रहिमन कहत सु पेट सों -रहीम: Difference between revisions

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पेट से बार-बार कहता हूँ कि तू पीठ क्यों नहीं हुआ ? अगर तू खाली रहता है, भूखा रहता है तो अनीति के काम करता है। और, अगर तू भर गया, तो तेरे कारण नजर बिगड़ जाती है, बदमाशी करने को मन हो आता है। इसलिए तुझसे तो पीठ कहीं अच्छी है।  
पेट से बार-बार कहता हूँ कि तू पीठ क्यों नहीं हुआ ? अगर तू ख़ाली रहता है, भूखा रहता है तो अनीति के काम करता है। और, अगर तू भर गया, तो तेरे कारण नजर बिगड़ जाती है, बदमाशी करने को मन हो आता है। इसलिए तुझसे तो पीठ कहीं अच्छी है।  


{{लेख क्रम3| पिछला=रहिमन ओछे नरन सों -रहीम|मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=रहिमन कुटिल कुठार ज्यों -रहीम}}
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Latest revision as of 11:17, 5 July 2017

‘रहिमन’ कहत सु पेट सों, क्यों न भयो तू पीठ ।
रीते अनरीते करै, भरे बिगारत दीठ ॥

अर्थ

पेट से बार-बार कहता हूँ कि तू पीठ क्यों नहीं हुआ ? अगर तू ख़ाली रहता है, भूखा रहता है तो अनीति के काम करता है। और, अगर तू भर गया, तो तेरे कारण नजर बिगड़ जाती है, बदमाशी करने को मन हो आता है। इसलिए तुझसे तो पीठ कहीं अच्छी है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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