प्रयोग:दीपिका3: Difference between revisions
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{[[ब्रिटेन]] में [[वित्त मंत्रालय]] को कहते हैं- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-193, प्रश्न-6 | |||
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+राजकोष विभाग | |||
-वित्त विभाग | |||
-ब्यूरो ऑफ़ बजट | |||
-इनमें से कोई नहीं | |||
||[[ब्रिटेन]] में [[वित्त मंत्रालय]] को 'राजकोष विभाग' (Her Majesty's Treasury) कहते हैं तथा इस विभाग के प्रमुख (कैबिन मंत्री) को 'चांसलर ऑफ़ द एक्सचेकर' कहते हैं। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में इस पर जॉर्ज ओस्बर्न (12 मई,2010 से) हैं। | |||
{'लेक्चर्स ऑन दी प्रिंसिपस ऑफ़ पॉलिटिकल ऑब्लिगेशन' के लेखक कौन हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-201,प्रश्न-3 | |||
|type="()"} | |||
+टी.एच. ग्रीन | |||
-बोसांके | |||
-अरनाल्ड टायनबी | |||
-जे.एस. मिल | |||
||'लेक्चर्स ऑन दी प्रिंसिपल्स ऑफ़ पॉलिटिकल ऑब्लिगेशन' थॉमस हिल ग्रीन (T.H. Green) की रचना है, जो राजनीतिक सिद्धांतों का सार है। इसमें राजाज्ञा पालन के सिद्धांतों पर व्यापक रूप से लिखा गया है। यह रचना ग्रीन के भाषणों का संकलन है। | |||
{[[प्लेटो]] ने इनमें से किस विचार का समर्थन किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-8,प्रश्न-23 | |||
|type="()"} | |||
-साम्राज्यवाद का | |||
-नगर राज्यों के विनाश का | |||
-अभिभावक वर्ग द्वारा उत्पादन वर्ग की महिलाओं के शोषण का | |||
+पात्नियों और संपत्ति के साम्यवाद का | |||
||प्लेटो ने पत्नियों और संपत्ति के साम्यवाद का समर्थन किया है। प्लेटो ने साम्यवादी योजना को दो भागों, पहला संपत्ति का साम्यवाद तथा दूसरा परिवार अथवा स्त्रियों का साम्यवाद में विभाजित किया। प्लेटो शासकों और सैनिकों के लिए संपत्ति व परिवार का निषेध करता है। यह शासक और सैनिक वर्गों को सामूहिक रूप से राज्य का अभिभावक मानता है, प्लेटो का मानना है कि यदि अभिभावक वर्ग के पास परिवार और संपत्ति होगी तो वे अपने कर्त्तव्य पथ से विचलित होंगे और आदर्श राज्य का विनाश होगा। | |||
{निम्न में से किसमें राज्य की उत्पत्ति के ऐतिहासिक सिद्धांत के तत्व पाए जाते हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-20,प्रश्न-23 | |||
|type="()"} | |||
+रक्त संबंध, धर्म, युद्ध, राजनीतिक चेतना | |||
-युद्ध, प्रथाएं, राजतंत्र, प्राकृतिक विधि के समावेश | |||
-राजतंत्र, बल, पारस्पतिक समझौते, राजनीतिक नेतृत्व | |||
-रक्त संबंध, संविदात्मक समझौते, धर्म अराजकता | |||
||राज्य की उत्पत्ति की सही व्याख्या ऐतिहासिक या विकासवादी सिद्धांत द्वारा ही की गई है। इस सिद्धांत के अनुसार, राज्य का विकास एक लंबे समय से चला आ रहा है और आदिकालीन समाज की क्रमिक विकास करते-करते इसने वर्तमान राष्ट्रीय राज्य के स्वरूप को प्राप्त किया है। राज्य के उत्पत्ति के ऐतिहासिक सिद्धांत के प्रमुख तत्व हैं- (1) रक्त संबंद्ध (2) मनुष्य की स्वाभाविक सामाजिक प्रवृत्तियां, (3) [[धर्म]] (4) युद्ध (5) आर्थिक गतिविधियां, (6) राजनीतिक चेतना। | |||
{निम्नलिखित में से कौन लोकतंत्र का आवश्यक अभिलक्षण नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-46,प्रश्न-15 | |||
