प्रयोग:दीपिका3: Difference between revisions
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{संविधानवाद होता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-193,प्रश्न-5 | {संविधानवाद होता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-193,प्रश्न-5 | ||
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||संविधानवाद एक गत्यात्मक अवधारणा है। इसमें स्थायित्व के साथ-साथ गत्यात्मकता भी पाई जाती है जिससे यह प्रगति में बाधक नहीं बल्कि प्रगति का साधक बना रहता है। चूंकि विकास के लिए स्थायित्व भी अति आवश्यक है, अन्यथा विकास दिशाहीन होगा। इसलिए संविधानवाद की धारणा स्थिरता-युक्त गत्यात्मकता की सूचक है। इसकी गतिशील प्रकृति अति आवश्यक है क्योंकि समय परिवर्तन के साथ मूल्यों में परिवर्तन आता है तथा संस्कृति विकसित होती है जिससे संविधानवाद गत्यात्मकता प्राप्त करता है। | ||संविधानवाद एक गत्यात्मक अवधारणा है। इसमें स्थायित्व के साथ-साथ गत्यात्मकता भी पाई जाती है जिससे यह प्रगति में बाधक नहीं बल्कि प्रगति का साधक बना रहता है। चूंकि विकास के लिए स्थायित्व भी अति आवश्यक है, अन्यथा विकास दिशाहीन होगा। इसलिए संविधानवाद की धारणा स्थिरता-युक्त गत्यात्मकता की सूचक है। इसकी गतिशील प्रकृति अति आवश्यक है क्योंकि समय परिवर्तन के साथ मूल्यों में परिवर्तन आता है तथा संस्कृति विकसित होती है जिससे संविधानवाद गत्यात्मकता प्राप्त करता है। | ||
{निम्नलिखित में से कौन-सी पुस्तक [[प्लेटो]] द्वारा नहीं लिखी गई थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-201,प्रश्न-2 | |||
|type="()"} | |||
-क्रीतो | |||
-रिपब्लिक | |||
+एथिक्स | |||
-अपोलॉजी | |||
||एथिक्स [[अरस्तू]] की कृति है, जबकि शेष कृतियां प्लेटो की हैं। | |||
{निम्नांकित में से कौन-सा युग्म सही नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-8,प्रश्न-22 | |||
|type="()"} | |||
-अभिजात्य सिद्धांत -पैरेटो | |||
-अनुदारवादी सिद्धांत -बर्क | |||
+उदारवादी सिद्धांत -प्लेटो | |||
-सामाजिक प्रसंविदा सिद्धांत -रूसो | |||
||[[प्लेटो]] आदर्शवादी सिद्धांत का विचारक था। इसने अपने ग्रंथ 'रिपाब्लिक' में आदर्श राज्य की कल्पना की थी जबकि पैरेटो अभिजात्य सिद्धांत, बर्क अनुदारवादी सिद्धांत तथा हॉब्स, लॉक, रूसो सामाजिक समझौता सिद्धांत के विचारक रहे हैं। | |||
{किसने सामाजिक संविदा सिद्धांत की, 'घटिया इतिहास, घटिया दर्शन तथा घटिया विधि' के रूप में आलोचना की? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-20,प्रश्न-22 | |||
|type="()"} | |||
+सर हेनरी मेन | |||
-लॉर्ड एक्टन | |||
-हॉब हाउस | |||
-मिल | |||
||सर हेनरी मेन राज्य की उत्पत्ति के समझौता (संविदा) सिद्धांत के आलोचक थे। उन्होंने इस सिद्धांत की 'घटिया इतिहास, घटिया दर्शन तथा घटिया विधि' के रूप में आलोचना की। | |||
{प्रजातंत्र वह शासन पद्धति है जिसमें अंतिम शक्ति निवास करती है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-46,प्रश्न-14 | |||
|type="()"} | |||
+जनता में | |||
-राजनीतिज्ञों में | |||
-लोक सेवकों में | |||
-नौकरशाहों में | |||
||प्रजातंत्र एक ऐसी शासन पद्धति है जिसमें जनता के हाथों में अंतिम व निर्णायक शक्ति होती है, वह प्रतिनिधियों की माध्यम से सरकार का निर्माण करती है। | |||
{प्रभुसत्ता की धारणा का निरूपण सबसे पहले किया- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-22,प्रश्न-2 | |||
