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भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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{"आधुनिक राज्यों में स्थिति 'समूह बनाम राज्यों' की होती जा रही है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-49
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+बार्कर
-ब्राइस
-दुवर्जर
-थामस हेयर
||बार्कर का कहना है कि आधुनिक [[राज्य|राज्यों]] में स्थिति 'समूह बनाम राज्यों' की होती जा रही है, क्योंकि व्यक्तियों ने आपसी हितों के लिए राज्य में छोटे-छोटे समूह बना लिए हैं। इसके पहले स्पेंसर जैसे विद्वानों ने 'व्यक्ति बनाम राज्य' जैसे सिद्धांत को प्रमुखता दी थी।
{"असंलग्नता को अनैतिक" कहा गया था किसके द्वारा? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-73,प्रश्न-57
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-जॉर्ज केनन द्वारा
-हेनरी टूमैन द्वारा
+जॉन फॉस्टर डलेस द्वारा
-उपर्युक्त में से किसी के भी द्वारा नहीं
||पूर्व अमेरिकी विदेश सचिव जॉन फोस्टर डलेस द्वारा 'असंलग्नता को अनैतिक' कहा गया था।
{इनमें से कौन-सा ल्यूशियन पाई की राजनीति विकास की अवधारणा का आधार स्तंभ नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-87,प्रश्न- 24
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+स्वतंत्रता
-समानता
-क्षमता
-विभिन्नीकरण
||ल्यूशियन पाई ने अपनी पुस्तक "एसपेक्ट्स ऑफ़ पॉलिटिकल डेवलेपमेंट"  में राजनीतिक विकास का अर्थ राजनीतिक व्यवस्था में समानता, क्षमता और संरचनात्मक विभेदीकरण (Structural Differentiation) से संबंधित बताया है। 'स्वतंत्रता ल्यूशियन पाई की राजनीतिक विकास की अवधारणा का आधार स्तंभ नहीं है।राजनीतिक विकास (Political Development) की अवधारणा राजनीति शास्त्र में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आई है। राजनीतिक विकास का अध्ययन करने वाले अन्य राजनीतिक विचार डेविड ईस्टन, डेविड एप्टर, कोलमैन वीनर, रिग्स, ला पालोम्बरा आदि हैं। माइनर वीनर ने [[भारत]] के राजनीतिक विकास का अध्ययन किया।
{सभ्य समाज राजनीतिक चिंतन में एक केंद्रीय अवधारणा नहीं है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-74,प्रश्न-67
|type="()"}
-हीगल के अनुसार
+बेंथम के अनुसार
-ग्राम्सी के अनुसार
-लेनिन के अनुसार
{भारतीय [[संसद]] निर्मित होती है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-145,प्रश्न-54
|type="()"}
+[[राष्ट्रपति]] [[राज्य सभा]] एवं [[लोक सभा]] द्वारा
-[[राज्य सभा]] एवं [[लोक सभा]] द्वारा
-राज्य सभा, लोक सभा एवं एटॉर्नी जनरल द्वारा
-राज्य सभा, लोक सभा एवं [[निर्वाचन आयोग]] द्वारा
||अनुच्छेद 79 के अनुसार [[संसद|भारतीय संसद]] [[राष्ट्रपति]] और दो सदनों से अर्थात [[लोक सभा]] और [[राज्य सभा]] से मिलकर बनती है।
{राज्य निर्वाचन आयुक्त अपदस्थ किया जा सकता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-156,प्रश्न-113
|type="()"}
-[[राज्य]] के [[राज्यपाल]] के द्वारा
-राज्य [[विधान सभा]] के द्वारा
-[[मुख्यमंत्री]] द्वारा जारी आदेश के द्वारा
+[[उच्च न्यायालय]] के न्यायाधीश को अपदस्थ करने की प्रक्रिया के समान प्रक्रिया के द्वारा।
||संविधान के 73वें संशोधन द्वारा अंत:स्थापित अनुच्छेद 243-ट (2) के अनुसार राज्य निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से उसी रीति से और उन्हीं आधारों पर हटाया जाता है, अन्यथा नहीं, और राज्य निर्वाचन आयुक्त की सेवा की शर्तों में उसकी नियुक्ति के पश्चात उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
{[[जवाहर लाल नेहरू|जवाहर लाल नेहरू]] समर्थक थे- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-63
|type="()"}
-पूंजीवाद के
-साम्यवाद के
+गणतांत्रिक समाजवाद के
-अराजकतावाद के
||[[पं. जवाहरलाल नेहरू]] गणतांत्रिक समाजवाद के समर्थक थे। जवाहर लाल नेहरू की लोकतंत्र में गहरी आस्था थी। ये आर्थिक नियोजन (समाजवाद) तथा, लोकतंत्र में समंवय स्थापित करना चाहते थे। इसलिए लोकतांत्रिक समाजवाद में निष्ठा व्यक्त की। इसीलिए नेहरू जी ने [[भारत]] में भूमि सुधार को प्राथमिकता  दी तथा जमींदारी, तालुकेदारी प्रथाओं को मिटाने की पहल की। इन्होंने राष्ट्रीयकरण की नीति भी अपनाई और प्रतिरक्षा तथा अन्य प्रमुख उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया।{{point}} '''अधिक जानकारी के लिए देखें-:'''[[पंडित जवाहरलाल नेहरू]]
{सत्ता के तीन सर्वांगपूर्व प्रकार की अवधारणा का प्रतिपादन किसने किया था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-76,प्रश्न-78
|type="()"}
-[[प्लेटो]]
-हीगल
+मैक्स वेबर
-कार्ल पॉपर
||मैक्स वेबर ने सत्ता के वर्गीकरण का प्रयास किया था। वेबर का नौकरशाही सिद्धांत सत्ता के सिद्धांत का ही एक अंग है। वेबर ने सत्ता के कुल तीन प्रकार माने हैं- 1. पारंपरिक सत्ता, 2.श्रद्धा पर आधारित सत्ता अथवा करिश्माई सत्ता, तथा 3.वैधानिक प्रभुत्व। नौकरशाही इनमें से अंतिम श्रेणी में आती है। विधिक स्तर से पोषित एवं समर्थिक नौकरशाही को उन्होंने संगठन का सबसे प्रभावशाली स्वरूप माना।{{point}} '''अधिक जानकारी के लिए देखें-:'''[[प्लेटो]]
{निम्नलिखित में से कौन-सी पुस्तक [[कार्ल मार्क्स]] द्वारा नहीं लिखी गई थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-57,प्रश्न-38
|type="()"}
-दास  कैपिटल
+ग्रामर ऑफ़ पॉलिटिक्स
-कम्युनिस्ट मैनिफ़ेस्टो
-वैल्यू प्राइस एंड प्रॉफ़िट
{समाजवाद की संकल्पना किसके द्वारा क्रमबद्धता से विकसित की गई थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-59,प्रश्न-49
|type="()"}
-एडम स्मिथ
-रॉबर्ट ओवेन
-सेंट साइमन
+[[कार्ल मार्क्स]]
||समाजवाद को व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध रूप देने का श्रेय [[कार्ल मार्क्स]] को दिया जाता है। इसीलिए उनके समाजवाद को 'वैज्ञानिक समाजवाद' कहा जाता है। लास्की के अनुसार, 'मार्क्स ने समाजवाद को अव्यवस्थित रूप में पाया और इसे एक निश्चित आंदोलन बना दिया"।{{point}} '''अधिक जानकारी के लिए देखें-:'''[[कार्ल मार्क्स]]