|type="()"} | |||
+[[न्यायपालिका]], जवाबदेह होती है विधायिका के प्रति | |||
-न्यायपालिका स्वतंत्र होती है | |||
-प्रेस स्वतंत्र होता है | |||
-सार्वजनिक राय प्रकट करने की स्वतंत्रता होती है | |||
||लोकतंत्र के आवश्यक अभिलक्षणों में [[न्यायपालिका]] का विधायिका के प्रति जवाबदेह होना शामिल नहीं है। लोकतांत्रिक शासन पद्धति में सरकार के तीनों अंगों के बीच संवैधानिक रूप से शक्तियों का विभाजन कर दिया जाता है। प्राय: न्यायपालिका, कार्यपालिका व विधायिका से स्वतंत्र होती है। इसके अतिरिक्त प्रेस की स्वतंत्रता तथा भाषण व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र के आवश्यक अभिलक्षण हैं। | |||
{"राजनीतिक संप्रभुता राज्य के उन प्रभावों का समूह है, जो कानून के पीछे रहती है। यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-22,प्रश्न-3 | |||
|type="()"} | |||
-डायसी | |||
+गिलक्राइस्ट | |||
-बार्कर | |||
-ब्राइस | |||
||"राजनीतिक संप्रभुता राज्य के उन प्रभावों का समूह है, जो कानून के पीछे रहती है।" यह कथन गिलक्राइस्ट का है। राजनीतिक विद्वानों ने वैधानिक प्रभुसत्ता तथा राजनीतिक प्रभुसत्ता में अंतर किया है। वैधानिक संप्रभुता वह है जिसके पास कानून निर्माण तथा उसे लागू करने की सर्वोच्च शक्ति होती है तथा यही सत्ता कानून को परिवर्तित या निरस्त कर सकते है। ब्रिटिश की [[संसद]] वैधानिक संप्रभुता का सर्वोत्तम उदाहरण है। इसकी सर्वशक्तिमत्ता के बारे में डायसी ने कहा है कि "यह किसी अवयस्क को वयस्क घोषित कर सकती है, राजद्रोही को मृत्यु के बाद भी ताड़ित कर सकती है, यह अवैध बच्चे को वैध बना सकती है। यदि यह उचित समझे तो किसे व्यक्ति को अपने मामले में न्यायधीश बना सकती है।" परंतु राजनीतिक संप्रभुता निर्वाचक मण्डल की शक्ति का द्योतक है यही संसद को बनाती है तथा उसे बदल सकती है। डायसी के शब्दों में "जिस संप्रभु को वकील लोग मानते हैं (विधिक संप्रभुता), उसके पीछे दूसरा संप्रभु रहता है। इस संप्रभु के पीछे वैधानिक संप्रभु को सिर झुकाना पड़ता है। जिस इच्छा को राज्य के नागरिक मानते हैं वही राजनीति संप्रभु है।" | |||
{किसने कहा "आदमी के लिए युद्ध वही है जो औरत के लिए मातृत्व है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-42,प्रश्न-13 | |||
|type="()"} | |||
-[[कार्ल मार्क्स]] | |||
-हीगल | |||
+मुसोलिनी | |||
-लेनिन | |||
||फॉसीवाद युद्ध को मानवता का विरोधी नहीं बल्कि राज्यों की सेहत बनाने वाला व्यायाम मानता है। मुसोलिनी ने कहा है कि "युद्ध राज्य के लिए वैसा ही है जैसा कि नारी के लिए मातृत्व।" शांति का नारा उत्साहहीन कमजोर तथा नपुंसक देश देते है। युद्ध की आग में तपकर ही शक्ति शाली राष्ट्र सोना बनते हैं। | |||
{निम्नलिखित में से किसको 'कानून के समादेश सिद्धांत' (Command theory of low) का उन्नायक कहा जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-68,प्रश्न-24 | |||
|type="()"} | |||
-जेरेमी बेंथम को | |||
-जॉ बोदडां को | |||
+जॉन ऑस्टिन को | |||
-ए.वी. डायसी को | |||
