अनिल धस्माना: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''अनिल धस्माना''' (अंग्रेज़ी: ''Anil Dhasmana'') भारतीय खुफिया...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
Line 1: Line 1:
'''अनिल धस्माना''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Anil Dhasmana'') भारतीय खुफिया एजेंसी '[[रिसर्च एण्ड एनालिसिस विंग]]' (रॉ) की कमान सम्भालने वाले नवनियुक्त ऑफ़ीसर हैं। वर्ष [[1981]] में उनका आईपीएस में चयन हुआ था। उसके बाद वे [[मध्य प्रदेश]] में पुलिस में कई पदों पर रहे और फिर रॉ में शामिल हुए।
'''अनिल धस्माना''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Anil Dhasmana'') भारतीय खुफिया एजेंसी '[[रिसर्च एण्ड एनालिसिस विंग]]' (रॉ) की कमान सम्भालने वाले नवनियुक्त ऑफ़ीसर हैं। वर्ष [[1981]] में उनका आईपीएस में चयन हुआ था। उसके बाद वे [[मध्य प्रदेश]] में पुलिस में कई पदों पर रहे और फिर रॉ में शामिल हुए।
==परिचय==
==परिचय==
तेज तर्रार अफ़सर अनिल धस्माना [[उत्तराखंड]] के एक साधारण [[परिवार]] से ताल्लुक रखते हैं। उनके [[पिता]] महेशानंद धस्माना सिविल एविएशन विभाग में काम करते थे। चार बेटे और तीन बेटियों के भरे-पूरे [[परिवार]] के साथ बाद में वह [[दिल्ली]] में बस गए। अनिल का बचपन शहर की चकाचौंध से दूर पहाड़ के एक दूरदराज [[गांव]] में बीता। छोटे से गांव से लेकर [[रॉ]] प्रमुख तक का सफर तय करने वाले आईपीएस अनिल धस्माना की उपलब्धियों पर उनके गांव वाले भी गर्व का अनुभव करते हैं। [[ऋषिकेश]] से 70 किलोमीटर दूर [[भागीरथी नदी|भागीरथी]] और [[अलकनंदा नदी|अलकनंदा]] के संगम [[देवप्रयाग]] से अनिल धस्माना के गांव का रास्ता शुरू होता है। देवप्रायग से उनका तोली गांव 50 किलोमीटर दूर है। अनिल धस्माना की चाची और उनका परिवार आज भी तोली गांव में ही रहता है।<ref>{{cite web |url=http://aajtak.intoday.in/story/know-about-new-raw-chief-anil-dhasmana-1-902956.html |title= खुफिया एजेंसी रॉ के नये चीफ अनिल धस्माना|accessmonthday=14 जनवरी|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=aajtak.intoday.in |language= हिंदी}}</ref>
तेज तर्रार अफ़सर अनिल धस्माना [[उत्तराखंड]] के एक साधारण [[परिवार]] से ताल्लुक रखते हैं। उनके [[पिता]] महेशानंद धस्माना सिविल एविएशन विभाग में काम करते थे। चार बेटे और तीन बेटियों के भरे-पूरे [[परिवार]] के साथ बाद में वह [[दिल्ली]] में बस गए। अनिल का बचपन शहर की चकाचौंध से दूर पहाड़ के एक दूरदराज [[गांव]] में बीता। छोटे से गांव से लेकर [[रॉ]] प्रमुख तक का सफर तय करने वाले आईपीएस अनिल धस्माना की उपलब्धियों पर उनके गांव वाले भी गर्व का अनुभव करते हैं। [[ऋषिकेश]] से 70 किलोमीटर दूर [[भागीरथी नदी|भागीरथी]] और [[अलकनंदा नदी|अलकनंदा]] के संगम [[देवप्रयाग]] से अनिल धस्माना के गांव का रास्ता शुरू होता है। देवप्रायग से उनका तोली गांव 50 किलोमीटर दूर है। अनिल धस्माना की चाची और उनका परिवार आज भी तोली गांव में ही रहता है।<ref>{{cite web |url=http://aajtak।intoday।in/story/know-about-new-raw-chief-anil-dhasmana-1-902956।html |title= खुफिया एजेंसी रॉ के नये चीफ अनिल धस्माना|accessmonthday=14 जनवरी|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=aajtak।intoday।in |language= हिंदी}}</ref>