{निम्नलिखित में  से कौन-सा युग्म सही हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-50
{निम्नलिखित में  से कौन-सा युग्म सही हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-50
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||लास्की का कहना है "डी टाकविले और लॉर्ड एक्टन के मस्तिष्क में स्वतंत्रता के प्रति उत्कृष्ट अभिलाषा होने के कारण ही उनके द्वारा स्वतंत्रता और समानता को परस्पर विरोधी समझा गया किंतु यह एक गलत निष्कर्ष है। उनके द्वारा समानता का तात्पर्य गलत रूप से लेने के कारण ही ऐसा किया गया है।" इस तरह लास्की ने स्वतंत्रता और समानता को एक-दूसरे का पूरक बताया है। लार्ड ऐक्टन अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन लाते है। तब इन्होंने लिखा है कि, "विरोधाभाष यह है कि समानता और स्वतंत्रता जो कि परस्पर विरोधी विचार के में प्रारंभ होते हैं, विश्लेषण करने पर एक-दूसरे के लिए आवश्यक हो जाते हैं। यह सत्य है कि समानता के अर्थ की उचित व्याख्या स्वतंत्रता के संदर्भ में की जा सकती है।
||लास्की का कहना है "डी टाकविले और लॉर्ड एक्टन के मस्तिष्क में स्वतंत्रता के प्रति उत्कृष्ट अभिलाषा होने के कारण ही उनके द्वारा स्वतंत्रता और समानता को परस्पर विरोधी समझा गया किंतु यह एक गलत निष्कर्ष है। उनके द्वारा समानता का तात्पर्य गलत रूप से लेने के कारण ही ऐसा किया गया है।" इस तरह लास्की ने स्वतंत्रता और समानता को एक-दूसरे का पूरक बताया है। लार्ड ऐक्टन अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन लाते है। तब इन्होंने लिखा है कि, "विरोधाभाष यह है कि समानता और स्वतंत्रता जो कि परस्पर विरोधी विचार के में प्रारंभ होते हैं, विश्लेषण करने पर एक-दूसरे के लिए आवश्यक हो जाते हैं। यह सत्य है कि समानता के अर्थ की उचित व्याख्या स्वतंत्रता के संदर्भ में की जा सकती है।