||जॉन ऑस्टिन के अनुसार "कानून उच्चतर द्वारा निम्नतर को दिया गया आदेश है।" या "कानून संप्रभु की आज्ञा (आदेश) है।" ऑस्टिन के कानून को इस परिभाषा में तीन तत्व निहित है- (i) संप्रभुता (ii) आदेश (समादेश) (iii) शास्ति-अर्थात संप्रभु के आदेश की अवहेलना करने वाले को दण्ड देने की शक्ति। इस प्रकार ऑस्टिन ने कानून को संप्रभु आदेश (समादेश) माना है। ऑस्टिन ने अपनी पुस्तक में संप्रभुता की एकलवदी अवधारणा का प्रतिपादन किया है। | |||
{ओम्बुड्समैन की संस्था सर्वप्रथम कहां स्थापित की गई? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-191,प्रश्न-5 | |||
|type="()"} | |||
-[[ऑस्ट्रेलिया]] में | |||
-नॉर्वे में | |||
-फिनलैंड में | |||
+स्वीडन में | |||
||लोकपाल या ओम्बुड्समैन उच्च सरकारी पदों पर आसीन व्यक्तियों द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार की शिकायतें सुनने एवं उस पर कार्यवाही करने के निमित्त पद है। ओम्बुड्समैन प्रथा स्केण्डोनेवियन देशों द्वारा विकसित पद्धति है। सर्वप्रथम स्वीडन में वर्ष 1809 में संविधान के अंतर्गत इसकी स्थापना की गई। | |||
{वर्तमान समय में संवैधानिक राजतंत्र है: (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-199,प्रश्न-43 | |||
|type="()"} | |||
-[[जर्मनी]] में | |||
-[[फ्रांस]] में | |||
+[[इंग्लैंड]] में | |||
-[[अमेरिका]] में | |||
||[[यूनाइटेड किंगडम]] एक संवैधानिक राजशाही और एकात्मक राज्य है जिसमें चार क्षेत्र [[इंग्लैंड]], उत्तरी आयरलैंड और वेल्स शामिल हैं। [[इंग्लैंड]] (ब्रिटेन) का राज्याध्यक्ष देश का संवैधानिक प्रधान होता है जो राजा या रानी होते हैं। यह आनुवांशिक पद्धति पर आधारित पर है। | |||
{अमेरिकी संविधान द्वारा किसकी शक्तियां निश्चित कर दी गयी हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-193,प्रश्न-7 | |||
|type="()"} | |||
+संघ की | |||
-राज्यों की | |||
-उपर्युक्त दोनों | |||
-उपर्युक्त में से कोई नहीं | |||
||अमेरिकी संविधान संयुक्त राज्य अमेरिका का सर्वोच्च कानून है। इसकी आधारशिला संघवाद है। अमेरिकी संविधान में संघीय सरकार की शक्तियां निश्चित कर दी गई हैं तथा अन्य शक्तियां राज्यों को प्रदान कर दी गई हैं। | |||
{'लॉ ऑफ़ दी कांस्टीट्यूशन' का प्रख्यात लेखक कौन है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-201,प्रश्न-4 | |||
|type="()"} | |||
+ए.वी. डायसी | |||
-हरमन फाइनर | |||
-आर.जी. गेटेल | |||
-एफ. डब्ल्यू. विलोबी | |||
||'एन इंट्रोडक्शन ऑफ़ दि लॉ ऑफ़ दि कांस्टीट्यूशन (1885)' के लेखक ए. वी. डायसी है। | |||
{"सबसे निकृष्ट राज्य भी सबसे उत्कृष्ट अराजकता से अच्छा है।" यह मत किसने व्यक्त किया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-8,प्रश्न-26 | |||
|type="()"} | |||
-हीगल | |||
-रूसो | |||
-लॉक | |||
+हॉब्स | |||
||हॉब्स के अनुसार, प्रभुसत्ता के अबाध अधिकार के फलस्वरूप ही एक वास्तविक सुदृढ़ शासन (Commonwealth) की स्थापना हो सकती है। किसी प्रकार की शर्तें लगाने से अनिश्चय और अविश्वास की संभावना हो सकती थी, जिससे इस प्रकार के झगड़े उत्पन्न हो जाते, जिनका हल संभव नहीं होता और तब पुन: अराजकता फैल जाती। इसकी परिणाम यह रहा कि सबसे निकृष्ट राज्य में भी प्रजा को शासक के विरुद्ध बोलने का अधिकार नहीं रहा, क्योंकि शासन के विरुद्ध जाने का अभिप्राय प्राकृतिक अवस्था की ओर लौटना अर्थात उत्कृष्ट अराजकता के माहौल में लौटना था। इसलिए हॉब्स का कथन है कि "सबसे निकृष्ट राज्य भी सबसे उत्कृष्ट अराजकता से अच्छा है"। | |||