अनिल धस्माना की चाची भानुमति बताती हैं कि- "बचपन में अनिल उनके साथ जंगल में घास और पानी लेने जाते थे। साथ ही घर के सारे कामों में अपनी दादी का हाथ बंटाया करते थे। अनिल धस्माना का बचपन गांव में काफी कठिनाइयों से गुजरा। चार भाई और तीन बहनों में अनिल सबसे बड़े थे। शुरुआती जिंदगी में काफी तंगी और मुश्किलें झेलने वाले अनिल सिर्फ मेहनत के बल पर ही आगे बढ़ते रहे। अपने पुश्तैनी मकान के जिस छोटे से कमरे में रहकर उन्होंने पढ़ाई की, आज उसमें उनके चाचा के बेटे और उनके बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। लेकिन अनिल की यादें आज भी घर में रची बसी हैं।"
अनिल धस्माना की चाची भानुमति बताती हैं कि- "बचपन में अनिल उनके साथ जंगल में घास और पानी लेने जाते थे। साथ ही घर के सारे कामों में अपनी दादी का हाथ बंटाया करते थे। अनिल धस्माना का बचपन गांव में काफी कठिनाइयों से गुजरा। चार भाई और तीन बहनों में अनिल सबसे बड़े थे। शुरुआती जिंदगी में काफी तंगी और मुश्किलें झेलने वाले अनिल सिर्फ मेहनत के बल पर ही आगे बढ़ते रहे। अपने पुश्तैनी मकान के जिस छोटे से कमरे में रहकर उन्होंने पढ़ाई की, आज उसमें उनके चाचा के बेटे और उनके बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। लेकिन अनिल की यादें आज भी घर में रची बसी हैं।"
Line 8: Line 8:
==आईपीएस में चयन==
==आईपीएस में चयन==
घर में एकाग्रता का माहौल न मिलने पर अनिल अक्सर [[लोदी बग़ीचा, दिल्ली|लोदी पार्क]] में लैंप पोस्ट के नीचे जाकर बैठ जाते थे। वहीं बैठकर उन्होंने अपने कंप्टीशन की तैयारियां कीं। उसी का नतीजा था कि [[1981]] में उनका आईपीएस में चयन हुआ। उसके बाद वे [[मध्य प्रदेश]] पुलिस में कई पदों पर रहे और फिर [[रॉ]] में शामिल हो गए।
घर में एकाग्रता का माहौल न मिलने पर अनिल अक्सर [[लोदी बग़ीचा, दिल्ली|लोदी पार्क]] में लैंप पोस्ट के नीचे जाकर बैठ जाते थे। वहीं बैठकर उन्होंने अपने कंप्टीशन की तैयारियां कीं। उसी का नतीजा था कि [[1981]] में उनका आईपीएस में चयन हुआ। उसके बाद वे [[मध्य प्रदेश]] पुलिस में कई पदों पर रहे और फिर [[रॉ]] में शामिल हो गए।
==ऑपरेशन बंबई बाज़ार==
अनिल धस्माना यूं तो मूल रूप से [[उत्तराखंड]] के रहने वाले हैं, लेकिन उन्हें कॅरियर में पहली पहचान [[इंदौर]] के एसपी के रूप में मिली, जो संयोग से एसपी के पद पर उनकी पहली पोस्टिंग भी थी। बहुत कम लोग जानते हैं कि एक दौर में 'मिनी मुंबई' यानी [[मध्य प्रदेश]] की आर्थिक राजधानी इंदौर में माफिया राज था। यहां के एक इलाके में फ़िल्मों की तरह माफिया राज चलता था, जिसके अपने उसूल और कायदे थे। यह इलाका शहर के बीच में होने के बावजूद आम आदमी ही नहीं, बल्कि पुलिस भी यहाँ कदम रखने से डरती थी। ऐसे दौर में इंदौर एसपी की कमान संभालने वाले अनिल धस्माना ने जिस तरह पुलिसिंग की, उसने इस शहर को हमेशा के लिए बदल दिया।<ref name="a">{{cite web |url=http://hindi.firstpost.com/india/new-raw-chief-anil-dhasmana-alike-nsa-ajit-doval-5888.html |title= नये रॉ चीफ अनिल धस्माना का इतिहास|accessmonthday=14 जनवरी|accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=/hindi.firstpost.com |language= हिंदी}}</ref>