{"शक्ति भ्रष्ट करती है और असीमित शक्ति असीमित रूप से भ्रष्ट करती है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-75,प्रश्न-67
{"शक्ति भ्रष्ट करती है और असीमित शक्ति असीमित रूप से भ्रष्ट करती है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-75,प्रश्न-69
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+लॉर्ड एक्टन
+लॉर्ड एक्टन
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-संविधान संशोधन विधेयक
-संविधान संशोधन विधेयक
-वित्त विधेयक
-वित्त विधेयक
-भारत के उप-राष्ट्रपति का निर्वाचन
-[[भारत]] के [[उपराष्ट्रपति|उप-राष्ट्रपति]] का निर्वाचन
+साधारण विधेयक
+साधारण विधेयक
||साधारण विधेयक के संदर्भ में संसद के दोनों सदनों में असहमति की स्थिति में [[राष्ट्रपति]] द्वारा संविधान के अनुच्छेद 108 के तहत दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई जा सकती है जिसकी अध्यक्षता अनुच्छेद 118 (4) के तहत लोक सभाध्यक्ष (Speaker) करता है।
||साधारण विधेयक के संदर्भ में [[संसद]] के दोनों सदनों में असहमति की स्थिति में [[राष्ट्रपति]] द्वारा संविधान के अनुच्छेद 108 के तहत दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई जा सकती है जिसकी अध्यक्षता अनुच्छेद 118 (4) के तहत लोक सभाध्यक्ष (Speaker) करता है।


{भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत राज्य सभा, विशेष बहुमत द्वारा राज्य सूची के किसी विषय पर संसद को कानून बनाने के लिए अधिकृत कर सकती है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-145,प्रश्न-56
{भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत राज्य सभा, विशेष बहुमत द्वारा राज्य सूची के किसी विषय पर संसद को कानून बनाने के लिए अधिकृत कर सकती है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-145,प्रश्न-56
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+अनुच्छेद 249
+अनुच्छेद 249
-अनुच्छेद 250
-अनुच्छेद 250
||अनुच्छेद के अनु.249 के तहत यदि राज्य सभा अपने उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत से ऐसा संकल्प पारित करे कि राज्य सूची के किसी विषय पर विधि बनाना सकती है। साथ ही ऐसी विधि संपूर्ण भारत या उसके किसी भाग के लिए बनाई जा सकती है। परंतु राज्य सूची में सम्मिलित विषय पर राष्ट्रीय हित में विधि राज्य सभा द्वारा प्रस्ताव पारित होने के उपरांत संसद बनाती है न कि केवल राज्य सभा।
||अनुच्छेद के अनुच्छेद 249 के तहत यदि राज्य सभा अपने उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत से ऐसा संकल्प पारित करे कि राज्य सूची के किसी विषय पर विधि बनाना सकती है। साथ ही ऐसी विधि संपूर्ण [[भारत]] या उसके किसी भाग के लिए बनाई जा सकती है। परंतु राज्य सूची में सम्मिलित विषय पर राष्ट्रीय हित में विधि राज्य सभा द्वारा प्रस्ताव पारित होने के उपरांत संसद बनाती है न कि केवल राज्य सभा।


