रहिमन निज मन की व्यथा -रहीम: Difference between revisions
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रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥
- अर्थ
अपने दु:ख को अपने मन में ही रखनी चाहिए। दूसरों को सुनाने से लोग सिर्फ उसका मजाक उड़ाते हैं परन्तु दु:ख को कोई बांटता नहीं है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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