'ऑपरेशन बंबई बाजार' इंदौर से आतंक और माफिया राज के खात्मे के लिए चलाया गया पुलिस अभियान था। जिस्मफ़रोशी, सट्टे और जुए के अड्डे के लिए बदनाम बंबई बाजार, इंदौर के दामन पर काला दाग था। अनिल धस्माना के नेतृत्व में करीब एक पखवाड़े तक चले अभियान के बाद बंबई बाजार से माफिया राज का अंत हुआ था। इस दौरान हिंसा भी हुई, जिसके चलते शहर कई दिन कर्फ्यू के साए में भी रहा, लेकिन धस्माना की धमक के आगे हर चुनौती छोटी साबित हुई। 'ऑपरेशन बंबई बाजार' के गवाह वरिष्ठ पत्रकार सतीश जोशी भी थे। उस दौर को याद कर जोशी बताते हैं कि कैसे उनकी खबर "इस तरह बिकता है शहर में नशा और होती है जिस्मफ़रोशी' से ऑपरेशन बम्बई बाजार की नींव पड़ी थी। खबर लिखने का असर भी हुआ, लेकिन उसका अनुभव उस दौर के युवा रिपोर्टर सतीश जोशी के लिए ठीक नहीं था। खबर से बौखलाए लोगों ने जोशी पर हमला करने की कोशिश की, तो उन्होंने एसपी अनिल धस्माना और तत्कालीन कलेक्टर वीवीएस अय्यर के साथ ही सूबे के मुखिया सुंदरलाल पटवा की जानकारी में भी पूरा मामला लाया, जिसके बाद पुलिस ने कार्रवाई शुरू की।
पुलिस सेवा से रिटायर हुए देशराज सिंह बताते हैं कि- "अनिल धस्माना बेहद दबंग अफसर हैं। उन्हें जब अनैतिक गतिविधियों की जानकारी मिली तो कार्रवाई के लिए एसआई गजेंद्र सिंह सेंगर और सिपाही श्याम वीर को भेजा गया था।" उस दौर में बंबई बाजार में माफिया राज चलता था, ऐसे में पुलिस का वहां पहुंचना ही बड़ी बात थी। बंबई बाजार में समानांतर सत्ता चला रहे लोगों को पुलिस का आना रास नहीं आया। उन्होंने न केवल दोनों पुलिसकर्मियों पर हमला कर दिया बल्कि पुलिस चौकी में भी गदर मचाया। एसपी धस्माना जैसे बेहद दबंग और ईमानदार अफसर ने फिर जो किया, उसने हमेशा के लिए [[इंदौर]] का [[इतिहास]] बदल दिया। बताते हैं कि जिस बंबई बाजार में पुलिस कदम रखने से डरती थी, वहां 20 मिनट के भीतर हर घर पर पुलिस का सख्त पहरा था। प्रशासन, पुलिस और नगर निगम में संयुक्त रूप से अवैध निर्माण, जुए और सट्टे के अड्डे के अलावा वेश्यालयों को ध्वस्त कर दिया गया।<ref name="a"/>
कार्रवाई के दौरान एसपी अनिल धस्माना अपने अमले के साथ बेग परिवार के घर के बाहर पहुंचे थे। पुलिस की कार्रवाई से उनका पूरा साम्राज्य ध्वस्त हो रहा था। इस वजह से सबसे ज्यादा नाराजगी एसपी को लेकर थी। बताते हैं कि ऑपरेशन बंबई बाजार के दौरान अनिल धस्माना की जान लेने की कोशिश की गई। बेग परिवार के घर में सर्चिंग अभियान के वक्त छत से मसाला कूटने की सिल्ली उन्हें निशाना बनाकर फेंकी गयी थी। एसपी अनिल धस्माना का इस ओर ध्यान नहीं था, लेकिन सतर्क अंगरक्षक छेदीलाल दुबे ने धक्का देकर उनकी जान बचाई थी, दुर्भाग्य से सिल्ली सिर पर गिरने से छेदीलाल शहीद हो गए थे। अनिल धस्माना के लिए ये बेहद मुश्किल घड़ी थी, लेकिन उन्होंने भावनाओं को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। वे बोले कुछ नहीं, लेकिन अगले एक पखवाड़े में उन्होंने माफिया का नेटवर्क पूरी तरह से खत्म कर दिया। इंदौर में आज भी उनके कार्यकाल की मिसाल दी जाती है। इंदौर में एक दौर ऐसा भी था, जब बंबई बाजार जाना बड़ी बुरी बात मानी जाती थी। ऐसे में ऑपरेशन बंबई बाजार से इस इलाके की तस्वीर बदल गई, तो कई सप्ताह तक मेले जैसा माहौल रहा। इंदौर एसपी रहने के कुछ समय बाद अनिल धस्माना केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर चले गए, जिसके बाद उन्होंने मुड़कर पीछे नहीं देखा।





