दाँत पीसना: Difference between revisions

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#जो ज़माने से पिस रहे थे वे दाँत पीसकर समाने आए। - राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह।  
#जो ज़माने से पिस रहे थे वे दाँत पीसकर समाने आए। - राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह।  
#आवेश में तो न जाने क्या सोच लेता है आदमी। मगर साधनहीन होने के बाद खाली दाँत पीसकर रह जाता है। -अजित पुष्कल।
#आवेश में तो न जाने क्या सोच लेता है आदमी। मगर साधनहीन होने के बाद ख़ाली दाँत पीसकर रह जाता है। -अजित पुष्कल।





Revision as of 11:18, 5 July 2017

दाँत पीसना एक प्रचलित लोकोक्ति अथवा हिन्दी मुहावरा है।

अर्थ- क्रोध से अभिभूत होने पर इस प्रकार दाँतो से दाँत दबाना कि मानो खा या चबा ही जाएँगे।

प्रयोग-

  1. जो ज़माने से पिस रहे थे वे दाँत पीसकर समाने आए। - राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह।
  2. आवेश में तो न जाने क्या सोच लेता है आदमी। मगर साधनहीन होने के बाद ख़ाली दाँत पीसकर रह जाता है। -अजित पुष्कल।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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