प्रयोग:दीपिका3: Difference between revisions
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<quiz display=simple> | <quiz display=simple> | ||
{ | {सामूहिक उत्तरदायित्व की विशेषता किस शासन पद्धति में पाई जाती है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-99,प्रश्न-2 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+ | +संसदीय | ||
- | -अध्यक्षात्मक | ||
- | -मिश्रित | ||
- | -इनमें से कोई नहीं | ||
|| | ||संसदीय प्रणाली में वास्तविक कार्यपालिका [[मंत्रिपरिषद]] होती है। मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से [[लोक सभा]] के प्रति उत्तरदायी होती है। अत: लोक सभा का विश्वास खोते ही मंत्रिपरिषद पद-त्याग देती है। | ||
{" | |||
{[[ब्रिटेन]] में महिलाओं को वोट देने का अधिकार किस शताब्दी में मिला? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-104,प्रश्न-2 | |||
|type="()"} | |||
-17वीं | |||
-18वीं | |||
-19वीं | |||
+20वीं | |||
||[[ब्रिटेन]] में महिलाओं को मताधिकार [[1928|वर्ष 1928]] में (20 वीं सदी) 'जनप्रतिनिधि कानून' के माध्यम से प्रदान किया गया। | |||
{दबाव समूहों ने "तीसरे सदन" का नाम प्राप्त कर लिया है, यह किसका विचार है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-109,प्रश्न-32 | |||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+ब्राइस | +फाइनर | ||
-ब्राइस | |||
-डायसी | |||
-लास्की | -लास्की | ||
||दबा समूहों को 'तृतीय सदन' की संज्ञा फाइनर द्वारा दी गई थी, क्योंकि दबाव समूह [[अमेरिका]] में विधि निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। | |||
{ | |||
{किसने इस बात पर जोर दिया कि नौकरशाही एक स्वतंत्र अस्तित्व है और समाज चाहे पूंजीवादी हो या समाजवादी वह बनी रहेगी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-132,प्रश्न-22 | |||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | +[[मैक्स वेबर]] | ||
- | -[[कार्ल मार्क्स]] | ||
-साइमन | |||
- | -लियो ट्राट्स्की | ||
|| | ||"नौकरशाही एक स्वतंत्र अस्तित्व है और समाज चाहे पूंजीवादी हो या समाजवादी वह बनी रहेगी", यह चिंतन मैक्स वेबर का है। वेबर के सूत्रीकरण में, नौकरशाही को लोक सेवा के साथ नहीं मिलाया जाता। इसका अर्थ सामूहिक गतिविधियों के तर्क संगतिकरण की समाजशास्त्रीय अवधारणा है। मैक्स बेवर ने नौकरशाही के अपने सूत्रीकरण को 'आदर्श प्रकार' कहा है। नौकरशाही का सर्वप्रथम सुव्यस्थित अध्ययन इन्हीं ने किया तथा नौकरशाही को परिभाषित किया।{{point}} '''अधिक जानकारी के लिए देखें-:''' [[मैक्स वेबर]] | ||
{ | |||
{[[संसद]] के संयुक्त अधिवेशन को कौन संबोधित करता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-138,प्रश्न-12 | |||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -[[सभापति]], [[राज्य सभा]] | ||
- | -[[लोक सभा अध्यक्ष]] | ||
+[[राष्ट्रपति]] | |||
-विरोधी दल का नेता | |||
|| | ||अनुच्छेद 87 (1) के अनुसार [[राष्ट्रपति]], [[लोक सभा]] के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात् प्रथम सत्र के आरंभ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में एक साथ समवेत [[संसद]] के दोनों सदनों में अभिभाषण करेगा और संसद को उसके आह्वान के कारण बताएगा। | ||
{ | {[[भारत]] में [[संघ लोक सेवा आयोग]] द्वारा वार्षिक प्रतिवेदन किसके समक्ष प्रस्तुत किया जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-172,प्रश्न-202 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[प्रधानमंत्री]] | -[[प्रधानमंत्री]] | ||