Revision as of 10:57, 14 January 2017

अनिल धस्माना (अंग्रेज़ी: Anil Dhasmana) भारतीय खुफिया एजेंसी 'रिसर्च एण्ड एनालिसिस विंग' (रॉ) की कमान सम्भालने वाले नवनियुक्त ऑफ़ीसर हैं। वर्ष 1981 में उनका आईपीएस में चयन हुआ था। उसके बाद वे मध्य प्रदेश में पुलिस में कई पदों पर रहे और फिर रॉ में शामिल हुए।

परिचय

तेज तर्रार अफ़सर अनिल धस्माना उत्तराखंड के एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता महेशानंद धस्माना सिविल एविएशन विभाग में काम करते थे। चार बेटे और तीन बेटियों के भरे-पूरे परिवार के साथ बाद में वह दिल्ली में बस गए। अनिल का बचपन शहर की चकाचौंध से दूर पहाड़ के एक दूरदराज गांव में बीता। छोटे से गांव से लेकर रॉ प्रमुख तक का सफर तय करने वाले आईपीएस अनिल धस्माना की उपलब्धियों पर उनके गांव वाले भी गर्व का अनुभव करते हैं। ऋषिकेश से 70 किलोमीटर दूर भागीरथी और अलकनंदा के संगम देवप्रयाग से अनिल धस्माना के गांव का रास्ता शुरू होता है। देवप्रायग से उनका तोली गांव 50 किलोमीटर दूर है। अनिल धस्माना की चाची और उनका परिवार आज भी तोली गांव में ही रहता है।[1]

अनिल धस्माना की चाची भानुमति बताती हैं कि- "बचपन में अनिल उनके साथ जंगल में घास और पानी लेने जाते थे। साथ ही घर के सारे कामों में अपनी दादी का हाथ बंटाया करते थे। अनिल धस्माना का बचपन गांव में काफी कठिनाइयों से गुजरा। चार भाई और तीन बहनों में अनिल सबसे बड़े थे। शुरुआती जिंदगी में काफी तंगी और मुश्किलें झेलने वाले अनिल सिर्फ मेहनत के बल पर ही आगे बढ़ते रहे। अपने पुश्तैनी मकान के जिस छोटे से कमरे में रहकर उन्होंने पढ़ाई की, आज उसमें उनके चाचा के बेटे और उनके बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। लेकिन अनिल की यादें आज भी घर में रची बसी हैं।"