{भारत में मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी कौन नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-156,प्रश्न-114
{[[भारत]] में मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी कौन नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-156,प्रश्न-114
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-मार्क्सवादी (साम्यवादी) पार्टी
-मार्क्सवादी (साम्यवादी) पार्टी
-भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (इ) पार्टी
-[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] (इ) पार्टी
+समाजवादी पार्टी
+[[समाजवादी पार्टी]]
-बहुजन समाज पार्टी
-[[बहुजन समाज पार्टी]]
||समाजवादी पार्टी, भारत में मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी नहीं है जबकि अन्य विकल्पों में दी गई पार्टियां मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टिया हैं।
||[[समाजवादी पार्टी]], [[भारत]] में मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी नहीं है जबकि अन्य विकल्पों में दी गई पार्टियां मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टियां हैं। वर्तमान में भारत में 6 राष्ट्रीय पार्टियां है, जो हैं- (1) भारतीय जनता पार्टी, (2) इंडियन नेशनल कांग्रेस, (3) कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी), (4) कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया, (5) बहुजन समाज पार्टी, (6) नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी।
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
वर्तमान में भारत में 6 राष्ट्रीय पार्टियां है, जो हैं- (1) भारतीय जनता पार्टी, (2) इंडियन नेशनल कांग्रेस, (3) कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी), (4) कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया, (5) बहुजन समाज पार्टी,  
(6) नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी।


{समाजवाद निम्न का प्रतिपादन करता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-64
{समाजवाद निम्न का प्रतिपादन करता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-64
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+समाजवाद
+समाजवाद
||समाजवाद व्यक्तिवाद/उदारवाद के विरुद्ध एक प्रक्रिया है। यह पूंजीवाद विरोधी तथा उत्पादन एवं  वितरण के साधनों पर समाज का नियंत्रण चाहता है और व्यक्तियों के मध्य आर्थिक समानता का प्रबल पक्षधर है। परंतु मार्क्सवाद के अंतर्गत समाजवाद का एक विशेष अर्थ है। जब सर्वहारा वर्ग क्रांति करके पूंजीवाद को धराशायी कर देता है और उत्पादन के प्रमुख साधनों पर सर्वहारा का स्वामित्व और नियंत्रण स्थापित कर देता है तब समाजवाद अस्तित्व में आता है। इस अवस्था में राजनीतिक शक्ति के बल पर पूंजीवाद के अवशेष तत्वों को नष्ट किया जाता है जिससे वर्ग विहीन तथा राज्य विहीन समाज के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो।
||समाजवाद व्यक्तिवाद/उदारवाद के विरुद्ध एक प्रक्रिया है। यह पूंजीवाद विरोधी तथा उत्पादन एवं  वितरण के साधनों पर समाज का नियंत्रण चाहता है और व्यक्तियों के मध्य आर्थिक समानता का प्रबल पक्षधर है। परंतु मार्क्सवाद के अंतर्गत समाजवाद का एक विशेष अर्थ है। जब सर्वहारा वर्ग क्रांति करके पूंजीवाद को धराशायी कर देता है और उत्पादन के प्रमुख साधनों पर सर्वहारा का स्वामित्व और नियंत्रण स्थापित कर देता है तब समाजवाद अस्तित्व में आता है। इस अवस्था में राजनीतिक शक्ति के बल पर पूंजीवाद के अवशेष तत्वों को नष्ट किया जाता है जिससे वर्ग विहीन तथा राज्य विहीन समाज के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो।
{"राज्य का स्वरूप मूलत: निगम के समान है।" यह कथन है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-51
|type="()"}
-लास्की का
-मार्क्स का
+मैकाइवर का
-डुग्वी का
||मैकाइवर ने अपनी पुस्तक 'माडर्न स्टेट' (Modern State) में बहुलवादी विचारधारा का पक्षपोषण किया है। इनके अनुसार, राज्य समाज के अन्य अनेक संस्थाओं में से केवल एक संस्था है। यद्यपि इसके कार्य अनोखे ढंग के हैं। राज्य में एक निगम की सभी अनिवार्य विशेषताएं हैं। उसकी सीमाएं उसके अधिकार क्षेत्र उसकी जिम्मेदारियां सभी निश्चित हैं। निगम की तरह राज्य के भी अधिकार और कर्त्तव्य हैं। ज्ञातव्य है कि लास्की भी राज्य को सामाजिक समंवय करने वाली संस्था या 'सार्वजनिक सेवा निगम' की संज्ञा देते हैं।