{'राज्य की उत्पत्ति का दैवी सिद्धांत' कितने प्रतिपादित किया था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-20,प्रश्न-24 | |||
|type="()"} | |||
-कार्ल मार्क्स ने | |||
-गिल क्राइस्ट ने | |||
+जेम्स प्रथम ने | |||
-एच.जे. लास्की ने | |||
||राज्य की उत्पत्ति का दैवी सिद्धांत का सबसे प्रबल समर्थन 17वीं सदी में स्टुअर्ट राजा जेम्स प्रथम द्वारा अपनी पुस्तक 'Law of Monarchy' में किया गया। जेम्स प्रथम के अनुसार, "राजा लोग पृथ्वी पर ईश्वर की जीवित प्रतिमाएं हैं"। दैवीय उत्पत्ति का सिद्धांत सबसे प्राचीन है, इसके अनुसार, राज्य मानवीय नहीं वरन् ईश्वर द्वारा स्थापित एक दैवीय संस्था है। इसलिए विविध धर्मग्रंथों में भी इसी सिद्धांत का समर्थन किया गया है। यहूदी धर्म की प्रसिद्ध पुस्तक 'Old Testament',महाभारत, मनुस्मृति सभी में इसका उल्लेख है। सेंट आगस्टाइन और पोप ग्रेगरी द्वारा भी इस सिद्धांत का समर्थन किया गया है। | |||
{राजनीतिक समानता की सर्वश्रेष्ठ गांरटी है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-47,प्रश्न-16 | |||
|type="()"} | |||
+लोकतंत्र में | |||
-तानाशाही में | |||
-अल्पतंत्र में | |||
-अभिजाततंत्र में | |||
||राजनीतिक समानता की सर्वश्रेष्ठ गारंटी लोकतंत्र में होती है क्योंकि लोकतंत्र में सभी नागरिकों को समान राजनीतिक शक्ति प्राप्त होती है। सभी व्यक्तियों को मताधिकार राजनीतिक समानता का सूचक है तथा कानून के समक्ष सबकी समानता भी लोकतंत्र का मूल्य है। वर्तमान समय में लोकतंत्र राजनीतिक समानता से आगे बढ़कर आर्थिक एवं सामाजिक समानता की ओर अग्रसर है। | |||
{"वैधानिक संप्रभुता के पीछे एक राजनीतिक संप्रभु की खोज की कोशिश संप्रभुता की समूची धारणा को खत्म कर देती है और संप्रभुता को प्रभावों की सूचीमात्र बना देती है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-23,प्रश्न-4 | |||
|type="()"} | |||
-डायसी | |||
-गिलक्राइस्ट | |||
-लीकॉक | |||
+गेटेल | |||
||राजनीतिक विद्वानों के अनुसार वैधानिक संप्रभुता का विचार एक प्रमाणिक सत्य है और इसे आसानी से समझा जा सकता है। लेकिन राजनीतिक संप्रभुता संबंधी विचार एक कल्पना है। निर्वाचकों (राजनीतिक संप्रभु) की इच्छाएं दलीय राजनीति, लोकमत, प्रचार, अशिक्षा आदि के कारण बदलती रहती है जिससे राजनीतिक संप्रभुता की धारणा स्पष्ट नहीं हो पाती है। इसी के संदर्भ में गैटल ने टिप्पणी की है कि "वैधानिक संप्रभु के पीछे राजनीतिक संप्रभु को खोजने का कोई प्रयास संप्रभुता की संपूर्ण धारणा के मूल्य को नष्ट कर देता है और संप्रभुता को प्रभावों की सूची मात्र नमा देता है।" | |||
{"मेरा प्रोग्राम (कार्यक्रम) कार्य है बात नही" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-42,प्रश्न-14 | |||
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-मार्क्स | |||
-स्टालिन | |||
+मुसोलिनी | |||
-गांधी | |||