शिक्षा

आठवीं तक की पढ़ाई गांव के पास ही दुधारखाल से पास करने के बाद अनिल धस्माना की बाकी की शिक्षा-दीक्षा दिल्ली में हुई और उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अनिल के शिक्षक रहे शशिधर बताते हैं कि- "अनिल बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। जब वे तीसरी कक्षा में पढ़ते थे, तब ज़िला शिक्षा अधिकारी के सामने अनिल ने शानदार भाषण दिया था, जिसके लिए उन्हें 300 रुपये का वजीफा मिला था।" अपने दादी के साथ तोली गांव में रहकर कक्षा 8 की पढ़ाई करने वाले अनिल बाद में दिल्ली अपने परिवार के पास चले गये थे।

आईपीएस में चयन

घर में एकाग्रता का माहौल न मिलने पर अनिल अक्सर लोदी पार्क में लैंप पोस्ट के नीचे जाकर बैठ जाते थे। वहीं बैठकर उन्होंने अपने कंप्टीशन की तैयारियां कीं। उसी का नतीजा था कि 1981 में उनका आईपीएस में चयन हुआ। उसके बाद वे मध्य प्रदेश पुलिस में कई पदों पर रहे और फिर रॉ में शामिल हो गए।

ऑपरेशन बंबई बाज़ार

अनिल धस्माना यूं तो मूल रूप से उत्तराखंड के रहने वाले हैं, लेकिन उन्हें कॅरियर में पहली पहचान इंदौर के एसपी के रूप में मिली, जो संयोग से एसपी के पद पर उनकी पहली पोस्टिंग भी थी। बहुत कम लोग जानते हैं कि एक दौर में 'मिनी मुंबई' यानी मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में माफिया राज था। यहां के एक इलाके में फ़िल्मों की तरह माफिया राज चलता था, जिसके अपने उसूल और कायदे थे। यह इलाका शहर के बीच में होने के बावजूद आम आदमी ही नहीं, बल्कि पुलिस भी यहाँ कदम रखने से डरती थी। ऐसे दौर में इंदौर एसपी की कमान संभालने वाले अनिल धस्माना ने जिस तरह पुलिसिंग की, उसने इस शहर को हमेशा के लिए बदल दिया।[2]

'ऑपरेशन बंबई बाजार' इंदौर से आतंक और माफिया राज के खात्मे के लिए चलाया गया पुलिस अभियान था। जिस्मफ़रोशी, सट्टे और जुए के अड्डे के लिए बदनाम बंबई बाजार, इंदौर के दामन पर काला दाग था। अनिल धस्माना के नेतृत्व में करीब एक पखवाड़े तक चले अभियान के बाद बंबई बाजार से माफिया राज का अंत हुआ था। इस दौरान हिंसा भी हुई, जिसके चलते शहर कई दिन कर्फ्यू के साए में भी रहा, लेकिन धस्माना की धमक के आगे हर चुनौती छोटी साबित हुई। 'ऑपरेशन बंबई बाजार' के गवाह वरिष्ठ पत्रकार सतीश जोशी भी थे। उस दौर को याद कर जोशी बताते हैं कि कैसे उनकी खबर "इस तरह बिकता है शहर में नशा और होती है जिस्मफ़रोशी' से ऑपरेशन बम्बई बाजार की नींव पड़ी थी। खबर लिखने का असर भी हुआ, लेकिन उसका अनुभव उस दौर के युवा रिपोर्टर सतीश जोशी के लिए ठीक नहीं था। खबर से बौखलाए लोगों ने जोशी पर हमला करने की कोशिश की, तो उन्होंने एसपी अनिल धस्माना और तत्कालीन कलेक्टर वीवीएस अय्यर के साथ ही सूबे के मुखिया सुंदरलाल पटवा की जानकारी में भी पूरा मामला लाया, जिसके बाद पुलिस ने कार्रवाई शुरू की।