Revision as of 12:21, 8 November 2017

1 निम्नलिखित में से कौन-सा युग्म सही हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-50

'मनुष्यों का सामूहिक भाईचारा'- काण्ट
'राज्य की उच्चतर तार्किकता'- बोसांके
'राज्य समुदायों का समुदाय'- ग्रीन
'मनुष्य का प्राकृतिक अधिकार'- लॉक

2 "राजनीतिक दल ही देश में तानाशाही के उदय से हमारी रक्षा का सबसे बड़ा साधन हैं।" यह किसने कहा है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-73,प्रश्न-58

मैकाइवर
फाइनर
ब्राइस
लास्की

3 "समानता स्वतंत्रता की तरह एक ही चीज नही है। मैं लॉर्ड एक्टन के इस कथन से सहमत नहीं हूं कि समानता की उत्कृष्ट अभिलाषा के कारण स्वतंत्रता की आशा ही व्यर्थ हो गई है।" यह किसका कथन है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-87,प्रश्न-25

मैजिनी
लास्की
वाल्टेयर
जॉन मिल्टन

4 "शक्ति भ्रष्ट करती है और असीमित शक्ति असीमित रूप से भ्रष्ट करती है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-75,प्रश्न-69

लॉर्ड एक्टन
लॉर्ड ब्राइस
लॉर्ड बेकन
लॉर्ड रोजर एक्विनास

5 भारतीय संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक किस संबंध में आहूत होती है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-145,प्रश्न-55

संविधान संशोधन विधेयक
वित्त विधेयक
भारत के उप-राष्ट्रपति का निर्वाचन
साधारण विधेयक

6 भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत राज्य सभा, विशेष बहुमत द्वारा राज्य सूची के किसी विषय पर संसद को कानून बनाने के लिए अधिकृत कर सकती है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-145,प्रश्न-56

अनुच्छेद 247
अनुच्छेद 248
अनुच्छेद 249
अनुच्छेद 250

7 भारत में मान्यता-प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी कौन नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-156,प्रश्न-114

मार्क्सवादी (साम्यवादी) पार्टी
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (इ) पार्टी
समाजवादी पार्टी
बहुजन समाज पार्टी

8 समाजवाद निम्न का प्रतिपादन करता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-64

कोई आर्थिक नियोजन न हो
बहुराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा आर्थिक नियोजन हो
व्यक्तियों द्वारा आर्थिक नियोजन हो
राज्य के द्वारा नियोजन हो

9 निम्न में से कौन विकेंद्रित समाजवाद के प्रबल समर्थक थे? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-62,प्रश्न-65

जय प्रकाश नारायण
आचार्य नरेंद्र देव
डॉ. राम मनोहर लोहिया
आचार्य विनोबा भावे

10 मैक्स वेबर, दुर्खीम और पेरेटो को राजनीतिशास्त्र के किस उपागम से जोड़ा जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-77,प्रश्न-79

दार्शनिक
आर्थिक
आध्यात्मिक
समाजशास्त्रीय

11 "अब तक सभी समाजों का इतिहास वर्ग-संघर्षों का इतिहास है।" यह कथन है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-57,प्रश्न-39

मार्क्स का
लेनिन का
स्टालिन का
माओ का

12 ऐसी शासन व्यवस्था जिसमें संपत्ति व उत्पादन के साधन पर शासन का नियंत्रण होगा, व्यक्तिगत संपत्ति समाप्त होगी व समाज शोषण-मुक्त होगा- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-60,प्रश्न-50

फॉसीवाद
अराजकतावाद
आदर्शवाद
समाजवाद

13 "राज्य का स्वरूप मूलत: निगम के समान है।" यह कथन है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-13,प्रश्न-51

लास्की का
मार्क्स का
मैकाइवर का
डुग्वी का