-मुख्य न्यायाधीश | |||
+[[राष्ट्रपति]] | +[[राष्ट्रपति]] | ||
|| | -महान्यायावादी | ||
||[[संविधान]] के अनुच्छेद 323 (1) के अनुसार [[संघ लोक सेवा आयोग]] द्वारा वार्षिक प्रतिवेदन (आयोग द्वारा किए गए कार्यों की वार्षिक रिपोर्ट) [[राष्ट्रपति]] के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। राष्ट्रपति इस प्रतिवेदन को ससंद के समक्ष रखता है। राज्य लोक सेवा आयोग वार्षिक प्रतिवेदन [[राज्यपाल]] को प्रस्तुत करते हैं। ऐसे प्रतिवेदन राज्यपाल द्वारा [[राज्य]] [[विधानमण्डल]] के समक्ष रखवाए जाते हैं [अनुच्छेद-323 (2)]। | |||
{[[संविधान]] के किस | {[[संविधान]] के किस अनुच्छेद के अंतर्गत ग्राम पंचायतों के गठन का प्रावधान है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-186,प्रश्न-2 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -अनुच्छेद 39 | ||
+ | +अनुच्छेद 40 | ||
- | -अनुच्छेद 41 | ||
- | -अनुच्छेद 42 | ||
||संविधान के | ||संविधान का अनुच्छेद 40 ग्राम पंचायतों के गठन का प्रावधान करता है। इस अनुच्छेद के अनुसार, राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करने के लिए कदम उठाएगा और उनको ऐसी शक्तियाँ और प्राधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्य बनाने के लिए आवश्यक हों। | ||
{ | {"जिसे राजनीति में जातिवाद कहा जाता है। इसी जातीयों के राजनीतिकरण से अधिक और कुछ नहीं है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-189,प्रश्न-2 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -लायड रूडाल्फ | ||
-मोरेस जोंस | |||
- | -एम.एन. श्रीनिवास | ||
+रजनी कोठारी | |||
|| | ||प्रो. रजनी कोठारी ने अपनी पुस्तक 'कास्ट इन इंडियन पॉलिटिक्स' में भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका का विस्तृत विश्लेषण किया है। [[भारत]] की जनता जातियों के आधार पर संगठित है। अत: न चाहते हुए भी राजनीति को जाति संस्था का उपयोग करना ही पड़ेगा। अत: जिसे राजनीति में 'जातिवाद' कहा जाता है, वह जातियों के राजनीतिकरण से अधिक और कुछ नहीं है। जाति को अपने दायरे में खींचकर राजनीति उसे अपने कम में लाने का प्रयत्न करती है। | ||
{ | {निम्नलिखित में से कौन अधिकारों का सर्वाधिक पुराना सिद्धांत हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-90,प्रश्न-13 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-अधिकारों का आर्थिक सिद्धांत | |||
- | -अधिकारों का वैधानिक सिद्धांत | ||
- | +प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धांत | ||
-अधिकारों का आदर्शवादी सिद्धांत | |||
|| | |||
||अधिकारों के संबंध में प्राकृतिक सिद्धांत सबसे अधिक प्राचीन है। इस सिद्धांतानुसार" मानवीय अधिकार पूर्णतया प्राकृतिक और जन्मसिद्ध है। अधिकार उसी प्रकार मनुष्य की प्रकृति के अंग होते हैं जिस प्रकार उसकी चमड़ी कर रंग। इनकी विस्तृत व्याख्या करने या औचित्य बताने की कोई आवश्यकता नहीं है, ये तो स्वयंसिद्ध हैं।" | |||
{ | |||
{संघीय व्यवस्था में प्राय: निम्न की आवश्यकता होती है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-97,प्रश्न-3 | |||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+लिखित [[संविधान]] और शक्ति विभाजन | |||
- | -लिखित संविधान और संसदीय संप्रभुता | ||
- | -मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक सिद्धांत | ||
-मौलिक अधिकार और कर्त्तव्य | |||
अधिकार | |||
</quiz> | </quiz> | ||
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Revision as of 11:17, 19 November 2017
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