|type="()"} | |||
-[[प्लेटो]] ने | |||
-[[अरस्तू]] ने | |||
+बोदां ने | |||
-लॉक ने | |||
||प्रभुसत्ता की अवधारणा का निरूपण सर्वप्रथम सोलहवीं शताब्दी में ज्यां बोदां द्वारा अपनी पुस्तक 'द रिपब्लिका' (राज्य) के अंतर्गत किया गया था। | |||
{इटली में फॉसीवादी का उदय परिणाम था- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-42,प्रश्न-12 | |||
|type="()"} | |||
-पुनर्जागरण का | |||
+प्रथम विश्व युद्ध का | |||
-नेपोलियानिक युद्ध का | |||
-औद्योगिक क्रांति का | |||
||फासिस्ट आंदोलन के प्रारंभिक दौर में मुसोलिनी का ध्येय केवल सत्ता के अपने हाथ मे लेना था, किंतु प्रथम विश्व युद्ध के बाद की परिस्थितियों में मुसोलिनी ने अपना दृष्टिकोण बदला और वर्ष 1926 के बाद उसकी सरकार का स्वरूप अधिनायक तंत्रीय हो गया। | |||
{"कानून उच्चतर द्वारा निम्नतर को दिया गया आदेश है।" कानून की यह परिभाषा निम्न में से किसने दी है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-68,प्रश्न-23 | |||
|type="()"} | |||
+ऑस्टिन ने | |||
-सालमंड ने | |||
-विल्सन ने | |||
-ग्रीन ने | |||
||ऑस्टिन [[इंग्लैंड]] का विधानशास्त्री था, जिसने 1832 में प्रकाशित अपनी पुस्तक विधानशास्त्र पर व्याख्यान में संप्रभुता के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। यह हॉब्स और बेंथम के विचारों से प्रभावित था और बेंथम के समान ही ऑस्टिन का उद्देश्य भी कानून और परंपरा के बीच भेद करना और परंपरा पर कानून की श्रेष्ठता स्थापित करना था। ऑस्टिन का विचार था कि उच्चतर द्वारा निम्नतर को दिया गया आदेश ही कानून है।" अपने इसी विचार के आधार पर ऑस्टिन ने संप्रभुता की धारणा का प्रतिपादन किया जो इस प्रकार है, "यदि कोई निश्चित उच्च सत्ताधारी व्यक्ति जो स्वयं किसी उच्च सत्ताधारी की आज्ञा पालन का अभ्यस्व नहीं है। किसी समाज के अधिकांश भाग से अपने आदेशों का पालन कराता है, तो उस समाज में वह उच्च सत्ताधारी व्यक्ति प्रभुत्वशक्ति संपन्न होता है तथा वह समाज उस उच्च सत्ताधारी सहित एक राजनीतिक और स्वतंत्र समाज होता है।" | |||
{लोकायुक्त पद की स्थापना सर्वप्रथम सन् 1971 ई. में कहां की गई? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-191,प्रश्न-4 | |||
|type="()"} | |||
-[[बिहार]] में | |||
+[[महाराष्ट्र]] में | |||
-[[राजस्थान]] में | |||
-[[तमिलनाडु]] में | |||
||वर्ष 1970 में लोकायुक्त और लोकायुक्त अधिनियम के माध्यम से लोकायुद्ध की संस्था को प्रस्तुत करने वाली [[उड़ीसा]] [[भारत]] का प्रथम राज्य था जबकि वर्ष 1971 में लोकायुक्त पद की सर्वप्रथम स्थापना करने वाला प्रथम [[राज्य]] [[महाराष्ट्र]] था। | |||
{बहुदलीय व्यवस्था नहीं पायी जाती है: (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-199,प्रश्न-40 | |||
|type="()"} | |||
-[[फ्रांस]] में | |||
-[[जर्मनी]] में | |||
-[[ऑस्ट्रेलिया]] में | |||
+क्यूबा में | |||
||क्यूबा लैटिन [[अमेरिका]] का एक समाजवादी गणतंत्र है। वर्ष 1959 में फिदेल कास्त्रो के नेतृत्व में क्रांति के फलस्वरूप क्यूबा ने तानाशाही और सर्वाधिकारवादी व्यवस्था से मुक्ति प्राप्त की और एकदलीय जनतंत्र की नींव रखी गई। | |||
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Revision as of 11:39, 12 December 2017
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