पुलिस सेवा से रिटायर हुए देशराज सिंह बताते हैं कि- "अनिल धस्माना बेहद दबंग अफसर हैं। उन्हें जब अनैतिक गतिविधियों की जानकारी मिली तो कार्रवाई के लिए एसआई गजेंद्र सिंह सेंगर और सिपाही श्याम वीर को भेजा गया था।" उस दौर में बंबई बाजार में माफिया राज चलता था, ऐसे में पुलिस का वहां पहुंचना ही बड़ी बात थी। बंबई बाजार में समानांतर सत्ता चला रहे लोगों को पुलिस का आना रास नहीं आया। उन्होंने न केवल दोनों पुलिसकर्मियों पर हमला कर दिया बल्कि पुलिस चौकी में भी गदर मचाया। एसपी धस्माना जैसे बेहद दबंग और ईमानदार अफसर ने फिर जो किया, उसने हमेशा के लिए इंदौर का इतिहास बदल दिया। बताते हैं कि जिस बंबई बाजार में पुलिस कदम रखने से डरती थी, वहां 20 मिनट के भीतर हर घर पर पुलिस का सख्त पहरा था। प्रशासन, पुलिस और नगर निगम में संयुक्त रूप से अवैध निर्माण, जुए और सट्टे के अड्डे के अलावा वेश्यालयों को ध्वस्त कर दिया गया।[2]

कार्रवाई के दौरान एसपी अनिल धस्माना अपने अमले के साथ बेग परिवार के घर के बाहर पहुंचे थे। पुलिस की कार्रवाई से उनका पूरा साम्राज्य ध्वस्त हो रहा था। इस वजह से सबसे ज्यादा नाराजगी एसपी को लेकर थी। बताते हैं कि ऑपरेशन बंबई बाजार के दौरान अनिल धस्माना की जान लेने की कोशिश की गई। बेग परिवार के घर में सर्चिंग अभियान के वक्त छत से मसाला कूटने की सिल्ली उन्हें निशाना बनाकर फेंकी गयी थी। एसपी अनिल धस्माना का इस ओर ध्यान नहीं था, लेकिन सतर्क अंगरक्षक छेदीलाल दुबे ने धक्का देकर उनकी जान बचाई थी, दुर्भाग्य से सिल्ली सिर पर गिरने से छेदीलाल शहीद हो गए थे। अनिल धस्माना के लिए ये बेहद मुश्किल घड़ी थी, लेकिन उन्होंने भावनाओं को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। वे बोले कुछ नहीं, लेकिन अगले एक पखवाड़े में उन्होंने माफिया का नेटवर्क पूरी तरह से खत्म कर दिया। इंदौर में आज भी उनके कार्यकाल की मिसाल दी जाती है। इंदौर में एक दौर ऐसा भी था, जब बंबई बाजार जाना बड़ी बुरी बात मानी जाती थी। ऐसे में ऑपरेशन बंबई बाजार से इस इलाके की तस्वीर बदल गई, तो कई सप्ताह तक मेले जैसा माहौल रहा। इंदौर एसपी रहने के कुछ समय बाद अनिल धस्माना केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर चले गए, जिसके बाद उन्होंने मुड़कर पीछे नहीं देखा।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. खुफिया एजेंसी रॉ के नये चीफ अनिल धस्माना (हिंदी) aajtak।intoday।in। अभिगमन तिथि: 14 जनवरी, 2017।
  2. 2.0 2.1 नये रॉ चीफ अनिल धस्माना का इतिहास (हिंदी) /hindi.firstpost.com। अभिगमन तिथि: 14 जनवरी, 2016।

संबंधित लेख