||फॉसीवाद एक सुनिश्चित एवं स्पष्ट सिद्धांत के रूप में 'नहीं' उभरा। यह एक कार्यक्रम के रूप में सामने आया। मुसोलिनी ने स्वयं कहा है क्कि "हम निश्चित सिद्धांतों में विश्वास नहीं रखते। फॉसीवाद वास्तविकता पर आधारित है। हम निश्चित तथा वास्तविक उद्देश्य प्राप्त करना चाहते है। हमारा उद्देश्य काम करना है, बात करना नहीं। देश काल की परिस्थितियों के अनुसार हम कुलीनतंत्रीय और जनतंत्रीय, रूढ़िवादी और प्रगतिवादी, प्रतिक्रियावादी और क्रांतिवादी तथा कानूनी और गैरकानूनी बन सकते हैं। इस प्रकार फॉसीवाद का कोई निश्चित सिद्धांत नहीं है। | |||
{"कानून संप्रभु का आदेश है।" यह किसका कथन है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-68,प्रश्न-25 | |||
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+जॉन ऑस्टिन का | |||
-सालमंड का | |||
-हालैंड का | |||
-ग्रीन का | |||
||जॉन ऑस्टिन के अनुसार "कानून उच्चतर द्वारा निम्नतर को दिया गया आदेश है।" या "कानून संप्रभु की आज्ञा (आदेश) है।" ऑस्टिन के कानून को इस परिभाषा में तीन तत्व निहित है- (i) संप्रभुता (ii)आदेश (समादेश) (iii) शास्ति-अर्थात संप्रभु के आदेश की अवहेलना करने वाले को दण्ड देने की शक्ति। इस प्रकार ऑस्टिन ने कानून को संप्रभु आदेश (समादेश) माना है। ऑस्टिन ने अपनी पुस्तक में संप्रभुता की एकलवदी अवधारणा का प्रतिपादन किया है। | |||
{ओम्बुड्समैन की अवधारणा का प्रारम्भ हुआ- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-191,प्रश्न-6 | |||
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-फिनलैंड में | |||
+स्वीडन में | |||
-नॉर्वे में | |||
-इंग्लैंड में | |||
{बहुत कार्यपालिका पायी जाती है: (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-200,प्रश्न-44 | |||
|type="()"} | |||
-अमेरिका में | |||
-भारत में | |||
-अनाडा में | |||
+स्विट्जरलैंड में | |||
||संसार में जहां सभी देशों की कार्यपालिका शक्ति सम्राट या राष्ट्रपति में निहित होती है वहां स्विट्जरलैंड में कार्यपालिका शक्तियां सात सदस्यों की एक संघीय परिषद को प्रदान की गई है। इसीलिए इसे बहुत कार्यपालिका कहते है। इन सातों सदस्यों की शक्तियां समान होती है। इनका अध्यक्ष इन्हीं सात सदस्यों में स क्रमश: बनता रहता है। | |||
{कौन-सा विचारक संविधान एवं संविधानवाद में अंतर नहीं मानता? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-193,प्रश्न-8 | |||
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-ब्लैकस्टोन | |||
-लासवेल | |||
+सी.एफ.स्ट्रांग | |||
-के.सी. व्हीयर | |||
||सी.एफ. स्ट्रांग संविधान एवं संविधानवाद में अंतर नहीं मानते हैं। इनके अनुसार संविधान पर आधारित शासन ही संविधानवाद तथा संविधन में कोई अंतर नहीं है। इनके विचार का समर्थन कोरी तथा अब्राहम जैसे विद्वान भी करते हैं। सी.एफ. स्ट्रांग के अनुसार "संविधान उन सिद्धांतों का समूह है जिसके अनुसार राज्य के अधिकारों, नागरिकों के अधिकारों, तथा दोनों के संबंधों में सामंजस्य स्थापित किया जाता है। कोरी एवं अब्राहम के अनुसार स्थापित संविधान के निर्देशों के अनुसार शासन को संविधानवाद माना जाता है।" | |||
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Revision as of 11:56, 13 December 2017
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