरल व उसकी कौंसिल को नियम बनाने तथा अध्यादेश पारित करने का अधिकार दिया गया, पर यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा पंजीकृत होना ज़रूरी था।
- कम्पनी के प्रत्येक सैनिक अथवा असैनिक पदाधिकारी को किसी भी व्यक्ति के उपहार, दान या पारितोषिक लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया।
- कम्पनी के अधिकारियों व कर्मचारियों के वेतन को बढ़ा दिया गया।
इस अधिनियम के लागू होने के बाद गवर्नर जनरल को अपनी कौंसिल के सदस्यों को नियंत्रित करने की शक्ति नहीं थी। उसे अपनी कौंसिल के सदस्यों के बहुमत के विरुद्ध कार्य करने का अधिकार नहीं था, इससे उसके समक्ष अनेक व्यावहारिक कठिनाइयाँ आईं। रेग्यूलेटिंग एक्ट के पश्चात् 1781 ई0 के इंडिया एक्ट (सेशोधनात्मक अधिनियम) द्वारा एक अनुपूरक क़ानून बनाया गया, जिससे रेग्यूलेटिंग एक्ट की कुछ ख़ामियों को दूर करने का प्रयत्न किया गया। इस एक्ट द्वारा सुप्रीम कोर्ट का अधिकार क्षेत्र अधिक स्पष्ट किया गया तथा उसे कलकत्ता के सभी निवासियों (अंग्रेज़ तथा भारतीय) पर अधिकार दिया गया और यह भी आदेश दिया गया कि प्रतिवादी का निजी क़ानून लागू हो।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